12.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

Jharkhand Election : झारखंडी अस्मिता को मिली जीत, पढ़ें अनुज लुगुन का खास आलेख

झारखंड लंबे समय तक औपनिवेशिक वर्चस्व के विरुद्ध संघर्ष करता रहा है. अंग्रेजी साम्राज्यवाद के विरुद्ध सबसे पहले बगावत करने वाले झारखंडी लोग ही थे. यह आजादी के बाद भी जारी रही, जो स्वतंत्र झारखंड राज्य के आंदोलन के रूप में सामने आयी.

Audio Book

ऑडियो सुनें

Jharkhand Election :जब हेमंत सोरेन के जेल जाने की बात लगभग पक्की हो चुकी थी, तब मेरी मुलाकात झारखंड कवर करने वाले ‘बीबीसी’ के दिवगंत पत्रकार रवि प्रकाश जी से हुई थी. झारखंड के राजनैतिक परिदृश्य की बात करते हुए उन्होंने मुझसे कहा था कि अगर आज चुनाव हो जाए, तो हेमंत सोरेन पिछले चुनाव से ज्यादा सीट जीत जायेंगे. यह तब की बात है, जब मंईयां सम्मान योजना आयी ही नहीं थी. हेमंत सोरेन के नेतृत्व में झारखंड में इंडिया गठबंधन ने बड़ी जीत दर्ज की है. चुनाव विश्लेषक परिणामों पर बात करते हुए समीकरणों और तात्कालिक स्थितियों पर विचार कर रहे हैं. ये भी प्रभावी कारक होते हैं, पर बुनियादी भूमिका होती है सामाजिक मनोविज्ञान की. यानी जिस जगह चुनाव हो रहा है, उसके भूगोल का मूल स्वभाव क्या है?

सामाजिक मनोविज्ञान का चुनाव

झारखंड लंबे समय तक औपनिवेशिक वर्चस्व के विरुद्ध संघर्ष करता रहा है. अंग्रेजी साम्राज्यवाद के विरुद्ध सबसे पहले बगावत करने वाले झारखंडी लोग ही थे. यह आजादी के बाद भी जारी रही, जो स्वतंत्र झारखंड राज्य के आंदोलन के रूप में सामने आयी. अलग राज्य के गठन के बाद भी यह ‘जल, जंगल, जमीन बचाओ’ आंदोलन के रूप में जारी है. यहां का सामाजिक मनोविज्ञान इस तरह बन चुका है कि लोग भूख और अभाव बर्दाश्त कर सकते हैं, पर बेदखली और अन्याय नहीं. उनकी स्मृतियों में यह ऐतिहासिक रूप से मौजूद है कि यदि वे अपनी जमीन से उखड़े, तो उनका समूल नाश होना तय है. वर्ष 1936 के खतियान का मुद्दा इसी भावना की उपज है. सत्ता में रहते हुए हेमंत सोरेन ने इस भावना को अपनी कैबिनेट से कानूनन संबोधित करने का लगातार प्रयास भी किया. जब हेमंत सोरेन को जेल भेजा गया, तब यह भावना लहर की तरह उमड़ पड़ी. इसने झारखंड के अतीत की स्मृतियों को उभार दिया.

हेमंत सोरेन से जनता का भावनात्मक जुड़ाव

संसदीय राजनीति में जयपाल सिंह मुंडा, एनइ होरो, कार्तिक उरांव, शिबू सोरेन के बाद ऐसा कोई राजनेता नहीं रहा, जो सदियों से उपेक्षित जनता की आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व कर सका हो. अतीत की स्मृतियों ने अचानक हेमंत को झारखंड के पूर्वज राजनेताओं की पंक्ति में खड़ा कर दिया. हेमंत के विरुद्ध विपक्ष जितना आक्रामक होता गया, जनता उतना ही उनसे भावनात्मक रूप से जुड़ती चली गयी. हेमंत का मतलब केवल आदिवासी होना नहीं है. ठीक वैसे ही जैसे जयपाल सिंह मुंडा या शिबू सोरेन का होना है. यह झारखंडी अस्मिता का होना है. इसमें सांप्रदायिकता की गुंजाइश नहीं है. इन नामों के साथ निर्मल महतो की शहादत चलती है, विनोद बिहारी महतो चलते हैं. यहीं कहीं कमोबेश कॉमरेड एके राय भी मिलते हैं. सांस्कृतिक क्षेत्र में जैसे नईमुद्दीन मीरदाहा, रामदयाल मुंडा, बीपी केसरी और मधु मंसूरी साथ-साथ चलते हैं. जैसे इतिहास में चुआड़ विद्रोह, कोल विद्रोह, हूल और उलगुलान के विचार साथ चलते हैं.

भाजपा ने झारखंडी भावना के विपरीत मुद्दे उठाए

भाजपा ने हेमंत सोरेन के विरुद्ध रणनीति बनाते हुए झारखंडी भावना को ही छेड़ा. उसकी टीम ने जो मुद्दे उठाये, वे झारखंडी भावना के विपरीत थे. भाजपा पिछले चुनाव की हार से समझ चुकी थी कि रघुबर दास के रूप में एक गैर आदिवासी को मुख्यमंत्री बनाना उसकी भूल थी. पर इस बार वह दूसरी चूक कर गयी. उसके जितने भी स्टार प्रचारक थे, वे बाहरी थे. उनके द्वारा तैयार किया गया ‘बांग्लादेशी घुसपैठियों’ का एजेंडा झारखंडी भावना के आस-पास कहीं नहीं ठहरता था. इसी पिच पर उनके सभी दिग्गज आकर ‘रोटी, बेटी, माटी’ की बात कहने लगे. ऐसा लग रहा था कि उनके दो बड़े चेहरे बाबूलाल मरांडी और चंपई सोरेन अपनी जमीन पर अपना ही एजेंडा सेट करने में नाकाम हो रहे हैं.

बाहरी प्रचारक नहीं जमा सके प्रभाव

भाजपा विकसित भारत के लिए आदिवासी समाज को लेकर कई नीतियों पर काम कर रही है. उसने ही बिरसा मुंडा की जयंती को राष्ट्रीय जनजातीय गौरव दिवस की मान्यता दी. उसी ने देश की आदिवासी महिला को राष्ट्रपति बनाने का मान दिया. इन मुद्दों को चुनावी सभाओं में शामिल किया गया. पर इन सबसे भी ज्यादा कड़वी हकीकत यह थी कि उसी ने एक आदिवासी मुख्यमंत्री को जेल की सलाखों के पीछे रखा. और गंभीर बात यह थी कि बाहर से आये चुनाव प्रभारी और उनके प्रचारक अपने ही प्रांतों में आदिवासियों की बदहाली पर कुछ बोल पाने की स्थिति में नहीं थे. भाजपा के लिए सबसे बड़ा सवाल मणिपुर की हिंसा का सवाल बन कर आया. वह चुनावी सभाओं में आदिवासियों के विकास के दावे तो कर रही थी, पर मणिपुर के आदिवासियों के मामले में उसने चुप्पी साध रखी. छत्तीसगढ़ में हसदेव जंगल उजाड़े जाने के बारे में चुप्पी साधी गयी. झारखंड के आदिवासी स्पष्ट थे कि हसदेव के बाद सारंडा जंगल की बारी है. सारंडा दक्षिण झारखंड में फैला खान-खदान से भरपूर एशिया का सबसे विस्तृत जंगल है, जो एक सहजीवी सभ्यता का केंद्र है.

हेमंत और कल्पना मुखर होकर मतदाताओं के सामने गए

हेमंत और कल्पना इन मुद्दों को मुखर होकर मतदाताओं के सामने रखने में सफल रहे. उपनिवेशवाद के विरुद्ध संघर्ष के लंबे अनुभव के कारण यहां के समाज में स्थानिकता के अतिक्रमण की अच्छी समझदारी विकसित हुई है, जो उसे दूसरे प्रांत के आदिवासियों के साथ जोड़ती है. फलत: इस पूरे इलाके से भाजपा लगभग साफ हो गयी. यानी इस चुनाव में झारखंडी समाज का मनोविज्ञान पहले से निर्मित हो चुका था. यह लोकसभा चुनाव में पहले ही अभिव्यक्त हो चुका था, जब भाजपा एक भी आदिवासी सीट जीतने में सफल नहीं रही थी. इंडिया गठबंधन में कांग्रेस, राजद और माले ने इस भावना का साथ देते हुए झामुमो के साथ अच्छा तालमेल किया. जेल से आने के बाद हेमंत सोरेन ने मंईयां सम्मान की घोषणा कर दी. इसके जवाब में भाजपा ने भी गोगो दीदी योजना जैसी कई बड़ी लोकलुभावन योजनाओं को अपने एजेंडे में शामिल किया. पर जनता ने उसे तरजीह नहीं दी, क्योंकि उसकी लुभावनी बातों का कोई ऐतिहासिक, स्थानीय, आंदोलनपरक, भावनात्मक आधार नहीं था. भाजपा की सहयोगी आजसू भी पिछड़ गयी, क्योंकि वह झारखंडी अस्मिता की भावना से दूर होती गयी. जबकि आजसू झारखंड आंदोलन की ही उपज है. आजसू जिस कुड़मी-महतो समुदाय पर टिकी रहती है, उसके विकल्प के रूप में जयराम महतो उभरे. उनकी नवोदित पार्टी झारखंड लोकतांत्रिक क्रांतिकारी मोर्चा ने उपेक्षित-शोषित झारखंडी भावना को ही संबोधित किया और कई सीटों पर परिणाम को प्रभावित किया. मतों का समीकरण झारखंडी भावना के इर्द-गिर्द ही है. शहरी क्षेत्रों में जहां नयी आबादी प्रभावी है, वहीं भाजपा ने जीत हासिल की है. उसे इस पर मंथन करना चाहिए.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें