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केरल में ध्रुवीकरण की राजनीति

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प्रभु चावला

एडिटोरियल डायरेक्टर

द न्यू इंडियन एक्सप्रेस

केरल पर एक प्रेत मंडरा रहा है, सांप्रदायिकता का प्रेत. मार्क्स के मैनिफेस्टो की पंक्ति के हवाले अब यह कहना उचित प्रतीत है, जब मार्क्सवाद एक अप्रतिष्ठित रूढ़ि के रूप में बचा हुआ है और मार्क्सवादी विलुप्त होते प्राणियों की तरह हो चुके हैं. वर्गों के विरूद्ध जन को खड़ा करने के लिए उनके पास एक बेकार किताब बच गयी है और बचे हुए वामपंथी स्टालिनवादी स्वर्ग तक पहुंचने के लिए नये रास्तों की तलाश कर रहे हैं, लेकिन केरल के मुख्यमंत्री पिनरई विजयन ने ध्रुवीकरण से खतरनाक सौदा कर लिया है.

यह कॉमरेड, जिनकी आयु 75 साल है, मार्क्सवादी अस्त-व्यस्तता के अहम उदाहरण हैं. उनकी पार्टी माकपा धर्म और क्षेत्रवाद से घृणा करती है, लेकिन अब वह संप्रदायवाद के निकट आ रही है. चूंकि किसी दल की सफलता को वोटों और सीटों के हिसाब से देखा जाता है, तो माकपा लगभग दिवालिया हो चुकी है और उसे वैचारिक आइसीयू में अकेला छोड़ दिया गया है. कभी यह तीन राज्यों में शासन करती थी, उसके पास चालीस से अधिक लोकसभा सीटें होती थीं और दस से अधिक राज्यों में उसकी उपस्थिति थी.

उसने पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा खो दिया है. इसके पास आधा दर्जन से भी कम सांसद है और वह अन्य विपक्षी दलों के भरोसे चल रही है. अप्रैल-मई, 2021 के विधानसभा चुनाव की तैयारी के क्रम में विजयन का निराशाजनक चयन यह इंगित करता है कि वे ‘बांटो और राज करो’ की व्यावहारिकता को पसंद करते हैं और इसलिए एक हिंदू-ईसाई गठबंधन बना रहे हैं.

बीते 55 महीनों में बतौर मुख्यमंत्री उनका कामकाज बहुत से मुख्यमंत्रियों से बेहतर रहा है, लेकिन अब उन्हें लगता है कि केवल लाल झंडा लहराने से मतदाताओं को प्रभावित नहीं किया जा सकता है, जो जाति व धर्म के आधार पर लामबंद हो रहे हैं. उनका वर्तमान मिशन केरल के दो बड़े अल्पसंख्यक समुदायों- ईसाई और मुस्लिम- के बीच खाई पैदा करना है.

केरल की 3.5 करोड़ की आबादी में इन समुदायों का हिस्सा 40 प्रतिशत से अधिक है. इन्हें केरल का साम्यवादी बनाने का उद्देश्य है. ये समुदाय परंपरागत तौर पर कांग्रेस के समर्थक रहे हैं. इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग लगभग चार दशकों से कांग्रेसनीत यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट का हिस्सा है. विजयन इस हवाले से कांग्रेस को लीग का पिछलग्गू कह रहे हैं. उन्हें उम्मीद है कि केरल की आबादी में बदलाव और मुस्लिम पार्टियों के फ्रंट पर बढ़ते असर से ईसाई सचेत हो जायेंगे.

इस कॉमरेड के चिंतित होने की वजहें हैं. मुस्लिमों के समर्थनवाली वेल्फेयर पार्टी ने स्थानीय निकायों के चुनाव में वाम उम्मीदवारों के खिलाफ रणनीतिक साझेदारी बनायी थी. नगरपालिका चुनाव में इस्लामिक पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया की राजनीतिक इकाई सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया के उल्लेखनीय प्रदर्शन ने अन्य समुदायों को बेचैन कर दिया है. विजयन ने इस मौके को भुनाते हुए ईसाइयों के साथ संवाद शुरू कर दिया, जिन तक पहुंचने की कोशिश भाजपा भी कर रही है.

सबरीमला मामले में अपने रुख के कारण माकपा ने अपने हिंदू जनाधार का बड़ा हिस्सा खो दिया है, जिसमें मुख्य रूप से अन्य पिछड़ा वर्ग, दलित और आदिवासी हैं. इसकी भरपाई के लिए ईसाइयों को लुभाने और वैसे मुस्लिमों को साथ लाने की योजना है, जिन्हें लगता है कि आदि शंकराचार्य के केरल में केसरिया विस्तार को वाम मोर्चा ही रोक सकता है. ईसाई समुदाय के एक हिस्से द्वारा समर्थित केरल कांग्रेस (मणि) को विजयन ने लेफ्ट डेमोक्रेटिक मोर्चे से जोड़ा है. बिशपों से मिल कर ईसाइयों को उन्होंने यह भरोसा दिलाया है कि चर्च कानून को लागू करने का उनकी सरकार का कोई इरादा नहीं है.

मुख्यमंत्री के आश्वासन की वजह से राज्य सरकार के लेखा-जोखा से चर्च बाहर रहेंगे. इससे पहले राज्य विधि सुधार आयोग के प्रमुख के आधिकारिक वेबसाइट पर एक प्रस्ताव डाला गया था. शासकीय अधिकार के सांप्रदायिक व्यवहार का पहला उदाहरण मार्क्सवादियों के धर्मनिरपेक्ष दावे को दागदार करता है. जून 16, 1969 को तत्कालीन मुख्यमंत्री ईएमएस नंबूदरीपाद ने पलक्क्ड़ और कोझिकोड के हिस्सों से मलप्पुरम नामक नया जिला बनाया था. सांप्रदायिकता और साम्यवाद के मिलन की इस परिघटना में पहली बार एक समुदाय के लिए एक अलग जिला बनाया गया था.

यह मुस्लिम लीग के समर्थन के एवज में किया गया था. सरकार के विरोधियों ने इसे द्वि-राष्ट्र सिद्धांत की अवैध संतान का नाम दिया था. इस जिले में उन सभी इलाकों को एक साथ कर दिया गया, जहां 1921 में मापिल्ला विद्रोह हुआ था. विजयन समझ चुके हैं कि भाजपा ने ध्रुवीकरण कर वाम मोर्चे के हिंदू मतदाताओं के बड़े हिस्से को अपनी ओर खींच लिया है. केसरिया पार्टी को भले ही सीटें न मिली हों, पर बीते दस सालों से उसके वोट लगातार बढ़ रहे हैं.

भाजपा बढ़ते इस्लामिक कट्टरपंथ और आबादी के रूप बदलने को लेकर लगातार मुखर रही है. तीन दशकों से ईसाई व हिंदू आबादी घट रही है और मुस्लिम आबादी बढ़ रही है. हिंदू जाति के आधार पर विभाजित हैं. इसमें एझवा और नायर 36 प्रतिशत से कुछ अधिक हैं, जिनके वोट कांग्रेस और कम्युनिस्टों में बंटते हैं.

केरल के मुख्यमंत्री विवादों से भी घिरे रहते हैं. वे राज्य की पहली राजनीतिक हत्या, जिसमें वी रामाकृष्णन को अप्रैल, 1969 में मार दिया गया था, में आरोपित थे. बाद में वे बरी हो गये. वे आपातकाल में भी गिरफ्तार हुए. वर्ष 1998 में कुख्यात एसएन लवालिन मामले में उन पर भ्रष्टाचार का अभियोग लगा. सीबीआइ का आरोप था कि बिजली जेनरेटरों की मरम्मत के ठेके में उनकी वजह से राजकोष को भारी नुकसान हुआ.

वे फिर बरी हो गये. पार्टी के भीतर और बाहर के उनके विरोधी इन मामलों के सहारे उन्हें मुख्यमंत्री बनने से रोकने की कोशिश करते रहे थे. अब उनके प्रमुख सचिव को ही सोना तस्करी मामले में गिरफ्तार किया गया है. लेकिन कॉमरेड विजयन अडिग हैं. माकपा के राष्ट्रीय नेता अपनी अप्रासंगिकता की वजह से बेमानी हैं.

वे राहुल गांधी और विपक्षी नेताओं की तरह भार हैं. माकपा के पास नंबूदरीपाद, ज्योति बसु, एके गोपालन, सोमनाथ चटर्जी, हरकिशन सिंह सुरजीत आदि की तरह राजनीतिक अभिव्यक्ति कर सकनेवाला एक भी नेता नहीं है. विजयन को पता है कि सारा दारोमदार उन्हीं पर है. वे खतरनाक रूप से लाल में थोड़ा केसरिया और हरा मिला रहे हैं.

Posted By : Sameer Oraon

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