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गरीबी बढ़ने की आशंका

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अभी तो किसी तरह से संक्रमण को फैलाने से रोकने तथा संक्रमित लोगों को चिकित्सा देने की ही भारी चुनौती हमारे सामने है. अब आर्थिक स्तर पर भी निराशाजनक संकेत मिलने लगे हैं.

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अभी तो किसी तरह से संक्रमण को फैलाने से रोकने तथा संक्रमित लोगों को चिकित्सा देने की ही भारी चुनौती हमारे सामने है. अब आर्थिक स्तर पर भी निराशाजनक संकेत मिलने लगे हैं. जाहिर है कि जब विकसित देशों में ही बेरोजगारी तेजी से बढ़ रही है और औद्योगिक गतिविधियां सिकुड़ती जा रही हैं, तब भारत भी इस उथल-पुथल के माहौल में सुरक्षित नहीं रह सकता है. सामान्य कामकाज पर रोक से लेकर लॉकडाउन तक के उपाय कामगारों पर कहर बन कर टूटे हैं. विश्व श्रम संगठन ने एक रिपोर्ट में आशंका व्यक्त की है कि भारत में असंगठित क्षेत्र में काम करनेवाले करीब 40 करोड़ लोग काम छूटने की वजह से बहुत अधिक गरीबी के चंगुल में फंस सकते हैं.

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विश्व में दो अरब लोग असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं और इनमें से अधिकतर विकासशील और उभरती अर्थव्यवस्थाओं में हैं. चूंकि ऐसे कामगार बहुत मामूली आमदनी पर बसर करते हैं तथा उनके और उनके परिवार को सामाजिक सुरक्षा की सुविधाएं भी न के बराबर उपलब्ध हैं, सो कामकाज नहीं रहने पर उनकी गरीबी बहुत अधिक बढ़ जायेगी. पूरी दुनिया में लगभग 19.5 करोड़ पूर्णकालिक रोजगार भी खत्म हो सकता है. यह वैश्विक स्तर पर कुल कामकाजी घंटों का 6.7 फीसदी हिस्सा है. इसका मतलब यह है कि हमारे यहां संगठित क्षेत्र पर भी कोरोना महामारी का भारी असर होगा. एक आकलन के अनुसार, अभी ही बेरोजगारी दर 23 फीसदी को पार कर चुकी है और शहरों में यह आंकड़ा 30 फीसदी से ऊपर है.

उल्लेखनीय है कि हमारे देश में लगभग 90 फीसदी कामगार असंगठित या अनौपचारिक क्षेत्र में रोजगार पाते हैं. स्वाभाविक रूप से लॉकआउट होने और उत्पादन व वितरण व्यवस्था तबाह होने से सबसे अधिक नुकसान इन्हीं लोगों को होगा. लॉकडाउन के शुरुआती दिनों में देश के विभिन्न शहरों से बड़ी संख्या में मजदूरों के बदहवास पलायन का दुखद दृश्य हम देख चुके हैं. अगर वायरस से चल रही जंग आगामी कुछ दिनों या हफ्तों में संतोषजनक स्थिति में भी पहुंचती है, तब भी आर्थिक गतिविधियों को पटरी पार लाने में कई महीने लग सकते हैं.

श्रम संगठन ने रेखांकित किया है कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से मानवता और अंतरराष्ट्रीय सहयोग के सामने यह सबसे गंभीर चुनौती है. यह पूरी दुनिया को तय करना होगा कि भविष्य की दशा और दिशा क्या होगी तथा उसका असर गरीब और निम्न आय वर्ग पर क्या होगा. यदि किसी देश या दुनिया की अर्थव्यवस्था को फिर से गतिशील बनाना है, तो कामगारों के लिए काम करने और अपनी जिंदगी चलाने की स्थितियां भी पैदा करनी होगी. भारत विश्व के अन्य कई देशों की तरह वंचित तबके और मजदूर-किसान वर्ग को तात्कालिक राहत पहुंचाने की भरसक कोशिश कर रहा है, लेकिन आगे के लिए ठोस नीतियों का निर्धारण जल्दी किया जाना चाहिए.

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