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व्हाट्सएप की हेठी

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डाटा संग्रहण व सुरक्षा का मामला बेहद संवेदनशील है. इस संबंध में व्यापक कानूनी पहलों की दरकार है.

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इंटरनेट और सोशल मीडिया से जुड़ी कंपनियों की मनमानी रोकने के लिए ठोस कदम उठाने की जरूरत बढ़ती जा रही है. कुछ महीने पहले व्हाट्सएप ने नयी निजता नीति बनायी थी, जिसे स्वीकार करने के बाद ही लोग इस सेवा को इस्तेमाल कर सकते थे. तब इसका दुनियाभर में व्यापक विरोध हुआ था और भारत सरकार ने भी व्हाट्सएप पर दबाव डाला था. इसके बाद व्हाट्सएप ने लोगों को भरोसा दिलाया था कि उनके डाटा और निजता को सुरक्षित रखने के लिए कंपनी प्रतिबद्ध है.

लेकिन एक बार फिर वही बदलाव लागू होने लगे हैं. व्हाट्सएप ने इस संदेश सेवा को इस्तेमाल करनेवाले ऐसे लोगों की सेवाएं सीमित या बंद करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है, जो निजता से जुड़े नये नियमों से सहमत नहीं हैं. इस रवैये पर केंद्रीय सूचना तकनीक मंत्रालय का नाराज होना स्वाभाविक है. सरकार ने बार-बार नये नियमों को वापस लेने का आग्रह किया था, पर व्हाट्सएप ने इन आग्रहों को अनसुना कर दिया.

अब सरकार ने फिर से नोटिस जारी करते हुए कहा है कि यदि सात दिनों के भीतर व्हाट्सएप उचित निर्णय नहीं लेता है, तो उसके खिलाफ कार्रवाई की जायेगी. व्हाट्सएप सोशल मीडिया मंच फेसबुक की सहयोगी कंपनी है. भारत में इन दोनों सेवाओं को करोड़ों लोग इस्तेमाल करते हैं. नये बदलाव के तहत व्हाट्सएप लोगों के कारोबारी संचार को फेसबुक के साथ साझा कर सकती है. यह भारतीय कानूनों और नियमों के प्रावधानों का उल्लंघन है.

तकनीकी पर्यवेक्षकों का मानना है कि ये सूचनाएं व्यावसायिक लाभ के लिए बहुत सारी अन्य कंपनियों के साथ साझा की जायेंगी. उल्लेखनीय है कि इंस्टाग्राम भी फेसबुक की ही एक अन्य सेवा है. साझा करने की जटिल और अपारदर्शी व्यवस्था में लोगों को पता भी नहीं चल सकेगा कि उनके किस डाटा को किसके साथ साझा किया जा रहा है और उसका क्या इस्तेमाल हो रहा है. हालांकि व्हाट्सएप और अन्य तकनीकी कंपनियां निजी सूचनाओं की सुरक्षा का दावा करती हैं, लेकिन बार-बार ऐसे दावे गलत साबित होते रहते हैं.

जैसा कि सरकार की ओर से कहा गया है, नागरिकों के अधिकारों एवं हितों की सुरक्षा की जिम्मेदारी भारत सरकार की है और उसे इस संबंध में समुचित कार्रवाई करनी चाहिए. उल्लेखनीय है कि व्हाट्सएप ने यूरोपीय संघ में विरोध के बाद अपने नियमों को वापस ले लिया है, लेकिन भारत में उसने अदालतों, प्रतिस्पर्द्धा आयोग और सरकार के निर्देशों पर अमल करने में दिलचस्पी नहीं दिखायी है. यदि उसका यह अड़ियल रवैया बरकरार रहता है, तो सरकार को कड़ा रुख अपनाने के लिए बाध्य होना पड़ेगा.

डाटा संग्रहण व सुरक्षा का मामला बेहद संवेदनशील है. इस संबंध में व्यापक कानूनी पहलों की दरकार है. इंटरनेट और स्मार्ट फोन के विस्तार के साथ सोशल मीडिया और ई-कॉमर्स का दायरा भी बढ़ता जा रहा है. ऐसे में अगर नियमन और उसके पालन को लेकर कड़ाई नहीं होगी, तो भविष्य बेहद चुनौतीपूर्ण हो सकता है.

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