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इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए बुनियादी ढांचे की जरूरत

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सभी कमियों को दूर कर हम इलेक्ट्रिक वाहन की दिशा में तेज गति से आगे बढ़ सकते हैं. बढ़ते प्रदूषण और तेल की बढ़ती कीमतों को देखते हुए कहा जा सकता है कि आने वाला समय इलेक्ट्रिक गाड़ियों का ही है.

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इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) को चार्ज करने के लिए कंपनियों द्वारा लगाये गये सार्वजनिक चार्जिंग स्टेशनों का देशभर में पांच से पच्ची प्रतिशत तक ही इस्तेमाल हो रहा है. इसका अर्थ हुआ कि देश में अभी तक इलेक्ट्रिक वाहनों को व्यापक तौर पर नहीं अपनाया गया है. इसका एक और कारण इलेक्ट्रिक गाड़ियों की कीमत पेट्रोल या डीजल गाड़ियों की तुलना में ज्यादा होना है.

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भले ही सरकार इन पर अलग-अलग तरह की रियायतें दे रही है, फिर भी पेट्रोल-डीजल की गाड़ियों के मुकाबले ई-वाहनों की कीमत अधिक ही है. ‘ब्यूरो ऑफ एनर्जी एफिसिएंसी’ के मुताबिक, दोपहिया इलेक्ट्रिक गाड़ियों की रेंज 84 किलोमीटर प्रति चार्ज है. जबकि चौपहिया इलेक्ट्रिक गाड़ियों की औसत रेंज 150-200 किलोमीटर प्रति चार्ज है.

भारत में इलेक्ट्रिक गाड़ियों के लिए चार्जिंग स्टेशन की भी भारी कमी है. देश में कुल कारों में से इलेक्ट्रिक कारों की हिस्सेदारी महज एक प्रतिशत है, जिसके लिए बड़ी संख्या में सार्वजनिक चार्जिंग स्टेशन की जरूरत है, क्योंकि कारों को लंबी दूरी तक चलना होता है. इसका एक और बड़ा कारण इलेक्ट्रिक गाड़ियों में लिथियम आयन बैट्रियों का इस्तेमाल है. ये बैट्रियां छह से सात वर्ष तक ही चल पाती हैं, इसके बाद उन्हें बदलना पड़ता है.

बैट्रियों का छोटा जीवन खरीदारों के मन में संशय पैदा करता है. दरअसल, एक बैट्री की कीमत किसी इलेक्ट्रिक गाड़ी के तीन-चौथाई रकम के बराबर होती है. हालांकि सरकार ने पिछले साल ‘प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव’ (पीएलआई) योजना को मंजूरी दी थी. यह योजना देश में एडवांस केमिस्ट्री सेल (एसीसी) के निर्माण के लिए लायी गयी है, ताकि बैट्री की कीमतों को कम किया जा सके.

बिजनेस कंसल्टिंग फर्म ‘बेन एंड कंपनी’ के अनुसार, देश में अभी करीब 5000 सार्वजनिक और निजी चार्जिंग स्टेशन हैं, लेकिन इलेक्ट्रिक वाहनों की संख्या काफी कम होने की वजह से चार्जिंग स्टेशनों के लिए कारगर आर्थिक मॉडल अभी सामने नहीं आ पाया है. कई बार सुझाव दिया जाता है कि पेट्रोल पंप पर ही इलेक्ट्रिक गाड़ियों को चार्ज करने की सुविधा दी जानी चाहिए, पर इसमें बड़ी चुनौती इलेक्ट्रिक गाड़ियों को चार्ज करने में एक से पांच घंटे का लगने वाला समय है.

सो, इसका एकमात्र उपाय इलेक्ट्रिक गाड़ियों के चार्जिंग स्टेशन की संख्या बढ़ाना ही है. चार्जिंग स्टेशन पर गाड़ी को कुछ घंटों के लिए छोड़ने की सुविधा भी उपलब्ध करायी जा सकती है. ‘बैट्री स्वैप’ करने की सुविधा एक बेहतर विकल्प हो सकती है, जिसमें खाली बैट्री को उतनी वारंटी वाली फुल बैट्री से तुरंत बदल दिया जाए. गुड़गांव की ‘स्टेटिक’ चार्जिंग स्टेशन कारोबार की बड़ी कंपनियों में से एक है और इसके 7000 से ज्यादा चार्जर हैं, जिनमें से 1000 तेजी से चार्ज करने वाले हैं.

दिल्ली-एनसीआर तथा उत्तर भारत के अन्य शहरों में इसके सार्वजनिक फास्ट चार्जर का उपयोग काफी कम किया जा रहा है. दरअसल, चार्जरों का औसत इस्तेमाल करीब 15 फीसदी ही हो पा रहा है. शहरों के अंदर यह 15 फीसदी से भी कम है लेकिन राजमार्गों पर विकल्प सीमित रहने से इनका 25 फीसद तक इस्तेमाल हो रहा है.

बेंगलुरु की इलेक्ट्रिक दोपहिया कंपनी ‘एथर एनर्जी’ के भी विभिन्न शहरों में करीब 950 चार्जर हैं और इस समय इनका 21 फीसदी तक उपयोग हो रहा है. इनमें से अधिकांश सार्वजनिक चार्जर हैं, जिनमें फास्ट चार्जर भी शामिल हैं. बैटरी और चार्जर बनाने वाली ‘एक्सपोनेंट एनर्जी’ हल्के वाणिज्यिक वाहनों के लिए 15 मिनट में चार्ज करने वाले चार्जर पर जोर दे रही है.

सार्वजनिक क्षेत्र की ‘कन्वर्जेंस एनर्जी सर्विसेज’ को देश में चार्जिंग के लिए बुनियादी ढांचा तैयार करने में मदद का जिम्मा सौंपा गया है. कंपनी 13 राज्यों में 440 से अधिक चार्जर चला रही है, जिनमें केवल 27 धीमी गति से चार्ज करते हैं. उत्तर प्रदेश में प्रत्येक चार्जिंग स्टेशन पर रोजाना औसतन नौ वाहन आते हैं.

बाजार में ई-वाहनों की संख्या बढ़ने पर ‘हाइपर चार्जर’ का इस्तेमाल तेजी से बढ़ेगा. ओला साल के अंत तक 1000 हाइपर चार्जर लगायेगी, अभी इनकी संख्या करीब 50 है. इलेक्ट्रिक वाहन कंपनियों को यूनिवर्सल चार्जिंग सिस्टम के बारे में भी सोचना होगा. भारत के ईवी मार्केट में अभी भी चार्जिंग पोर्ट के लिए एक मानक तय नहीं किया गया है. यह दिक्कत सबसे अधिक दोपहिया इलेक्ट्रिक गाड़ियों में दिखती है, जहां अलग-अलग तरह की बैट्री और उनके अलग-अलग चार्जिंग पोर्ट बाजार में मिलते हैं.

गाड़ियों की परफॉर्मेंस में मौसम और तापमान का भी बड़ा योगदान होता है. इलेक्ट्रिक वाहनों में तापमान और भी बड़ा फैक्टर बन जाता है. सामान्य तौर पर किसी इलेक्ट्रिक गाड़ी के बेहतर परफॉर्मेंस के लिए औसत तापमान की रेंज 15 से 40 डिग्री सेल्सियस मानी जाती है, लेकिन जहां पहाड़ी इलाकों में तापमान बेहद नीचे गिर जाता है, तो पश्चिमी इलाके में तापमान बहुत ऊपर रहता है. ऐसे में पूरे देश के लिए एक तरह की इलेक्ट्रिक गाड़ियों से काम नहीं चल सकता.

इन सभी कमियों को दूर कर हम इलेक्ट्रिक वाहन की दिशा में तेज गति से आगे बढ़ सकते हैं. बढ़ते प्रदूषण और तेल की बढ़ती कीमतों को देखते हुए कहा जा सकता है कि आने वाला समय इलेक्ट्रिक गाड़ियों का ही है.

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