23.1 C
Ranchi
Wednesday, February 5, 2025 | 10:33 pm
23.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

कांग्रेस की जीत एवं भाजपा की हार के मायने

Advertisement

इस चुनाव में पार्टियों के तरकश में जितने भी तीर थे, उन्हें चलाने में उन्होंने परहेज नहीं किया. नेताओं द्वारा अमर्यादित भाषा के उपयोग ने चुनाव का माहौल खराब किया.

Audio Book

ऑडियो सुनें

वैसे तो हर विधानसभा चुनाव में सभी दल पूरी ताकत लगाकर जीतने की कोशिश करते हैं, लेकिन कर्नाटक चुनाव की अहमियत यह बताती है कि भाजपा और कांग्रेस ने अपने शस्त्रागार में ऐसा कोई अस्त्र बाकी नहीं रखा, जो न चला हो. मीडिया हर विधानसभा चुनाव को 2024 के लोकसभा चुनाव का सेमीफाइनल बताता है. यह भी सेमीफाइनल है और मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के आगामी चुनाव भी सेमीफाइनल बताये जायेंगे.

- Advertisement -

यह सही है कि 2024 से पहले का हर चुनाव आपको लोकसभा चुनाव के एक पायदान नजदीक ले जाता है. यदि भाजपा इस कर्नाटक चुनाव जीतती, तो उसके लिए 2024 बहुत आसान हो जाता. कर्नाटक का एक और अहम पहलू है कि यह भाजपा के लिए दक्षिण भारत में प्रवेश का द्वार है और अब यह द्वार बंद हो गया है. यदि भाजपा कर्नाटक जीतती, तो 2024 के चुनाव का दरवाजा विपक्ष के लिए बंद था. इस जीत ने यह दरवाजा खुला रखा है. विपक्ष को अब उम्मीद की एक किरण नजर आने लगी है.

यह जीत राहुल गांधी के लिए जीवनदायिनी बन कर आयी है. पिछली कुछ हार के बाद गांधी परिवार अपने राजनीतिक अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहा था और उनकी नेतृत्व क्षमता पर सवाल उठ रहे थे. लगातार हार के बाद कांग्रेस हिमाचल में जीती जरूर, पर यह छोटा राज्य है, इसलिए इस जीत से माहौल नहीं बना, लेकिन कर्नाटक में जीत बड़ी उपलब्धि है. माना जा रहा है कि यह जीत राहुल गांधी को स्थापित कर देगी.

कांग्रेसी नेताओं ने जीत का श्रेय राहुल गांधी को देना शुरू भी कर दिया है. कांग्रेस ने कहा है कि भारत जोड़ो यात्रा बनाम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विमर्श में राहुल गांधी की पदयात्रा स्पष्ट विजेता साबित हुई है. नतीजों के अनुसार भारत जोड़ो यात्रा कर्नाटक के जिन 20 विधानसभा क्षेत्रों से गुजरी थी, उनमें से 15 में कांग्रेस को जीत हासिल हुई है, जबकि जनता दल (सेक्युलर) को तीन और भाजपा को दो सीटें मिली हैं. सिद्धारमैया ने कहा कि कर्नाटक विधानसभा चुनाव के नतीजे 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत की नींव रखेंगे. उन्होंने उम्मीद जतायी है कि 2024 में राहुल गांधी प्रधानमंत्री बनेंगे.

इस चुनाव में पार्टियों के तरकश में जितने भी तीर थे, उन्हें चलाने में उन्होंने परहेज नहीं किया. नेताओं द्वारा अमर्यादित भाषा के उपयोग ने चुनाव का माहौल खराब किया. चुनाव के दौरान दोनों पार्टियों के नेता मठों-मंदिरों में जाकर मत्था टेक रहे थे, समुदायों को आरक्षण का वादा किया जा रहा था, तो दूसरी ओर परिवारवाद चरम पर नजर आया. भाजपा के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई पूर्व मुख्यमंत्री दिवंगत एसआर बोम्मई के बेटे हैं.

भाजपा के बड़े नेता येदियुरप्पा के बेटे बीवाई विजयेंद्र और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के बेटे प्रियांक खरगे चुनाव मैदान में थे. जनता दल (एस) ने तो गजब कर दिया था. जेडीएस नेता देवगौड़ा के परिवार के छह सदस्य चुनाव मैदान में थे. चुनाव प्रचार के दौरान जहरीले सांप, विषकन्या और नालायक जैसी टिप्पणियों से सार्वजनिक बयानबाजी का घटता स्तर स्पष्ट नजर आया.

कांग्रेस घोषणापत्र में बजरंग दल पर प्रतिबंध लगाने की बात आयी, तो बजरंगबली सभी चुनावी मुद्दों पर हावी हो गये. विहिप और बजरंग दल ने कांग्रेस के खिलाफ विरोध प्रदर्शन भी किया. दरअसल, कर्नाटक में 600-700 मठ हैं. उनका थोड़ा-बहुत राजनीतिक इस्तेमाल होता आया है, लेकिन अब वे राजनीति के प्रमुख केंद्र बन कर उभरे हैं. लेकिन इस बार मठों को अपने पक्ष में करने की जो होड़ लगी, वैसा पहले कभी नहीं हुआ.

कर्नाटक में लिंगायत समुदाय के लगभग 400 मठ हैं, तो वोकलिंगा समुदाय से जुड़े करीब 150 मठ हैं. कुरबा समुदाय से जुड़े लगभग 80 मठ हैं. हर राजनीतिक दल का नेता, चाहे वह भाजपा का हो या कांग्रेस का, मठों का आशीर्वाद पाने के लिए मंदिर-मठों की तरफ दौड़ लगा रहा था. नतीजतन, अब मठ के महंतों की राजनीतिक महत्वाकांक्षा जाग गयी है.

दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि चुनावी दौड़ में असली मुद्दे पीछे छूट गये. यह देश का दुर्भाग्य है कि अब चुनाव जमीनी मुद्दों पर नहीं लड़े जाते. अब किसानों की समस्याएं, रोजगार, स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा की स्थिति, राज्य का विकास जैसे विषय मुद्दे नहीं बनते, बल्कि भावनात्मक मुद्दों को उछाला जाता है.

निश्चित रूप से लोगों की नाराजगी भाजपा पर भारी पड़ी. भाजपा नेता और निवर्तमान मुख्यमंत्री बोम्मई ने कहा कि हम मंजिल तक नहीं पहुंच पाये. बीएस येदियुरप्पा ने हार स्वीकार करते हुए कहा कि हार-जीत भाजपा के लिए बड़ी बात नहीं है. दो सीट से शुरुआत कर भाजपा आज सबसे बड़ी पार्टी बन गयी है. कार्यकर्ताओं को दुखी होने की जरूरत नहीं है. चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों में ऐसे संकेत मिल रहे थे कि भाजपा की स्थिति ठीक नहीं है.

चुनाव के दौरान ही नहीं, बल्कि काफी पहले से ही भाजपा में आंतरिक कलह की खबरें लगातार आ रही थीं. रही-सही कसर टिकट वितरण ने पूरी कर दी. कई दिग्गज नेताओं का टिकट काटना भाजपा को भारी पड़ा. पार्टी नेताओं की बगावत ने भी कई सीटों पर भाजपा को नुकसान पहुंचाया. जो खबरें सामने आयी हैं, उनके अनुसार लगभग 15 से ज्यादा ऐसी सीटें हैं, जहां भाजपा के बागी नेताओं ने पार्टी को बड़ा नुकसान पहुंचाया.

बोम्मई सरकार पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों ने भी पार्टी को नुकसान पहुंचाया. चुनाव से कुछ समय पहले ही एक भाजपा विधायक के बेटे को रंगे हाथों पकड़ा गया था. एक ठेकेदार ने सरकार पर 40 प्रतिशत कमीशनखोरी का आरोप लगाते हुए आत्महत्या कर ली थी. विश्लेषकों का मानना है कि 40 फीसदी कमीशन का आरोप भाजपा की कर्नाटक सरकार पर चिपक गया. राहुल गांधी से लेकर मल्लिकार्जुन खरगे और प्रियंका गांधी तक ने इस मुद्दे को उठाया.

इस चुनाव में दक्षिण बनाम उत्तर की लड़ाई का भी असर नजर आया. कांग्रेस के स्थानीय नेताओं ने कर्नाटक की सहकारी नंदिनी दूध का मसला जोर-शोर से उठाया. कांग्रेस ने एक तरह से यह साबित करने की कोशिश की है कि भाजपा गुजरात की सहकारी संस्था अमूल को बढ़ावा दे रही है, जबकि कर्नाटक के गौरव नंदिनी दूध को किनारे किया जा रहा है. कर्नाटक में भाजपा ने चार प्रतिशत मुस्लिम आरक्षण खत्म करके लिंगायत और अन्य वर्ग में बांट दिया था.

पार्टी को इससे फायदे की उम्मीद थी, लेकिन कांग्रेस ने आरक्षण का दायरा 50 प्रतिशत से बढ़ा कर 75 फीसदी करने का वादा कर दिया. ऐसा लगता है कि इस वादे ने कांग्रेस को बड़ा फायदा पहुंचाया और लिंगायत से लेकर दलित मतदाताओं तक ने कांग्रेस का साथ दिया.

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें