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पश्चिम बंगाल में चुनावी हिंसा चिंता की बात

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राजनीतिक हिंसा पश्चिम बंगाल की परंपरा बनती जा रही है. पहले भी राजनीतिक हिंसा के मामलों में पश्चिम बंगाल पहले नंबर पर रहा करता था. हाल ही में उप्र में पंचायत चुनाव हुआ, मगर वहां ऐसी कोई हिंसा नहीं हुई. बिहार में भी बूथ कैप्चरिंग जैसी घटनाएं अब नहीं होतीं.

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पश्चिम बंगाल में पंचायत चुनाव का दिन एक उत्सव की तरह होना चाहिए था, मगर यह खून की होली खेलने का दिन हो गया. जिन लोगों की मौत हुई, वे गांव के गरीब, साधारण लोग थे. बीजेपी की ओर से जो लोग पंचायत चुनाव लड़ रहे हैं, वे पंडित दीनदयाल उपाध्याय रचित एकात्म मानवतावाद के दर्शन को पढ़ कर राजनीति नहीं कर रहे हैं, न ही वे श्यामा प्रसाद मुखर्जी के बारे में बहुत जानते हैं. वे नहीं जानते कि वे क्यों बीजेपी के साथ हैं या क्यों तृणमूल या सीपीएम या फिर कांग्रेस के साथ. यह बहुत दुखद बात है कि आज की तारीख में पश्चिम बंगाल में जो आम लोग राजनीति करते दिखाई दे रहे हैं, उनमें राजनीति या विचारधारा की जगह सामाजिक और आर्थिक पहलू ज्यादा महत्वपूर्ण हो गया है.

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एक राष्ट्रीय टीवी चैनल ने चुनाव के दौरान पश्चिम बंगाल से एक रिपोर्ट में बम बनाने वाले लोगों से खुफिया कैमरों के साथ बात की. उसमें इन बम बनाने वालों ने कहा कि वे किसी खास राजनीतिक दल के सदस्य नहीं हैं और किसी एक दल को बम नहीं बेचते हैं. जो भी खरीदना चाहे, वे उन्हें बम बेच सकते हैं. इस बार चुनाव में हर दल ने उनसे बम लिये यानी सत्ताधारी दल तृणमूल के लोग सत्ता में बने रहने के लिए बम का इस्तेमाल करते हैं, वहीं विपक्ष के लोग सत्ता हासिल करने के लिए बम खरीद रहे हैं. तो, पश्चिम बंगाल का ये नया चलन बहुत ही दुखद स्थिति का परिचायक है. एक समय था, जब पश्चिम बंगाल में पड़ोसी राज्य बिहार के मुंगेर से नदी के रास्ते रात के अंधेर में पारंपरिक हथियार और बम-बारूद आया करते थे. अभी पश्चिम बंगाल में देसी राइफल और बम जैसे हथियार बनाने वाले इतने अवैध कारखाने हो गये हैं कि बाहर से हथियार खरीदने की जरूरत नहीं पड़ती.

पश्चिम बंगाल में यह धंधा एक लघु और कुटीर उद्योग में बदलता जा रहा है. इसकी वजह यह है कि अब ये पेशा लोगों की आजीविका से जुड़ गया है. लोग इससे दूसरे धंधों की तरह कमाई कर जीवन चला रहे हैं. जैसे उत्तर बंगाल में बांग्लादेश की सीमा से लगे मालदा जिले में जाली नोट का अवैध धंधा चलता है, वैसे ही अब अवैध हथियारों का मामला कारोबार में बदल चुका है. यहां सवाल उठता है कि पश्चिम बंगाल में यदि भारी उद्योग-कारखाने लगे होते, आर्थिक प्रगति हुई होती, सभी लोगों के पास रोजगार होता, कमाई का जरिया होता, तो क्या वे फिर भी बम बनाने के अवैध कारखाने चलाते?

कुछ ही समय पहले, एक बम बनाने वाले के घर हुए धमाके में उसकी पत्नी की मौत हो गयी. कैमरों से उसके घर का हाल देख समझ में आ गया कि वह एक गरीब का घर है. पश्चिम बंगाल की राजनीति का यह सामाजिक-आर्थिक पहलू किसी दल विशेष की समस्या नहीं रहा. इस चलन ने इस प्रदेश की संस्कृति बदल दी है. पंचायत चुनाव में अभी जिन 18-20 लोगों की मौत हुई है, उनमें ज्यादा तृणमूल के लोग हैं. तो, सत्ता में जब तृणमूल है और पुलिस प्रशासन भी उसके ही नियंत्रण में है, तो उसके ही लोग ज्यादा कैसे मारे जा सकते हैं? इसका विश्लेषण करते हुए कहा जा रहा है कि पिछली बार, 2018 के पंचायत चुनाव में बहुत सारी सीटों पर विपक्ष का कोई उम्मीदवार खड़ा ही नहीं हो सका था, मगर भारतीय जनता पार्टी अब उस स्थिति से आगे निकल चुकी है. वर्ष 2019 के आम चुनाव में बीजेपी को 19 सीटें मिली थीं. वर्ष 2021 के विधानसभा चुनाव में तृणमूल ने भारतीय जनता पार्टी को बुरी तरह से हराया, मगर उनका वोट बैंक धीरे-धीरे बढ़ रहा है यानी भारतीय जनता पार्टी अब टक्कर दे रही है, जो पहले नहीं हो सका था.

पंचायत चुनाव इस मायने में अलग होते हैं कि इनमें हर घर से कोई-न-कोई लड़ना चाहता है, क्योंकि जीत जाने पर पैसे मिलते हैं, पंचायत प्रधान को हर महीने छह हजार रुपये की तनख्वाह मिलती है. साथ ही, विभिन्न योजनाओं से भी कमाई की संभावना होती है. ऐसे में एक ही घर से एक सदस्य तृणमूल, तो दूसरा भारतीय जनता पार्टी से या निर्दलीय खड़ा हो जाता है. पश्चिम बंगाल में पंचायत चुनाव पर लोगों की ऐसी निर्भरता दूसरे राज्यों में कम दिखाई देती है, लेकि, राजनीतिक हिंसा पश्चिम बंगाल की परंपरा बनती जा रही है. पहले भी, राजनीतिक हिंसा के मामले में पश्चिम बंगाल पहले नंबर पर रहा करता था. हाल ही में उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव हुआ, मगर वहां ऐसी कोई हिंसा नहीं हुई. बिहार में भी बूथ कैप्चरिंग जैसी घटनाएं अब नहीं होतीं. पश्चिम बंगाल में यदि पंचायत चुनाव में सत्ताधारी दल के ही लोग हिंसा में मारे गये, तो भी यह राज्य सरकार की जिम्मेदारी बनती है, क्योंकि पुलिस उनके मातहत है. यदि अवैध हथियार बन रहे हैं, तो वह अचानक तो नहीं बन रहे. पश्चिम बंगाल में ऐसी राजनीतिक हिंसा को रोकने के लिए दलगत राजनीति छोड़ कर सहमति बनायी जानी चाहिए. हिंसा के इस चक्र को बंद करने के लिए राज्य में शिक्षा और उद्योग पर ध्यान दिया जाना चाहिए. पश्चिम बंगाल कभी पुनर्जागरण का केंद्र हुआ करता था. वहां आज राजनीति में ऐसी गिरावट निश्चय ही दुखद है.

(ये लेखक के निजी विचार हैं)

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