28.1 C
Ranchi
Wednesday, February 12, 2025 | 02:25 pm
28.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

गुजरात में भाजपा की बड़ी उपलब्धि

Advertisement

अपने को धर्मनिरपेक्ष माननेवाली ताकतें अगर गुजरात परिणाम के लिए आम आदमी पार्टी को दोष दे रही हैं, तो यह ठीक नहीं है. लोकतंत्र में हर पार्टी को चुनाव लड़ने और अपने एजेंडे को जनता के सामने रखने का अधिकार है.

Audio Book

ऑडियो सुनें

गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनाव परिणामों से एक बात फिर स्पष्ट हो गयी है कि राजनीतिक दल, उसके क्षेत्रीय नेता, संसाधन, मुद्दे आदि बहुत महत्वपूर्ण होते हैं. यह भी संकेत मिलता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपार लोकप्रियता के बावजूद भारतीय जनता पार्टी को परास्त भी किया जा सकता है. यदि हम हिमाचल प्रदेश को देखें, तो वहां कांग्रेस की जमीन थी और उसमें जीतने की लालसा थी. वहां कांग्रेसी नेताओं ने आपसी तालमेल बनाकर चुनाव लड़ा और प्रियंका गांधी ने वहां सघन प्रचार भी किया था.

कांग्रेस की ओर से चुनाव पर्यवेक्षण और प्रबंधन का काम राजीव शुक्ला ने संभाला, तो छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, सचिन पायलट जैसे नेताओं ने प्रचार में प्रियंका गांधी का साथ दिया. इनके साथ अनेक नेताओं की एक टीम ने भी पूरा प्रयास किया. इसका परिणाम कांग्रेस की जीत के रूप में हमारे सामने है.

गुजरात की कहानी इससे बिल्कुल अलग रही है. वहां कांग्रेस अपना जनाधार खो चुकी है तथा पार्टी के पास क्षेत्रीय स्तर पर कोई उल्लेखनीय नेता भी नहीं है. वहां पार्टी कुछ कर सके, इसके लिए कोई सूत्रधार भी नहीं बन सका. राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को वहां लगाया गया था, पर ऐसा नहीं लगता है कि उन्होंने बहुत मन से प्रयास किया. राजस्थान सरकार के मंत्री रघु ठाकुर कांग्रेस के चुनाव प्रभारी थे. वे भी जमीनी स्तर पर कुछ नहीं कर पाये.

गुजरात में कांग्रेस को दो तरह से नुकसान हुआ है. पार्टी का जो परंपरागत मतदाता था, जो दो-ढाई दशक से कांग्रेस के साथ रहा था, जो नरेंद्र मोदी से प्रभावित नहीं हुआ था, उसका एक हिस्सा भाजपा की ओर खिसकता हुआ दिख रहा है. कांग्रेस के लिए यह चुनावी हार से कहीं अधिक बड़ी चिंता होनी चाहिए. यह भी उल्लेखनीय है कि विपक्ष में कोई आपसी तालमेल नहीं हुआ. आम आदमी पार्टी और कांग्रेस भले ही गठबंधन नहीं करते, पर वे एक ऐसी रणनीति बना सकते थे, जिससे दोनों को अधिकतम फायदा होता.

आम आदमी पार्टी की छवि एक शहरी पार्टी की है, लेकिन इस चुनाव में उसने ग्रामीण क्षेत्रों, आदिवासी क्षेत्रों, सौराष्ट्र में कांग्रेस को बहुत नुकसान पहुंचाया है. आप पार्टी का जो मत प्रतिशत बढ़ा है, वह भाजपा से टूट कर नहीं, बल्कि कांग्रेस से आया है. भाजपा का अपना वोट प्रतिशत तो बढ़ गया है. इसका मतलब यह है कि आदिवासी, राजपूत, पाटीदार समुदाय, जो परंपरागत रूप से भाजपा का विरोध करते आ रहे थे, उन्होंने वापसी की है.

यह कांग्रेस के लिए बड़ी चिंता का विषय है. लोकतंत्र में तो साधारण बहुमत ही पर्याप्त होता है, लेकिन भाजपा ने 182 में से 156 सीटें भी जीती हैं और उसका मत प्रतिशत भी 50 फीसदी से अधिक हो गया है. यह निश्चित रूप से बहुत बड़ी उपलब्धि है. इस रिकॉर्ड उपलब्धि में सबसे दिलचस्प बात यह है कि भाजपा का जो राज्यस्तरीय नेतृत्व है, उसका प्रभाव घटता जा रहा है. नरेंद्र मोदी के बाद आनंदीबेन पटेल, फिर विजय रूपानी और फिर भूपेंद्र पटेल को मुख्यमंत्री बनाया गया.

अठारह माह पहले गांधीनगर में जो घटना हुई, वह तो अजीब ही थी. मुख्यमंत्री समेत सभी मंत्रियों को हटाकर नयी सरकार का गठन हुआ. ऐसा समझा जा रहा था कि जो अनेक बार मंत्री रहे थे, वे इस कार्रवाई से नाराज होंगे और भीतरघात हो सकता है, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ और भाजपा अधिक ताकत के साथ सत्ता में वापसी कर रही है.

अपने को धर्मनिरपेक्ष माननेवाली ताकतें अगर गुजरात परिणाम के लिए आम आदमी पार्टी को दोष दे रही हैं, तो यह ठीक नहीं है. लोकतंत्र में हर पार्टी को चुनाव लड़ने और अपने एजेंडे को जनता के सामने रखने का अधिकार है. कांग्रेस की स्थिति से स्पष्ट दिखता है कि वह जनता के समक्ष वैकल्पिक विचार रख नहीं पा रही है और लोगों को अपने साथ नहीं जोड़ पा रही है. अब समय आ गया है कि कांग्रेस राष्ट्रीय स्तर पर इस स्थिति की विवेचना करे और यह समझने की कोशिश करे कि ऐसा क्यों हो रहा है.

इतिहास को देखें, तो हम पाते हैं कि किसी भी राज्य में जब किसी तीसरी राजनीतिक शक्ति का उदय होता है, तो कांग्रेस ध्वस्त हो जाती है. गुजरात में आम आदमी पार्टी के प्रदर्शन को देखते हुए ऐसा नहीं कहा जा सकता है कि 2027 में वहां कांग्रेस अपनी खोयी हुई जमीन को हासिल कर लेगी. पंजाब का उदाहरण हमारे सामने है. पहली बार आप ने 20 सीटें जीतीं और दूसरी बार बड़े बहुमत से सत्ता में आ गयी.

कांग्रेस में आंतरिक तौर पर एक रस्साकशी चल रही है. राहुल गांधी में चुनावों को लेकर बहुत अधिक उत्साह नहीं रहा है. उन्हें लगता है कि राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों पर चर्चा हो, सरकार कौन बनाता है, मंत्री कौन होता है, इस पर ध्यान देना आवश्यक नहीं है. हाल में अध्यक्ष बने मल्लिकार्जुन खरगे पुराने ढर्रे के नेता हैं और निर्णय लेने के लिए वे गांधी परिवार की ओर देखते रहते हैं.

सोनिया गांधी भी पहले की ही तरह पार्टी को चलते हुए देखना चाहती हैं. प्रियंका गांधी ने जरूर यह साबित कर दिया है कि अगर स्थितियां बेहतर हों, यानी जमीनी पकड़ हो, स्थानीय नेता और कार्यकर्ता हों, मुद्दे हों, तो लड़ाई लड़ी जा सकती है. हिमाचल प्रदेश की कामयाबी इसका उदाहरण है. आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना और समीक्षा का समय नहीं है. उन्होंने गुजरात में अपनी पकड़ को अच्छी तरह से साबित किया है.

मुख्यमंत्री या उम्मीदवार कोई भी हो, मतदाता मोदी जी के मान-सम्मान में वोट दे रहे हैं. प्रधानमंत्री उसी राज्य से हैं और लंबे समय तक मुख्यमंत्री भी रहे हैं, लोगों पर उनका अच्छा-खासा प्रभाव बना हुआ है. उन्होंने हिमाचल प्रदेश में भी सघन प्रचार किया था और मुझे स्मरण है कि उन्होंने कहा था कि लोग उम्मीदवार को देखकर नहीं, बल्कि उन्हें देखकर वोट दें. इस निवेदन का अपेक्षित असर हिमाचल में नहीं हुआ है. लोगों ने पुरानी पेंशन स्कीम की बहाली जैसे मुद्दों को अपना अधिक समर्थन दिया है.

किसी राज्य के स्थानीय समीकरण ऐसे हो सकते हैं, जहां प्रधानमंत्री की लोकप्रियता उतनी कारगर ना हो. साल 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले अनेक राज्यों में चुनाव होंगे. जहां कांग्रेस के पास जमीन है, वहां उसे तालमेल बिठाकर लाभ उठाने का प्रयास करना चाहिए. आप के लिए भी अच्छा आधार तैयार हो रहा है. अगर वह अच्छे शासन का उदाहरण पेश करे, तो आगे उसे स्वीकार्यता मिल सकती है.

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

संबंधित ख़बरें

Trending News

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें