17.1 C
Ranchi
Thursday, February 13, 2025 | 01:47 am
17.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

जीएम सरसों की खेती नुकसानदेह

Advertisement

जीईएसी का ज्यादा उत्पादकता का दावा सही नहीं है क्योंकि भारत के सरसों एवं रेपसीड शोध संस्थान का कहना है कि देश में डीएमएच-11 से कम से कम 25 प्रतिशत से ज्यादा उत्पादकता देने वाली किस्में पहले से ही विकसित की जा चुकी हैं.

Audio Book

ऑडियो सुनें

अक्तूबर 18, 2022 को भारत सरकार के पर्यावरण एवं वन मंत्रालय की एक समिति जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रैजल कमेटी (जीइएसी) ने जीएम सरसों की एक किस्म डीएमएच-11 को एक बार फिर खेतों में लगाने की सिफारिश की है. मई, 2017 में भी जीइएसी ने इसी किस्म को हरी झंडी दी थी, लेकिन किसानों और वैज्ञानिकों के भारी विरोध के कारण सरकार ने सिफारिश मानने से मना कर दिया था. बताया जा रहा है कि यह किस्म प्रो दीपक पेंटल द्वारा देश में विकसित की गयी है और पूर्णत: स्वदेशी है.

यह भी दावा है कि यह जीएम सरसों 26 प्रतिशत अधिक उपज देगी. तर्क है कि देश में खाद्य तेलों का उत्पादन कम है, जिसके कारण देश की बहुमूल्य विदेशी मुद्रा की हानि हो रही है. जीएम सरसों को उपभोक्ताओं, किसानों और पर्यावरण के लिए सुरक्षित भी बताया जा रहा है. लेकिन जीइएसी के इन दावों का सच क्या है, वह इससे स्पष्ट है कि स्वयं समिति ने अनुमति देते हुए कुछ ऐसी शर्तें लगायी हैं,

जो यह साबित करती हैं कि जीइएसी के पास इस बीज के सुरक्षित होने के कोई प्रमाण नहीं हैं, और वह शर्तें लगाकर इसके दुष्प्रभावों के आरोप से बचना चाहती है, कि भविष्य में वह कह सके कि हमने जीएम सरसों को कुछ शर्तों के साथ ही अनुमति दी थी और चूंकि उन शर्तों का पालन नहीं हुआ, इसलिए उनका कोई दोष नहीं है. गौरतलब है कि जो शर्तें लगायी गयी हैं, उनका अनुपालन करना सरकार के बस की बात नहीं है.

इस दावे में सत्यता नहीं है कि डीएमएच-11 एक स्वदेशी खोज है. वर्ष 2002 में बॉयर (एक विदेशी कंपनी) की एक सहायक कंपनी ‘प्रोएग्रो सीड कंपनी’ ने ऐसी ही एक किस्म, जिसे डीएमएच-11 कहा जा रहा है, की अनुमति हेतु आवेदन किया था, जिसे भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान ने यह कहते हुए मना कर दिया था कि इससे बेहतर उत्पादकता मिलने का कोई प्रमाण नहीं है. वास्तव में डीएमएच-11 किस्म बारनेस और बारस्टार नाम के दो जींस को जोड़कर बनायी गयी है और यह जींस बॉयर क्रॉप साइंस द्वारा पेटेंट की गयी है.

इस तथ्य को छुपाया गया है और भविष्य में बॉयर कंपनी अपने बौद्धिक संपदा अधिकारों की एवज में भुगतान मांग सकती है और किसान को उसकी कीमत चुकानी पड़ेगी. डीएमएच-11 के बारे में जीइएसी का ज्यादा उत्पादकता का दावा सही नहीं है क्योंकि भारत के सरसों एवं रेपसीड शोध संस्थान का कहना है कि देश में डीएमएच-11 से कम से कम 25 प्रतिशत से ज्यादा उत्पादकता देने वाली किस्में पहले से ही विकसित की जा चुकी हैं. सरकार को उन किस्मों को बढ़ावा देना चाहिए.

खेद का विषय यह है कि केवल इस प्रौद्योगिकी के विदेशी मूल को ही नहीं छुपाया गया, बल्कि यह तथ्य भी छुपाया गया कि जीएम सरसों हर्बीसाइड टोलरेंट भी है यानी शाकनाशी सहिष्णु भी है. डीएमएच-11 का ट्रायल करते हुए उसकी इस विशेषता के बारे में कोई टेस्ट नहीं किया गया. सतर्क नागरिकों एवं विशेषज्ञों द्वारा सच को सामने लाने के कारण अब जीइएसी ने एक नया रास्ता खोजा है कि अनुमति के साथ यह शर्त लगायी गयी है कि किसी भी हालत में किसानों द्वारा किसी शाकनाशी का उपयोग नहीं किया जायेगा.

अब चूंकि यह किस्म ही शाकनाशी सहिष्णु है, स्वाभाविक तौर पर शाकनाशियों की पर्याप्त उपलब्धता होने के कारण कोई सरकारी एजेंसी किसानों को इसके बारे में रोक नहीं सकती. इस संबंध में एक समानांतर उदाहरण हमारे सामने है कि ग्लाइफोसेट नाम के शाकनाशी का उपयोग केवल चाय बागानों और गैर कृषि क्षेत्रों में ही हो सकता है, लेकिन उसके बावजूद देशभर में यह धड़ल्ले से बिकता है और भारत में उसकी कुल बिक्री 1200 करोड़ रुपये से ज्यादा है.

समझा जा सकता है कि जीइएसी का यह कृत्य वास्तव में अनैतिक है. कई प्रकार के शाकनाशकों के दुष्परिणामों से दुनिया जूझ रही है. इनके कारण अमरीका और अन्य मुल्कों, जहां ऐसी किस्मों का इस्तेमाल हो रहा है, में कैंसर का प्रकोप बढ़ता जा रहा है और शाकनाशकों की निर्माता कंपनियों पर मुकदमे भी लगातार बढ़ रहे हैं. शाकनाशी सहिष्णु किस्म का सही मूल्यांकन नहीं करना वैज्ञानिक धोखा और जनता के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ है.

कई आयुर्वेदिक औषधियों में भारतीय सरसों एक वरदान के रूप में इस्तेमाल की जाती है. इसकी खुशबू एवं स्वाद ही इसकी विशेषताएं हैं. जानकार बताते हैं कि डीएमएच-11 में न तो खुशबू होगी और न ही स्वाद यानी इसमें औषधीय गुण होने का सवाल ही नहीं है. स्वाद की दृष्टि से सरसों का साग पूरी दुनिया को आकर्षित करता है. जब डीएमएच-11 उगायी जायेगी, तो सरसों के साग के साथ उगने वाले बथुआ और पालक जैसे अन्य साग भी गायब हो जायेंगे.

ये साग लगभग मुफ्त में खेतों से निकाले जाते हैं और वे भारतीय महिलाओं के लिए आयरन का एक प्रमुख स्रोत हैं. इनके समाप्त होने से देश में एनीमिया की समस्या ज्यादा बढ़ सकती है. कहा जा रहा है कि इस किस्म के लगाने से देश में खाद्य तेलों का आयात कम हो जायेगा, जिसकी संभावना बिल्कुल नहीं है, बल्कि इस किस्म के आने से शाकनाशकों का आयात जरूर बढ़ सकता है. सबसे मुसीबत की बात यह है कि देश में खाद्य पदार्थों में जीएम आने के बाद देश के खाद्य निर्यातों पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है.

अभी तक अपने देश में खाद्य पदार्थों में जीएम को अनुमति नहीं दी गयी है. देश में सभी उत्पादित खाद्य पदार्थ गैर-जीएम हैं. गैर-जीएम का यह टैग यूरोप समेत कई मुल्कों में हमारे खाद्य पदार्थों की स्वीकार्यता बढ़ाता है. खतरा यह है कि जैसे ही गैर-जीएम का यह टैग हट जायेगा, भारतीय निर्यात बड़ी मात्रा में बाधित हो जायेंगे क्योंकि यूरोप और अन्य कई देश उन्हीं देशों से खरीदना चाहते हैं, जो जीएम का उत्पादन नहीं करते.

आज भारत लगभग 50 अरब डाॅलर के खाद्य पदार्थों का निर्यात करता है. देश इसे बाधित करने का जोखिम नहीं उठा सकता. ऐसा होने पर किसानों की आमदनी बढ़ाने की संभावनाएं तो समाप्त होंगी ही, बहुमूल्य विदेशी मुद्रा की भी हानि होगी.

कहा जा सकता है कि देश में जहां जीएम खाद्य पदार्थों की कोई जरूरत नहीं है, व्यावसायिक ताकतों के दबाव में इनको दी जाने वाली अनुमतियों से खेती, पर्यावरण, स्वास्थ्य एवं निर्यात को भारी नुकसान पहुंच सकता है. ऐसे में सरकार का दायित्व है कि इस मामले में जीइएसी की सिफारिशों को दरकिनार कर देशहित की रक्षा करें. (ये लेखक के निजी विचार हैं.)

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

संबंधित ख़बरें

Trending News

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें