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जीडीपी में गिरावट अल्पकालिक है

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देश और दुनिया की जीडीपी में गिरावट अल्पकालिक ही है. मांग में आयी वर्तमान कमी की भरपायी भी आनेवाले समय में होगी, जिसे अर्थशास्त्र की भाषा में पेंटअप डिमांड कहा जाता है़

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डॉ अश्विनी महाजन, एसोसिएट प्रोफेसर, डीयू

ashwanimahajan@rediffmail.com

केंद्रीय सांख्यिकी संगठन द्वारा इस वर्ष 31 अगस्त को जारी आंकड़ों के अनुसार, इस वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही में जीडीपी में 23.9 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गयी है़ जीडीपी में यह गिरावट कृषि को छोड़ अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों में दिखायी दे रही है़ जबसे जीडीपी के आंकड़े प्रकाशित होना शुरू हुए, तब से यह पहली ऐसी घटना है, जब किसी एक तिमाही में जीडीपी में इतनी बड़ी गिरावट आयी है़ हालांकि, यह गिरावट बड़ी है, लेकिन अप्रत्याशित कतई नहीं है़ं सभी जानकार मान रहे थे कि इस तिमाही में जब पूरा देश लॉकडाउन में रहा, उत्पादन केंद्र समेत तमाम सेवाएं बंद थी़ं अस्पतालों में कोरोना संक्रमितों के अलावा सामान्यत: किसी अन्य का इलाज नहीं हो रहा था़ अधिकांश मजदूर वापस अपने घर चले गये थे, ऐसे में जीडीपी में गिरावट संभावित ही थी़

जब किसी अर्थव्यवस्था में जीडीपी वृद्धि प्रभावित होती है, तो उसकी जिम्मेदारी उस देश की सरकार की आर्थिक नीतियों और कार्य निष्पादन पर आती है़ लेकिन जीडीपी में यह गिरावट सरकार की नीतियों की खामियों के कारण नहीं, बल्कि ईश्वरीय आपदा के कारण है़ कोरोना संक्रमण के दौरान आर्थिक गतिविधियों में गिरावट सभी देशों में एक समान नहीं रही़ भारत की जीडीपी में जहां 23.9 प्रतिशत की गिरावट रही, वहीं इंग्लैंड में यह गिरावट 20.4, फ्रांस में 13.8, इटली में 12.4, कनाडा में 12, जर्मनी में 10 और अमेरिका में 32.9 प्रतिशत रही़

प्रश्न है कि अमेरिका को छोड़, अन्य देशों की तुलना में अप्रैल–जून की तिमाही में भारत की जीडीपी में इतनी बड़ी गिरावट क्यों आयी? क्योंकि भारत में लॉकडाउन सबसे पहले लगाया गया, जबकि शेष देशों ने इसे लगाने में देरी की़ अर्थव्यवस्था बाधित न हो, इस कारण अमेरिका, यूरोप के देशों, ब्राजील आदि लॉकडाउन टालते रहे़ यह देखते हुए कि अन्य देशों की तुलना में देश में स्वास्थ्य सुविधाएं कम हैं और संक्रमण फैलने की स्थिति में हम उससे निपट नहीं पायेंगे, भारत सरकार ने लॉकडाउन जल्दी से लागू कर दिया़

दुनिया के विकसित देश इस गुमान में थे कि उनके पास उत्तम स्वास्थ्य सुविधाएं हैं और महामारी से निपटने में वे पूरी तरह सक्षम हैं, उन्होंने लॉकडाउन में देरी की़ परिणाम हमारे सामने है़ अमेरिका की जनसंख्या मात्र 33 करोड़ है, भारत की जनसंख्या से एक चौथाई से भी कम, वहां कोरोना संक्रमितों की संख्या भारत के 39.3 लाख की तुलना में 69.4 लाख है़ ब्राजील की जनसंख्या मात्र 21.3 करोड़ है, वहां 40.5 लाख लोग कोरोना से संक्रमित हो चुके है़ं भारत में कोरोना संक्रमण से होनेवाली मृत्यु दर 1.75 प्रतिशत है, अमेरिका में यह दर 3.1 प्रतिशत, ब्राजील में 3.2 प्रतिशत और दक्षिण अफ्रीका में 2.1 प्रतिशत है़ इटली में यह दर 13.7 प्रतिशत रही़ अमेरिका तो अपनी अर्थव्यवस्था भी नहीं बचा पाया़

भारत जानता था कि देश में टेस्टिंग की पर्याप्त सुविधाएं नहीं हैं, ऐसे में सरकार के पास दो विकल्प थे़ अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए जीवन को सामान्य रूप से चलाये रखा जाये़, या जीवन बचाने के लिए लॉकडाउन किया जाये़ इस बीच अस्पताल, दवाइयां, वेंटिलेटर, पीपीइ किट्स और टेस्टिंग सुविधाओं को बेहतर किया जाये़ भारत सरकार ने दूसरा विकल्प चुना़ शेष दुनिया ने भी दूसरा विकल्प चुना, लेकिन देरी से़ इसलिए इन देशों में पिछली तिमाही में जीडीपी में गिरावट तो आयी, लेकिन यह गिरावट देरी से आना शुरू हुई़

देश और दुनिया की जीडीपी में गिरावट अल्पकालिक ही है, क्योंकि संक्रमण समाप्त होने के बाद अर्थव्यवस्था पटरी पर लौटने वाली है़ मांग में आयी वर्तमान कमी की भरपायी भी आनेवाले समय में होगी, जिसे अर्थशास्त्र की भाषा में पेंटअप डिमांड कहा जाता है़ कारों की बढ़ती मांग से इस बात का आभास होना शुरू हो चुका है़ भारत ने इस महामारी से आत्मनिर्भरता की एक बड़ी सीख ली है़ पिछले दो दशकों से हमारी निर्भरता चीन पर बढ़ती जा रही थी़ इस कारण हमारे उत्पादन पर प्रतिकूल असर पड़ रहा था़ वर्ष 2012 से 2015 तक हमारे औद्योगिक उत्पादन सूचकांक की वृद्धि लगभग शून्य तक पहुंच गयी थी़ पिछले कुछ समय से उसमें थोड़ा-बहुत सुधार दिखायी दे रहा है़ लेकिन चीन और शेष दुनिया पर हमारी निर्भरता में कोई बड़ा असर नहीं पड़ा था़

महामारी के दौरान आवश्यक पीपीइ किट, मास्क, वेंटिलेटर, टेस्टिंग किट और चिकित्सा उपकरणों का देश में उत्पादन बढ़ाकर, अपनी और अन्य देशों की आवश्यकताओं की पूर्ति करने से देश में आत्मविश्वास का वातावरण बना है़ सरकार ने संकल्प लिया है कि आत्मनिर्भरता के लक्ष्य को पूरा करने के लिए दवा उद्योगों के लिए कच्चा माल (एपीआइ), इलेक्ट्रॉनिक्स, केमिकल्स, खिलौने, धातु, फर्टिलाइजर आदि वस्तुओं का देश में उत्पादन बढ़ाया जायेगा़ उसके लिए सरकारी सहायता समेत सभी जरूरी उपाय किये जायेंगे़

शेष दुनिया की कई कंपनियां जो चीन में कार्यरत थीं, उनमें से कई भारत में आ रही है़ं यानी, भविष्य में औद्योगिक और प्रौद्योगिकी विकास के नये अवसर मिलने वाले है़ं जीडीपी में वर्तमान संकुचन आया है, लेकिन भविष्य उज्जवल है़ इसके लिए सरकार, उद्योग और जनता सभी को प्रयास करने होंगे़

(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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