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जयशंकर की दो टूक

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किसी भी तरह का आतंकवाद, चाहे उसके पक्ष में जो भी तर्क दिया जाए, भारत के लिए असहनीय और अस्वीकार्य है.

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भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा है कि संयुक्त राष्ट्र में घोषित आतंकवादियों का बचाव करने वाले देश न तो अपने हितों को आगे बढ़ाते हैं और न ही अपनी छवि को बेहतर करते हैं. संयुक्त राष्ट्र महासभा की 77वीं बैठक में भारत की ओर से बोलते हुए उन्होंने कहा कि दशकों से सीमा पार के समर्थन से जारी आतंकवाद का भुक्तभोगी होने के कारण भारत ने इस मामले में अत्यंत कठोर रवैया अपनाया है.

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किसी भी तरह का आतंकवाद, चाहे उसके पक्ष में जो भी तर्क दिया जाए, भारत के लिए असहनीय और अस्वीकार्य है. कूटनीतिक मर्यादा का अनुसरण करते हुए विदेश मंत्री ने अपने भाषण में किसी देश को चिन्हित नहीं किया, लेकिन यह स्पष्ट है कि उनका संकेत पाकिस्तान और उसके घनिष्ठ सहयोगी देश चीन की ओर था. जयशंकर के संबोधन से पूर्व ‘उत्तर देने के अधिकार’ के तहत पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ द्वारा कश्मीर के हवाले से लगाये गये झूठे आरोपों पर भारत ने तीखा प्रहार किया.

पाकिस्तानी नेताओं ने बरसों से वैश्विक मंचों पर कश्मीर की आड़ में भारत पर अनर्गल आरोप लगाने की आदत बना ली है. यह जगजाहिर तथ्य है कि भारत के विरुद्ध कई आतंकी घटनाओं का षड्यंत्र रचने वाले और आतंकियों की नियमित घुसपैठ कराने वाले सरगना पाकिस्तान में खुलेआम सक्रिय हैं. कभी-कभार जब अंतरराष्ट्र्रीय दबाव पड़ता है, तो उनमें से कुछ को थोड़े समय के लिए हिरासत में ले लिया जाता है या उन्हें भूमिगत कर दिया जाता है.

इस संबंध में ताजा उदाहरण मसूद अजहर का है, जिसके अफगानिस्तान में होने का दावा पाकिस्तान की ओर से किया गया है. इस संबंध में पाकिस्तान कोई भी ठोस सबूत सामने नहीं रख सका है. उल्लेखनीय है कि मसूद अजहर को वैश्विक आतंकवादी घोषित करने के सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव को चीन ने लंबे समय तक रोके रखा था. भारत और अन्य कई देशों के अत्यधिक दबाव के बाद ही उसने अपने रवैये में सुधार किया था.

इसी महीने आतंकी सरगना साजिद मीर को वैश्विक आतंकवादी घोषित करने के प्रस्ताव पर भी चीन ने यही रूख अपनाया है. विडंबना यह है कि महासभा में चीनी विदेश मंत्री ने यह सुझाव दिया कि वैश्विक चुनौतियों का समाधान शांति है. चीन न केवल पाकिस्तान को आतंक के मामले में समर्थन देता रहा है, बल्कि वह पाकिस्तान के साथ सुर से सुर मिलाकर भारत के आंतरिक मामलों पर भी बयान देता रहता है. वास्तविक नियंत्रण रेखा पर और समुद्र में उसकी आक्रामकता से यही सिद्ध होता है कि चीन की कथनी और करनी में बहुत अधिक अंतर है.

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