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मैनुफैक्चरिंग हब बनता भारत

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वित्त वर्ष 2021-22 में भारत के निर्यात का ऐतिहासिक स्तर पर पहुंचना यह संकेत है कि अब भारत निर्यात आधारित अर्थव्यवस्था की ओर अग्रसर है.

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बदले हुए वैश्विक आर्थिक और भू-राजनीतिक परिदृश्य में भारत दुनिया का नया मैनुफैक्चरिंग हब बनने की संभावनाओं को साकार करने की राह पर बढ़ रहा है. इसके चार प्रमुख कारण उभरते दिखायी दे रहे हैं. एक, आत्मनिर्भर भारत अभियान और उत्पादन से संबद्ध प्रोत्साहन (पीएलआई) को तेज बढ़ावा.

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दो, कोविड-19 की वजह से चीन के प्रति वैश्विक नकारात्मकता के बाद अब वहां फिर कोरोना संक्रमण के कारण उत्पादन ठप होने और आपूर्ति शृंखला बाधित होने से वैश्विक उद्योग और पूंजी का भारत के दरवाजे पर दस्तक देना. तीन, निर्यात आधारित बनने की भारतीय अर्थव्यवस्था की प्रवृत्ति. चार, भारत के मुक्त व्यापार समझौतों (एफटीए) और क्वाड्रिलेटरल सिक्योरिटी डॉयलॉग (क्वाड) के कारण उद्योग-कारोबार में वृद्धि.

छह मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वीडियो से ‘जीतो कनेक्ट 2022’ के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए कहा कि आत्मनिर्भर भारत हमारा रास्ता भी है और संकल्प भी. इस समय वोकल फॉर लोकल को बढ़ावा और विदेशी वस्तुओं के उपयोग को कम करने के साथ देश में प्रतिभा, उद्योग, व्यापार और प्रौद्योगिकी को प्रोत्साहित किया जा रहा है.

दुनिया भारत के उत्पादों की तरफ बड़े भरोसे से देख रही है और भारत को मैनुफैक्चरिंग हब बनाने में विभिन्न देशों का अच्छा सहयोग और समर्थन मिल रहा है. उल्लेखनीय है कि आत्मनिर्भर भारत अभियान में मैनुफैक्चरिंग के तहत 24 सेक्टरों को प्राथमिकता के साथ बढ़ाया जा रहा है. चूंकि अभी भी देश में दवाई, मोबाइल, चिकित्सा उपकरण, वाहन तथा इलेक्ट्रिक जैसे कई उद्योग बहुत कुछ चीन से आयातित माल पर आधारित हैं.

ऐसे में चीन के कच्चे माल का विकल्प तैयार करने के लिए पिछले डेढ़ वर्ष में सरकार ने पीएलआई स्कीम के तहत 13 उद्योगों को करीब दो लाख करोड़ रुपये आवंटन के साथ प्रोत्साहन सुनिश्चित किया है. कुछ उत्पादक चीनी कच्चे माल का विकल्प बनाने में सफल भी हुए हैं. पीएलआई योजना से अगले पांच वर्षों में देश में लगभग 40 लाख करोड़ रुपये मूल्य की वस्तुओं का उत्पादन होगा.

कोविड-19 के बीच चीन के प्रति बढ़ी वैश्विक नकारात्मकता और 2022 में चीन में कोरोना संक्रमण के कारण उद्योग-व्यापार के ठहर जाने से चीन से बाहर निकलते विनिर्माण, निवेश और निर्यात के मौके भारत की ओर आने लगे हैं. मार्च, 2020 से 2022-23 के बजट के तहत सरकार द्वारा मैनुफैक्चरिंग सेक्टर के लिए उठाये गये कदमों के साथ-साथ भारतीय उत्पादों को अपनाने के प्रचार-प्रसार से देश के उद्योगों को आगे बढ़ने का मौका मिला है. कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के मुताबिक सरकार ने नयी कृषि निर्यात नीति के तहत कृषि निर्यात से संबंधित उद्योगों और खाद्य प्रसंस्कृत उद्योगों को बढ़ावा दिया है.

भारत में श्रम लागत चीन की तुलना में सस्ती है. भारत के पास तकनीकी और पेशेवर प्रतिभाओं की भी कमी नहीं है. केंद्र सरकार ने उद्योग-कारोबार, कराधान और श्रम कानूनों को सरल बनाया है. इससे भी उद्योग-कारोबार आगे बढ़ रहे हैं. भारत की निर्यात आधारित अर्थव्यवस्था की डगर भारत को मैनुफैक्चरिंग हब बनाने में प्रभावी भूमिका निभा रही है.

कोविड और यूक्रेन संकट की चुनौतियों के बीच 2021-22 में भारत का उत्पाद निर्यात 419.65 और सेवा निर्यात 249.24 अरब डॉलर के ऐतिहासिक स्तर पर पहुंचना यह संकेत है कि अब भारत निर्यात आधारित अर्थव्यवस्था की ओर अग्रसर है. ज्ञातव्य है कि 2020-21 में भारत का उत्पाद निर्यात 292 अरब डॉलर तथा सेवा निर्यात 206 अरब डॉलर रहा था. साथ ही मैनुफैक्चरिंग सेक्टर के आगे बढ़ने के मौके बढ़ रहे हैं.

अमेरिका, भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया ने क्वाड के रूप में जिस नयी ताकत के उदय का शंखनाद किया है, वह भारतीय उद्योग-कारोबार के विकास में मील का पत्थर साबित हो सकता है. इससे भारत के मैनुफैक्चरिंग हब बनने को बड़ा आधार मिलेगा. इसके साथ-साथ भारत उद्योग-कारोबार के विस्तार हेतु जिस तीन आयामी रणनीति पर आगे बढ़ रहा है, उससे भी मैनुफैक्चरिंग हब की संभावनाएं आगे बढ़ेंगी.

ये तीन महत्वपूर्ण आयाम हैं- एक, चीन के प्रभुत्व वाले व्यापार समझौतों से अलग रहते हुए नॉर्डिक देशों जैसे समूहों के व्यापार समझौते का सहभागी बनना. दो, पाकिस्तान को किनारे करते हुए क्षेत्रीय देशों के संगठन बिम्सटेक (बे ऑफ बंगाल इनीशिएटिव फॉर मल्टी सेक्टोरल टेक्नोलॉजिकल एंड इकोनॉमिक कोऑपरेशन) को प्रभावी बनाना और तीन, मुक्त व्यापार समझौतों (एफटीए) की डगर पर तेजी से आगे बढ़ना.

भारत के द्वारा यूएई और ऑस्ट्रेलिया के साथ एफटीए को मूर्त रूप दिये जाने के बाद अब यूरोपीय संघ, ब्रिटेन, कनाडा, खाड़ी सहयोग परिषद (जीसीसी) के छह देशों, दक्षिण अफ्रीका, अमेरिका और इजराइल के साथ एफटीए के लिए प्रगतिपूर्ण वार्ताएं सुकूनदेह हैं. बीते दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा जर्मनी, डेनमार्क और फ्रांस की प्रभावी यात्रा के बाद यूरोपीय देशों में भारत के उत्पादों के निर्यात की नयी संभावनाएं पैदा हुई हैं.

इसमें कोई दो मत नहीं कि अब विशेष आर्थिक क्षेत्र (सेज) की नयी अवधारणा और नये निर्यात प्रोत्साहनों से देश को दुनिया का नया मैनुफैक्चरिंग हब बनाये जाने और आयात में कमी लाने की संभावनाएं भी उभरकर दिखायी दे रही हैं. अब सेज की नयी अवधारणा के तहत सरकार के द्वारा सेज से अंतरराष्ट्रीय बाजार और राष्ट्रीय बाजार के लिए विनिर्माण करने वाले उत्पादकों को विशेष सुविधाओं से नवाजा जायेगा. सेज में खाली जमीन और निर्माण एरिया का इस्तेमाल घरेलू व निर्यात मैनुफैक्चरिंग के लिए हो सकेगा.

भारत के दुनिया का दूसरा बड़ा मैनुफैक्चरिंग हब बनने के चुनौतीपूर्ण लक्ष्य को पाने के लिए भारत को कई बातों पर ध्यान देना होगा. आत्मनिर्भर भारत अभियान और मेक इन इंडिया को सफल बनाना होगा. मैनुफैक्चरिंग के प्रोत्साहन के लिए लागत घटाने का प्रयास करना होगा. स्वदेशी उत्पादों की गुणवत्ता में बढ़ोतरी के लिए शोध एवं नवाचार पर फोकस किया जाना जरूरी होगा. कर तथा अन्य कानूनों की सरलता भी जरूरी होगी.

अर्थव्यवस्था को डिजिटल करने की रफ्तार तेज करना होगी. हम उम्मीद करें कि सरकार देश को दुनिया का नया मैनुफैक्चरिंग हब बनाने की डगर पर तेजी से आगे बढ़ेगी. इससे देश में विदेशी निवेश बढ़ेगा, निर्यात बढ़ेंगे, आयात घटेंगे और रोजगार के अवसर भी छलांगे लगाकर बढ़ेंगे.

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