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क्रिकेट में युवाओं को पंख लगाता आइपीएल

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सभी फ्रेंचाइजी जानते हैं कि बिना मजबूत अनकैप्ड खिलाड़ियों के टीम मजबूत नहीं बन सकती है. कई बार यह युवा प्रतिभाएं उम्मीदों पर खरी नहीं भी उतर पाती हैं, पर जो खरे उतरते हैं, उन्हें आगे और ज्यादा रकम मिलने लगती है. फ्लॉप खिलाड़ियों की तत्काल छुट्टी भी कर दी जाती है.

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आइपीएल ने डेढ़ दशक से ज्यादा समय में भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड की आर्थिक हालत तो सुधारी ही है, साथ ही कई युवाओं को भारी-भरकम रकम देकर उन्हें सपने जीने का मौका भी दिया है. इस कारण इसे कई बार करोड़पति बनाने वाली मशीन भी कहा जाता है. यह साल मिनी नीलामी का था, पर इसमें भी समीर रिजवी, शुभम दुबे, कुमार कुशाग्र, रॉबिन मिंज और एम सिद्धार्थ जैसे पहली सीढ़ी पर खड़े खिलाड़ियों को करोड़पति बना दिया गया. कुछ को तो इतना पैसा मिला है, जितना तीन दशक पहले क्रिकेटर पूरे करियर में भी नहीं कमा पाते थे. इस बार अनकैप्ड खिलाड़ियों में सबसे बड़ी लॉटरी मेरठ के समीर रिजवी के नाम लगी. उन्हें चेन्नई सुपरकिंग्स ने 8.4 करोड़ रुपये में खरीदा है. खास बात यह है कि इस 20 वर्षीय क्रिकेटर ने हाल में कक्षा 10 की परीक्षा पास की है और कोई बहुत क्रिकेट भी नहीं खेला है. वे इस साल यूपी टी-20 लीग में धमाका कर कई आइपीएल फ्रेंचाइजियों के आकर्षण का केंद्र बन गये. उन्होंने इस लीग में नौ मैचों में दो शतकों के साथ 455 रन बनाये. इसी तरह नागपुर में पान का ठेला लगाने वाले बद्री प्रसाद के बेटे शुभम शर्मा को राजस्थान रॉयल्स ने 5.8 करोड़ रुपये में खरीदा. उनकी प्रतिक्रिया थी कि इतना पैसा मिलने की हमें कतई उम्मीद नहीं थी. कुमार कुशाग्र को दिल्ली कैपिटल्स ने 7.2 करोड़ रुपये में, रॉबिन मिंज को गुजरात टायटंस ने 3.6 करोड़ रुपये में और एम सिद्धार्थ को लखनऊ सुपरजायंट्स ने 2.4 करोड़ रुपये में खरीदा है. आइपीएल ने करियर के शुरू में ही उनके पंख लगा दिये हैं. अब यह इन खिलाड़ियों पर है कि वे कितना उड़ पाते हैं. उसी उड़ान से राष्ट्रीय टीम में स्थान बनाने की राह बननी है.

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आइपीएल का फॉर्मेट ऐसा बनाया गया है कि अनकैप्ड खिलाड़ियों की मांग हमेशा बनी रहती है. हर टीम को निर्धारित संख्या में अनकैप्ड खिलाड़ी लेना होता है, इसलिए वे युवाओं को सालभर फॉलो करते हैं और उन्हें लेने के लिए पूरा जोर लगा देते हैं. सभी फ्रेंचाइजी जानते हैं कि बिना मजबूत अनकैप्ड खिलाड़ियों के टीम मजबूत नहीं बन सकती है. कई बार यह युवा प्रतिभाएं उम्मीदों पर खरी नहीं भी उतर पाती हैं, पर जो खरे उतरते हैं, उन्हें आगे और ज्यादा रकम मिलने लगती है. फ्लॉप खिलाड़ियों की तत्काल छुट्टी भी कर दी जाती है. आइपीएल नीलामी के बारे में यह कहना गलत नहीं होगा कि इसमें चमत्कार को ही नमस्कार किया जाता है. इस संबंध में आप पेस गेंदबाज जयदेव उनादकट का नाम ले सकते हैं. उन्हें 2018 में 11.5 करोड़ रुपये में खरीदा गया, लेकिन आने वाले सालों में वे क्षमता के अनुरूप प्रदर्शन नहीं कर सके. इस कारण उनकी कीमत इस बार 1.6 करोड़ रुपये ही रह गयी. उमेश यादव की कीमत भी दो करोड़ रुपये तक गिर गयी थी, पर पिछले साल बेहतर प्रदर्शन कर वे इस बार 5.8 करोड़ रुपये पा गये. कई बार तो युवा एक साल स्टार बनते हैं और अगले साल गुमनामी के अंधेरे में खो जाते हैं. पेस गेंदबाज कामरान खान आइपीएल की पहली चैंपियन राजस्थान रॉयल्स के कप्तान शेन वार्न के टॉरनेडो कहलाते थे. पहले सीजन का यह हीरो एक्शन को लेकर सवाल उठते ही नदारद हो गया. ऐसे खिलाड़ियों में नाथू सिंह और पवन नेगी जैसे कई खिलाड़ी शामिल हैं.

आइपीएल ने क्रिकेट के स्तर को सुधारा है, यह बहस का मुद्दा हो सकता है. पर इसने क्रिकेटरों को मालामाल बनाया है, इस बात को लेकर शायद ही कोई असहमत हो. यह जरूर है कि हर फ्रेंचाइजी अपनी जरूरत के हिसाब से खिलाड़ियों पर पैसा लगाता है. इसकी वजह से क्रिकेटप्रेमी जिस खिलाड़ी को खासी रकम मिलने की उम्मीद कर रहे होते हैं, कई बार टीमें ऐसा नहीं सोचती हैं. अब आप इस बार ऑस्ट्रेलिया को आइसीसी विश्व कप का चैंपियन बनाने में अहम भूमिका निभाने वाले ट्रेविस हैड और न्यूजीलैंड के लिए तीन शतकों से 565 रन बनाने वाले रचिन रविंद्र को ही ले सकते हैं. सभी को लग रहा था कि इस बार इन दोनों पर जबरदस्त धनवर्षा होगी, पर ऐसा हुआ नहीं. ट्रेविस हैड को सनराइजर्स हैदराबाद ने 6.8 करोड़ रुपये में और रचिन को सीएसके ने 1.8 करोड़ रुपये में खरीदा.

अब सवाल यह है कि ऐसा हुआ क्यों. इसकी प्रमुख वजह यह थी कि मिनी नीलामी में आम तौर पर टीमें अपने कमजोर पक्ष को ही मजबूत करती हैं. इस बार सभी टीमों ने पेस गेंदबाजों पर मुख्यत: पैसा लगाया और इसकी वजह यह है कि 2024 के आइपीएल सत्र में पेस गेंदबाजों की खासी अहमियत रहने वाली है. असल में अगले सत्र में पेस गेंदबाजों को एक ओवर में दो बाउंसर फेंकने की अनुमति मिलने वाली है. अभी तक पेस गेंदबाज एक ही बाउंसर फेंक सकता था. इस वजह से बल्लेबाज जानता था कि ओवर की शुरुआत में बाउंसर आ गया, तो अब नहीं आने वाला है. लेकिन अब बल्लेबाज पर ओवर के दौरान बाउंसर का खौफ बना रहेगा. इससे पेस गेंदबाजों को बेहतर प्रदर्शन करके का मौका मिल रहा है. इस कारण सभी टीमों ने अपने पेस अटैक को मजबूत करने पर जोर दिया, जिसकी वजह से बेहतर बैटर्स की भी अनदेखी हो गयी.

(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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