16.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

इस्राइल-फिलिस्तीन संघर्ष और भारत

Advertisement

संयुक्त राष्ट्र में भारत के राजदूत टीएस तिरुमूर्ति ने अपने देश का नजरिया रखते हुए कहा कि भारत हर तरह की हिंसा की निंदा करता है.

Audio Book

ऑडियो सुनें

इस्राइल और फिलिस्तीनी चरमपंथी संगठन हमास ने 11 दिन की लड़ाई के बाद आपसी सहमति से संघर्ष विराम का फैसला कर लिया है. दिलचस्प यह है कि दोनों पक्ष इसे अपनी जीत बता रहे हैं. इस दौरान 240 से अधिक लोग मारे गये, जिनमें ज्यादातर मौतें फिलिस्तीनी इलाके गाजा में हुईं. अमेरिका, मिस्र, कतर और संयुक्त राष्ट्र ने इस्राइल और हमास के बीच मध्यस्थता में अहम भूमिका निभायी.

- Advertisement -

यह संघर्ष यरुशलम में पिछले लगभग एक महीने के तनाव का नतीजा है. इसकी शुरुआत पूर्वी यरुशलम के एक इलाके से फिलिस्तीनी परिवारों को निकालने की धमकी के बाद शुरू हुई, जिन्हें यहूदी अपना बताते हैं और वहां बसना चाहते हैं. इसको लेकर अरब आबादी वाले इलाकों और यरुशलम की अल-अक्सा मस्जिद के पास प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच झड़पें हुईं. अल-अक्सा मस्जिद मक्का मदीना के बाद मुसलमानों का तीसरा सबसे पवित्र स्थल है. इसके बाद तनाव बढ़ता गया और 10 मई को संघर्ष छिड़ गया.

संयुक्त राष्ट्र में भारत के राजदूत टीएस तिरुमूर्ति ने अपने देश का नजरिया रखते हुए कहा कि भारत हर तरह की हिंसा की निंदा करता है. भारत फिलिस्तीनियों की जायज मांग का समर्थन करता है और वह दो-राष्ट्र की नीति के जरिये समाधान को लेकर वचनबद्ध है. भारतीय राजदूत ने कहा कि भारत गाजा पट्टी से होनेवाले रॉकेट हमलों की निंदा करता है, साथ ही इस्राइल की कार्रवाई में भी बड़ी संख्या में आम नागरिक मारे गये हैं, जिनमें औरतें और बच्चे भी शामिल हैं, जो बेहद दुखद है.

भारतीय राजदूत ने कहा कि ताजा संघर्ष के बाद इस्राइल और फिलिस्तीनी प्रशासन के बीच बातचीत दोबारा शुरू करने की जरूरत और बढ़ गयी है. यह सच है कि एक समय भारत फिलिस्तीनियों के बहुत करीब रहा है और उसने फिलिस्तीन राष्ट्र के निर्माण संघर्ष में उनका साथ दिया. लेकिन भारत में फिलिस्तीनियों के लिए यह समर्थन लगातार कम होता जा रहा है. वर्ष 2017 में प्रधानमंत्री मोदी ने इस्राइल की यात्रा की. इस्राइल की यात्रा करनेवाले वे पहले भारतीय प्रधानमंत्री थे.

प्रधानमंत्री मोदी की इस्राइल यात्रा एक तरह से भारत की यह सार्वजनिक घोषणा भी थी कि फिलिस्तीन के साथ प्रगाढ़ संबंध पुरानी बात है और इस्राइल के साथ रिश्तों का एक नया अध्याय शुरू हो रहा है. मौजूदा सच यह है कि भारत अब इस्राइल का एक भरोसेमंद साथी है. वह इस्राइल से सैन्य साजो-सामान खरीदनेवाला सबसे बड़ा देश है.

डेयरी, सिंचाई, ऊर्जा और अन्य कई तकनीकी क्षेत्रों में दोनों देशों की साझेदारी है. पिछले दौर के संबंधों पर निगाह डालें, तो भारत ने 15 सितंबर, 1950 को इस्राइल को मान्यता दी थी. अगले साल मुंबई में इस्राइल ने अपना वाणिज्य दूतावास खोल दिया, लेकिन राजनीतिक कारणों से भारत इस्राइल में अपना वाणिज्य दूतावास नहीं खोल पाया. दोनों देशों को एक दूसरे के यहां आधिकारिक तौर पर दूतावास खोलने में लगभग 42 साल लगे.

जहां प्रधानमंत्री मोदी हमेशा से इस्राइल के साथ गहरे रिश्तों के हिमायती रहे हैं, जबकि विदेश मंत्रालय के नीति-निर्माताओं में यह द्वंद्व रहा है कि इस्राइल का कितना साथ दिया जाए. वे आशंकित रहते थे कि इसकी कीमत कहीं मध्य-पूर्व के लगभग 50 मुल्कों की नाराजगी से न उठानी पड़े.

मुझे तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के साथ इस्राइल और फिलिस्तीन क्षेत्र की यात्रा करने और वहां के हालात देखने-समझने का मौका मिला है. हम सड़क के रास्ते फिलिस्तीनी इलाकों में गये और रमल्ला में एक रात बितायी. फिलिस्तीन से इस्राइल की यात्रा के दौरान ऐसे अनेक इलाके पड़ते हैं, जहां बस्तियों का घालमेल है. यहां दोनों समुदाय के घर क्रीम रंग के पत्थरों से बने होते हैं, जिन्हें यरुशलम स्टोन कहा जाता है.

लेकिन इस्राइल से जब फिलिस्तीन इलाकों में जब आप पहुंचते हैं, तो आपको दोनों इलाकों की संपन्नता का अंतर साफ नजर आने लगता है. फिलिस्तीनी इलाके किसी छोटे भारतीय शहर की तरह नजर आते हैं, जबकि इस्राइल के यरुशलम या फिर तेल अवीव एकदम साधन संपन्न किसी पश्चिमी देश के शहर लगते हैं. आंकड़ों के अनुसार फिलिस्तीनी लोगों की प्रति व्यक्ति आय लगभग 3500 डॉलर है, जबकि इस्राइल की प्रति व्यक्ति आय लगभग 43 हजार डॉलर है.

तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के साथ इस्राइल और फिलिस्तीन क्षेत्र की यात्रा की कहानी दिलचस्प है. दरअसल, भारत इसके पहले तक इस्राइल के साथ अपने रिश्तों को दबा-छिपा कर रखता आया था. दूसरी ओर प्रधानमंत्री मोदी का इस्राइल के प्रति झुकाव जगाजाहिर है और वे वहां की यात्रा करना चाहते थे. विदेश मंत्रालय मध्य-पूर्व के देशों की प्रतिक्रिया को लेकर सशंकित था. काफी विमर्श के बाद यह तय हुआ कि राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी पहले यात्रा करेंगे और इससे प्रतिक्रिया का अंदाजा लगेगा.

लेकिन प्रणब बाबू फिलिस्तीनी लोगों का साथ छोड़ने के पक्ष में नहीं थे. उन्होंने स्पष्ट कर दिया था कि वे इस्राइल जायेंगे, लेकिन साथ ही रमल्ला, फिलिस्तीन इलाके में भी जायेंगे. विदेश मंत्रालय ने काफी माथापच्ची के बाद जॉर्डन, फिलिस्तीन और इस्राइल का कार्यक्रम बनाया. यात्रा में जॉर्डन को भी डाला गया ताकि यात्रा सभी पक्षों की नजर आये.

यह पूरा क्षेत्र अशांत है. लेकिन प्रणब दा तो ठहरे प्रणब दा. उन्होंने एक रात फिलिस्तीन क्षेत्र में गुजारने का कार्यक्रम बनाया था. उनके साथ हम सब पत्रकार भी थे. इस्राइली सीमा क्षेत्र और फिलिस्तीनी क्षेत्र में जगह-जगह सैनिक तैनात नजर आ रहे थे. फिलिस्तीन क्षेत्र में हम लोग फिलिस्तीनी नेता और राष्ट्रपति महमूद अब्बास के मेहमान थे. किसी बड़े देश का राष्ट्राध्यक्ष पहली बार फिलिस्तीनी क्षेत्र में रात गुजार रहा था. हमें बताया गया कि नेता हेलिकॉप्टर से आते हैं और बातचीत कर कुछ घंटों में तुरंत वहां से निकल जाते हैं.

हम लोगों को एक सामान्य से दो मंजिला होटल में ठहराया गया, जिसमें ऊपर की मंजिल में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी और उनकी टीम ठहरी हुई थी और नीचे की मंजिल में पत्रकार ठहरे हुए थे. अगले दिन फिलिस्तीन के अल कुद्स विश्वविद्यालय में प्रणब दा को मानद डॉक्टरेट की उपाधि से सम्मानित किया गया.

उसके बाद उनका भाषण था, लेकिन एक फिलिस्तीनी छात्र की इस्राइली सैनिकों की गोलीबारी में मौत के बाद वहां हंगामा हो गया. किसी तरह बचते-बचाते हम लोग यरुशलम (इस्राइल) पहुंचे. यहां संसद में संबोधन समेत अनेक कार्यक्रम थे, जिनमें प्रणब मुखर्जी ने अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज करायी. मेरा मानना है कि प्रणब मुखर्जी ने ही एक तरह से प्रधानमंत्री मोदी की इस्राइल यात्रा की नींव रखी थी.

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें