22.1 C
Ranchi
Thursday, February 13, 2025 | 01:07 pm
22.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

भारतीय नवजागरण के अग्रदूत : राजा राममोहन राय

Advertisement

राजा राममोहन राय ने सती प्रथा को समाप्त करने के लिए 21 वर्षों तक निरंतर संघर्ष किया. आखिरकार उनका संघर्ष रंग लाया.

Audio Book

ऑडियो सुनें

बंगाल सरकार की एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 1815 से 1819 के दौरान केवल कोलकाता में ही दो हजार से अधिक स्त्रियां चिता में जल कर सती हो गयी थीं. वर्ष 1812 में राममोहन राय के बड़े भाई जगमोहन राय की मृत्यु के उपरांत उनकी पत्नी अलका मंजरी को जबरदस्ती चिता में बांध कर जला दिया गया था. इस घटना का राममोहन के ऊपर बहुत ज्यादा प्रभाव पड़ा और इसके बाद ही उन्होंने इस नारकीय प्रथा को सदैव के लिए समाप्त करने का प्रण ले लिया.

राममोहन ने इस कुप्रथा को समाप्त करने के लिए 21 वर्षों तक निरंतर संघर्ष किया. आखिरकार उनका संघर्ष रंग लाया और चार दिसंबर, 1829 को गवर्नर जनरल लॉर्ड विलियम बैंटिक ने सती प्रथा के खिलाफ कानून बना दिया, पर जो लोग सती प्रथा के विरोधी थे, उन्होंने बोलना शुरू कर दिया कि राममोहन जैसे हिंदू धर्म विरोधी के चलते अब हिंदू धर्म समाप्त हो जायेगा. राममोहन के विरोधी राजा राधाकांत देव ने तो इस कानून को रद्द कराने का भरसक प्रयास भी किया, पर सफल नहीं हो सके.

ईश्वर चंद्र विद्यासागर ने ‘बांग्लार इतिहास’ में लिखा है कि राममोहन अरबी, फारसी, अंग्रेजी, संस्कृत, बांग्ला, हिंदी, उर्दू, ग्रीक, लैटिन, फ्रेंच और हिब्रू भाषा जानते थे. लंदन से प्रकाशित ‘ए फिनाकन जर्नल, 1933’ में भी इसका जिक्र है. राममोहन का जन्म 22 मई, 1772 को बंगाल के हुगली जिले में हुआ था. इसी हुगली जिले में पंडित ईश्वर चंद्र विद्यासागर और भगवान श्री रामकृष्ण देव का जन्मस्थान है.

राममोहन के पितृ वंश वैष्णव और मातृ वंश शैव थे. राममोहन ने सभी धर्मों की पुस्तकें पढ़ी और उसके बाद अपनी पत्नी को बताया कि जिस तरह गाय लाल, काली, सफेद या दूसरे रंग की होती है, परंतु सबके दूध का रंग सफेद है. उसी तरह सब धर्म का बाहरी रूप अलग-अलग होता है, परंतु मूल सत्य एक है- ‘एकं सद्विप्रा बहुधा वदंति’. यही बात विवेकानंद के गुरु रामकृष्ण परमहंस देव ने भी कहा है- ‘जितना मत, उतना पथ’, सब धर्म सत्य है. ग्यारह सितंबर, 1893 को शिकागो की धर्मसभा में स्वामी विवेकानंद ने इन्हीं बातों का उद्घोष किया था.

नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने अपनी पुस्तक ‘द इंडियन स्ट्रगल’ में लिखा है कि राजा राममोहन राय नवयुग के पैगंबर थे. जवाहरलाल नेहरू ने अपनी पुस्तक ‘डिस्कवरी ऑफ इंडिया’ में राजा राममोहन राय के अवदान की काफी सराहना की है. राममोहन के समाज संस्कार की परिधि बहुत विस्तृत रही है. वे सती प्रथा के निवारण के साथ-साथ स्त्री शिक्षा को बढ़ावा देने के पक्षधर थे.

दहेज प्रथा का विलोप चाहते थे. पुरुषों के बहुविवाह पर रोक के हिमायती थे. अंतर्जली यात्रा, गंगा सागर में संतान विसर्जन पर प्रतिबंध के पक्षधर थे. संपत्ति में स्त्रियों के अधिकार के पैरवीकार थे. राममोहन अंग्रेजी और विज्ञान की शिक्षा पर जोर देते थे. उन्होंने धर्म संस्कार के क्षेत्र में भी काम किया और ब्रह्म समाज की स्थापना की. विवेकानंद और रबींद्रनाथ टैगोर दोनों ब्रह्म समाज में भजन, उपासना करने जाया करते थे. उन्होंने प्रार्थना के लिए बांग्ला में 32 भजनों की रचना की.

राजा राममोहन राय ने पत्रकारिता के क्षेत्र में भी योगदान दिया. उन्होंने 1821 में बंगाली पत्र ‘संवाद कौमुदी’ का कलकत्ता से प्रकाशन प्रारंभ किया. वर्ष 1822 में उन्होंने फारसी भाषा के पत्र मिरात-उल-अखबार और अंग्रेजी में ब्रह्मनिकल मैगजीन का प्रकाशन किया. इनके अलावा बांग्ला हेराल्ड और बंगदूत का भी प्रकाशन किया. वे हिंदू-मुस्लिम सद्भाव के भी पक्षधर थे. स्पेन के संविधान में राममोहन के योगदान के लिए उनकी सराहना की गयी है और इसके लिए एक पृष्ठ दिया गया है. जर्मनी के प्रो मैक्समूलर ने कहा है कि राममोहन ने पूर्व और पश्चिम को एक सूत्र में बांधने के लिए अहम योगदान दिया है.

पच्चीस जून, 1831 को ईस्ट इंडिया कंपनी ने राममोहन के सम्मान में एक भोज सभा का आयोजन किया था. राममोहन के कहने पर दिल्ली के बादशाह अकबर द्वितीय का सारा बकाया भुगतान कर दिया गया. कहते हैं कि यह राममोहन के व्यक्तित्व की विजय थी. जब राममोहन ने ब्रिटेन से फ्रांस जाने की इच्छा जतायी, तो पासपोर्ट न होने के कारण उन्हें इसकी अनुमति नहीं मिली.

तब राममोहन ने लिखा कि समस्त मानवजाति एक वृहद परिवार है. राममोहन से ब्रिटेन के राजा इतने प्रभावित हुए कि भारत में समाज सुधारने का परामर्श लेने के लिए संसद के वरिष्ठ लोगों की एक समिति बनायी. उन लोगों ने 56 प्रश्न किये. राममोहन ने लिखित में सबका जवाब दिया, जिसकी वहां बहुत सराहना हुई.

राममोहन का कुल जीवन 61 वर्ष, चार महीने, पांच दिन का रहा. वर्षों के अंधकार युग का अवसान करके एक आलोकमय नवभारत के नवजागरण के अग्रदूत पूर्णमासी की रात दो बजे ब्रह्मलीन हो गये. कहते हैं कि जब ब्रिटेन से राममोहन की मृत्यु का समाचार आया, तब रबींद्रनाथ टैगोर के पितामह द्वारकानाथ टैगोर और उनके पिता महर्षि देवेंद्रनाथ टैगोर बच्चों की तरह बहुत देर तक रोते रहे थे.

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

संबंधित ख़बरें

Trending News

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें