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सतीश सिंह

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मुख्य प्रबंधक

आर्थिक अनुसंधान विभाग

भारतीय स्टेट बैंक, मुंबई

लक्ष्मी विलास बैंक (एलवीबी) को संकट से बाहर निकालने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक ने टीएन मनोहरन को प्रशासक नियुक्त किया है. मनोहरन के अनुसार, बैंक के पास जमाकर्ताओं के पैसे लौटाने के लिए पर्याप्त धन है, लेकिन सवाल है कि बैंक खस्ताहाल क्यों हुआ? इसके लिए कौन जिम्मेदार है?

बैंकों के नियामक क्या कर रहे थे? बैंक के डूबने पर निवेशकों की जिंदगीभर की कमाई एक झटके में स्वाहा हो जाती है. चौरानवे साल पुराने इस निजी बैंक का विलय सिंगापुर के डीबीएस बैंक के साथ किये जाने का प्रस्ताव क्या सही है? क्या हमारे देसी बैंक के साथ विलय नहीं किया जा सकता था?

हालांकि, मनोहरन का कहना है कि बैंक का विलय डीबीएस बैंक की भारतीय इकाई के साथ किया जा रहा है. लेकिन मनोहरन के तर्क को समीचीन नहीं माना जा सकता है. पूर्व में भी डूबने वाले बैंकों का सफल विलय देसी बैंकों के साथ किया गया है. भारत में चाहे यस बैंक हो, आइडीबीआई या पीएनबी हो, सबको बचा लिया गया है. आइडीबीआई बैंक को बचानेवाले भारतीय जीवन बीमा निगम के शेयर इसमें बहुलता में हैं, जिससे यह बैंक पहले से मजबूत हुआ है.

हालांकि, सहकारी बैंक भाग्यशाली नहीं हैं. एलवीबी का मामला सामने आने के तुरंत बाद रिजर्व बैंक ने इसके विलय की घोषणा डीबीएस के साथ कर दी, लेकिन पंजाब एंड महाराष्ट्र को-ऑपरेटिव बैंक (पीएमसी) के संकट को अभी भी दूर नहीं किया गया है. एलवीबी ने पूर्व में इंडिया बुल्स हाउसिंग और क्लिक्स कैपिटल के साथ विलय की कोशिश की थी, लेकिन उसे केंद्रीय बैंक ने मंजूरी नहीं दी.

एलवीबी की 570 शाखाएं हैं, जिनमें 85 प्रतिशत दक्षिण भारत में है और इसमें आधे से तो अधिक तमिलनाडु में हैं. इसका जमा घटकर 20,050 करोड़ रुपये हो गया है. इसमें चालू खाता और बचत खाता के 6,070 करोड़ रुपये हैं और शेष मियादी खाते के जमा हैं. जमाकर्ताओं की संख्या लगभग 20 लाख है. एलवीबी ने करीब 17,000 करोड़ रुपये का कर्ज विविध ऋणियों को दे रखा है, जो सितंबर तिमाही में 16,630 करोड़ रुपये था.

एलवीबी को अस्तित्व बनाये रखने के लिए 1,500 करोड़ रुपये की जरूरत है. वहीं, डीबीएस की कुल रेगुलेटरी पूंजी 7,109 करोड़ रुपये है, जबकि एलवीबी के विलय के बाद जरूरत 7,023 करोड़ रुपये की ही है. इसकी कॉमन इक्विटी टियर-1 कैपिटल 12.84 प्रतिशत है, जबकि रिजर्व बैंक के मुताबिक, जरूरत 5.5 प्रतिशत की है. जून, 2020 तक डीबीएस बैंक भारत का सीआरएआर 15.99 प्रतिशत था, जबकि एलवीबी का 0.17 प्रतिशत था.

सभी वित्तीय मानकों पर खरा उतरने के कारण विलय के बाद भी डीबीएस के परिचालन पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा. इसकी पुष्टि मनोहरन ने भी की है.

फिलहाल, एलवीबी पर एक महीने के लिए लेन-देन पर रोक लगा दी गयी है. ग्राहकों में अफरातफरी मची हुई है, जिसका कारण केवल 25,000 रुपये निकालने की अनुमति का होना है. आपात स्थिति में ग्राहक पांच लाख रुपये तक की निकासी कर सकते हैं.

मनोहरन के अनुसार, 16 दिसंबर के बाद इन बंदिशों को हटा लिया जायेगा. एलवीबी का टियर-1 पूंजी पर्याप्तता अनुपात 30 जून, 2020 तक नकारात्मक 0.88 प्रतिशत हो गया था, जबकि यह न्यूनतम 8.875 प्रतिशत होना चाहिए. इसमें जमा राशि में भी सिकुड़न आ रही थी और कुल ऋण परिसंपत्तियों में 20 प्रतिशत से अधिक गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (एनपीए) में तब्दील हो चुकी थी, जबकि मार्च, 2017 में इसका एनपीए केवल 2.7 प्रतिशत था.

इन सब वजहों से 25 सितंबर को एलवीबी की सालाना आम बैठक में शेयरधारकों ने निदेशकों को बाहर का रास्ता दिखा दिया. शेयरधारकों ने बैंक की खराब हालत के लिए निदेशकों और प्रबंध निदेशक एवं मुख्य कार्याधिकारी एस सुंदर को भी दोषी माना.

एलवीबी ने अपनी बर्बादी की पटकथा खुद से लिखी है. इसने 720 करोड़ रुपये रैनबैक्सी के पूर्व प्रमोटर्स मलविंदर और शिविंदर सिंह की कंपनियों में निवेश किये था, जिसके बदले बैंक के पास मियादी जमा रखी गयी, लेकिन मामले के अदालत में जाने से बैंक का पैसा फंस गया. त्रुटिपूर्ण कारोबारी योजना, जरूरत से अधिक हस्तक्षेप करनेवाले प्रवर्तक के होने, कमजोर निदेशक मंडल और कारोबारी निरंतरता के अभाव में एलवीबी की वित्तीय स्थिति लगातार खराब होती चली गयी.

तेजी से कॉरपोरेट ऋण बढ़ाने, वित्तीय अनियमितता, खुदरा कारोबार पर ध्यान नहीं देने से भी बैंक की वित्तीय स्थिति खस्ताहाल हुई. सितंबर, 2019 में रिजर्व बैंक ने इसे तत्काल वित्तीय सुधार की जरूरत वाले बैंकों की श्रेणी में डाल दिया. इसके साथ 21 सरकारी बैंकों में से 11 बैंकों को भी पीसीए में डाला गया था. पीसीए में डालने के बाद बैंक न तो नयी शाखा खोल सकता है और न ही उधारी दे सकता है और न ही कोई अन्य नया फैसला ले सकता है.

एलवीबी ने 30 जून, 2020 को 0.17 प्रतिशत पूंजी पर्याप्तता अनुपात (सीएआर) और 1.83 प्रतिशत नकारात्मक टियर-1 सीएआर दर्ज किया था. नियामकीय अनुपालन के लिए इसे क्रमश: 10.875 प्रतिशत और 8.875 प्रतिशत रहना जरूरी है. बैंकों में जमा पैसों को सुरक्षित मानने के कारण ही आज 140 लाख करोड़ रुपये जमा हैं, लेकिन बैंकों के डूबने से ग्राहकों का विश्वास डगमगा रहा है.

आमजन अपनी गाढ़ी कमाई बैंक में सुरक्षा के लिए रखते हैं. अगर इसी तरह बैंक डूबते रहे तो निवेशकों का भरोसा कम होगा और वे बैंक में पैसा जमा करने से परहेज करेंगे, जिससे बैंकों की उधारी दरों में इजाफा होगा, क्योंकि उन्हें सस्ती पूंजी मिलने में मुश्किल होगी.

posted by : sameer oraon

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