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शिक्षा नीति में सामाजिक प्रभाव की शिक्षा का महत्व

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छात्र- छात्राओं को सामाजिक प्रभावों के बारे में शिक्षित करने से उनके भीतर समाज और पर्यावरण के प्रति जिम्मेदारी की भावना उत्पन्न होती है तथा उनमें निर्णय लेने और उनके परिणामों पर सोचने की क्षमता विकसित होती है.

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भारत में वर्ष 2020 में घोषित राष्ट्रीय शिक्षा नीति में पढ़ाई में सामाजिक प्रभावों की शिक्षा के महत्व को दर्शाया गया है. इसे समावेशिता, गुणवत्ता और प्रासंगिकता के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है. राष्ट्रीय शिक्षा नीति छात्र-छात्राओं की रचनात्मक क्षमता, संज्ञानात्मक क्षमता के साथ-साथ सामाजिक, नैतिक और भावनात्मक क्षमताओं के विकास पर जोर देती है. सामाजिक प्रभाव की शिक्षा रचनात्मकता एवं नवाचार को बढ़ावा देने के साथ-साथ सामाजिक समस्याओं के लिए नवीन समाधान विकसित करने के लिए प्रोत्साहित करती है.

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छात्र- छात्राओं को सामाजिक प्रभावों के बारे में शिक्षित करने से उनके भीतर समाज और पर्यावरण के प्रति जिम्मेदारी की भावना उत्पन्न होती है तथा उनमें निर्णय लेने और उनके परिणामों पर सोचने की क्षमता विकसित होती है. इसके साथ-साथ सामाजिक प्रभाव की शिक्षा छात्र-छात्राओं को विविध संस्कृतियों और पृष्ठभूमियों को जोड़ती है, और यह समाज में कायम पूर्वाग्रहों को तोड़ने में कारगर होती है.

यह शिक्षा समावेशिता को बढ़ावा देती है तथा छात्र-छात्राओं को अधिक सामंजस्यपूर्ण समाज के निर्माण के लिए प्रेरित करती है. सामाजिक प्रभाव का अर्थ किसी भी महत्वपूर्ण एवं सकारात्मक परिर्वतन से है, जो सामाजिक चुनौतियों को हल करने में सक्षम हों. वर्तमान में औद्योगिक जगत में भी बदलाव देखने को मिल रहा है, जहां व्यापारिक लक्ष्यों के साथ सामाजिक उद्देश्यों को जोड़ के देखा जा रहा है. वित्तीय सफलता के साथ समाज और पर्यावरण की भलाई को भी प्राथमिकता के रूप में देखा जा रहा है.

यह दृष्टिकोण सतत विकास के पारिस्थितिकी तंत्र बनाने में योगदान दे सकता है. गरीबी, जलवायु परिवर्तन, असमानता जैसी कई चुनौतियों का सामना कर रहे समाज में सतत विकास के लिए सामाजिक प्रभाव पर ध्यान केंद्रित करना आवश्यक है. सामाजिक प्रभाव को बढ़ावा देकर व्यक्ति और संगठन समावेशी और संपन्न वैश्विक समुदाय में योगदान दे सकते हैं.

सामाजिक प्रभाव जटिल सामाजिक समस्याओं के समाधान खोजने मेें रचनात्मकता और नवीनता को प्रोत्साहित करता है. यह सामाजिक चुनौतियों से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए नये दृष्टिकोण, तकनीक और रणनीति के विकास को प्रोत्साहित करता है. सामाजिक प्रभाव शिक्षा का तात्पर्य पाठ्यक्रम और शैक्षिक गतिविधियों में सामाजिक और पर्यावरणीय बिंदुओं को शामिल करना है, जिससे छात्र-छात्राओं में सामाजिक जिम्मेदारी एवं जागरूकता की भावना जागृत हो सके.

सामाजिक प्रभाव शिक्षा में अनुभवों की विशेष भूमिका होती है, जैसे इसमें सामाजिक उद्यमों के साथ इंटर्नशिप तथा समुदाय आधारित कार्यक्रमों में सक्रिय भागीदारी शामिल है. शैक्षिक संस्थान अपने पाठ्यक्रम में सामाजिक प्रभाव को प्राथमिकता के रूप में एकीकृत कर सकते हैं, जिसकी आने वाले समय में अगली पीढ़ी को अधिक परिपक्व बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका होगी.

शैक्षिक संस्थान सामाजिक उद्यमता की संस्कृति को बढ़ावा देकर सामाजिक नवाचार और सतत व्यवसायिक पद्धतियों पर आधारित पाठ्यक्रमों के माध्यम से सामाजिक प्रभाव शिक्षा का क्रियान्वयन कर सकते हैं. आर्टिफिशियल इंटिलिजेंस के दौर में समाजिक प्रभाव शिक्षा की भूमिका और भी महत्वपूर्ण होगी. रचनात्मकता, समस्या समाधान तथा अनुकूलनशीलता जैसे कौशल मूल्यवान होंगे तथा इनको एआइ के माध्यम से विकसित करना संभव नहीं है. सामाजिक प्रभाव शिक्षा इन कौशलों को विकसित करने में कारगर सिद्ध होगी.

हाल ही में आइआइएम, रांची ने शिक्षा में सामाजिक प्रभाव को रणनीतिक प्राथमिकता के रूप में चिह्नित किया है. इसका उद्देश्य जिम्मेदार प्रबंधकों की एक नयी पीढ़ी तैयार करना है जिनके पास एक मजबूत सामाजिक चेतना के साथ-साथ वैश्विक दृष्टिकोण और स्थानीय जिम्मेदारी का बोध हो. इसके लिए आइआइएम, रांची ने शृंखलाबद्ध कार्यक्रमों तथा अनूठी पहलों को शामिल किया है. इस प्रतिबद्धता को दर्शाने के लिए आइआइएम, रांची ने हाल ही में यंग चेंजमेंकर नामक कार्यक्रम का आयोजन किया, जिसके माध्यम से छात्र-छात्राओं को ग्रामीण भारत की वास्तविकता से रू-ब-रू कराया गया.

इससे उन्हें ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों के जीवन को प्रभावित करने वाले सामाजिक आर्थिक और पर्यावरणीय कारकों की गहरी समझ हासिल करने का अवसर मिला. इस प्रकार के कार्यक्रमों के माध्यम से छात्र-छात्राओं को जीवन कौशल की समग्र सीख का मौका मिलता है. साथ ही, सहानुभूति, सकारात्मक सोच और समस्या को सुलझाने के कौशल को भी बढ़ावा मिलता है. इनके अलावा, जनजातीय समाज के प्रति जागरूकता लाने के उद्देश्य से ‘भारत में जनजाति’ तथा ‘जनजाति भाषा’ जैसे विषयों की शुरुआत की गयी है.

‘मानवीय पुस्तकालय’ तथा विभिन्न स्थानों पर सामुदायिक पुस्तकालय की भी स्थापना की गयी है. संक्षेप में, सामाजिक प्रभाव की शिक्षा केवल सूचना का आदान प्रदान नहीं है. यह छात्र-छात्राओं में जिम्मेदारी तथा सहानुभूति की भावना पैदा करने के संबंध में है. सामाजिक प्रभाव की शिक्षा के माध्यम से समावेशिता तथा सतत समाज का निर्माण किया जा सकता है एवं यह एक बेहतर भविष्य बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दे सकती है.

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