हमारे देश में अस्पताल में भर्ती होकर उपचार कराने के खर्च का बहुत बड़ा हिस्सा परिवारों को अपनी जेब से देना पड़ता है. तीन लाख से अधिक परिवारों के सर्वेक्षण पर आधारित भारत सरकार की एक वार्षिक रिपोर्ट में बताया गया है कि अपनी जेब से ग्रामीण परिवारों को 92 प्रतिशत और शहरी परिवारों को 77 प्रतिशत खर्च करना पड़ता है. एक अन्य सरकारी रिपोर्ट में बताया गया है कि 2021-22 में कुल स्वास्थ्य खर्च में अपनी जेब से होने वाले खर्च का हिस्सा 39.4 प्रतिशत था, जो 2014-15 के 64.2 प्रतिशत के आंकड़े से बहुत कम है. इस आधार पर कहा जा सकता है कि आयुष्मान भारत जैसी सरकारी बीमा योजनाओं तथा निजी बीमा में बढ़ोतरी का सकारात्मक असर हो रहा है. वर्ष 2018 में शुरू हुई आयुष्मान भारत योजना के तहत लगभग 50 करोड़ निर्धन एवं निम्न आय वर्ग के लोगों को पांच लाख रुपये का बीमा मुहैया कराया जाता है. पिछले महीने इस योजना को हर आय वर्ग के 70 वर्ष या उससे अधिक आयु के लोगों के लिए भी लागू कर दिया गया है. उल्लेखनीय है कि कोविड महामारी के बाद से निजी बीमा लेने में भी बड़ी वृद्धि हुई है. फिर भी बहुत से परिवारों के इलाज में हुए खर्च को खुद वहन करने की मजबूरी चिंताजनक है. गंभीर बीमारियों के उपचार का खर्च बहुत से परिवार नहीं उठा पाते तथा इस कारण गरीबी का शिकार बन जाते हैं. हालांकि बीते वर्षों में सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति में सुधार हुआ है, पर स्वास्थ्य केंद्रों में संसाधनों की समुचित उपलब्धता नहीं है. ऐसे में लोग निजी अस्पतालों की शरण में जाने को विवश होते हैं. सभी निजी अस्पताल बीमा योजनाओं के तहत पंजीकृत नहीं हैं. वहां परिवार को ही खर्च वहन करना पड़ता है. यह भी देखा गया है कि बीमा कंपनियां वादे के मुताबिक भुगतान नहीं करती हैं. इससे भी रोगी के परिजनों का बोझ बढ़ जाता है. बीमा योजनाओं का भी लाभ तभी मिलता है, जब मरीज को भर्ती कराना पड़ता है. जैसे अन्य चीजों और सेवाओं के दाम बढ़ते जा रहे हैं, वैसे उपचार का खर्च भी बढ़ता जा रहा है. हमारे देश में मेडिकल मुद्रास्फीति 14 प्रतिशत के आसपास है, जो एशिया में सबसे अधिक है. बीमा प्रीमियम की दरें भी महंगी होती जाती हैं. इलाज के अलावा तरह-तरह की जांच, आवागमन, किराये पर बिस्तर या कमरा लेना आदि के खर्च भी बढ़े हैं. कुछ ही शहरों में गंभीर बीमारियों के विशेषज्ञ हैं और अस्पतालों में आवश्यक व्यवस्था है. खर्च बढ़ाने में ये कारक भी योगदान देते हैं. बीमा योजनाओं तथा सस्ती दवाओं के लिए जन औषधि केंद्र जैसी पहलों के विस्तार की जरूरत है तथा अस्पतालों को भी उपचार को सस्ता करना चाहिए.
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