17.1 C
Ranchi
Thursday, February 13, 2025 | 08:18 am
17.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

भाषा : दुनिया को जानने का माध्यम

Advertisement

कोई भी भाषा या बोली सिर्फ संवाद स्थापित करने का माध्यम मात्र नहीं, अपितु यह मानव के आर्थिक, शैक्षणिक, लोकतांत्रिक और सांस्कृतिक अधिकारों को सुनिश्चित करने का सबसे महत्वपूर्ण और सशक्त माध्यम है.

Audio Book

ऑडियो सुनें

सुधांशु शेखर

सहायक प्राध्यापक, भाषा

विज्ञान, झारखंड केंद्रीय विश्वविद्यालय, रांची

संसार में लगभग सात हजार से अधिक भाषाएं बोली जाती है़ं ये सिर्फ भाषा नहीं हैं, बल्कि सात हजार प्रकार के भाषिक जगत, विवेचना के तरीके, ज्ञान के भंडार और हमारी दुनिया को समझने और जानने के माध्यम है़ं दुर्भाग्यवश, इनमें से लगभग आधी भाषाएं आज विलुप्ती की कगार पर है़ं भाषाई विविधता की खूबी यही है कि इससे हमें पता चलता है कि मानव मस्तिष्क और मन कितना दिलचस्प और जटिल है़ दुखद है की हमइस भाषाई विविधता को खोते जा रहे है़ं.

यदि हमने अपनी भाषाओं का यूं ही लोप होने दिया तो इससे जुड़े ज्ञान परंपरा, रचनात्मकता, इतिहास, लोकज्ञान हमेशा के लिए काल का ग्रास बन जायेंगे़ इससे भी दुखद यह है कि मानव मस्तिष्क के बारे में आधुनिक न्यूरोसाइंटिस्ट और भाषा वैज्ञानिकों के पास अभी तक जितना भी ज्ञान है, वह मुख्यतः अमेरिकी आंग्लभाषी अध्येताओं के अध्ययन पर ही आश्रित है़ अमेरिका को छोड़कर प्रायः विश्वभर के लोगों द्वारा मानव मस्तिष्क से जुड़े तथ्यों पर आधुनिक भाषा विज्ञान की दृष्टि से बहुत ज्यादा विचार नहीं हुआ है और बहुत बड़ी आबादी भाषिक अध्ययन के इस पक्ष से कटी हुई है़ इस कारण मस्तिष्क और मन से जुड़ा हमारा ज्ञान वास्तव में अविश्वनीय रूप से संकीर्ण, पूर्वाग्रह से ग्रसित और पक्षपाती है़

यूनेस्को द्वारा प्रतिपादित सूची के अनुसार, भारत की लगभग 196 भाषायें विलुप्ती की ओर तेजी से बढ़ रही है, जो संख्या के हिसाब से विश्व में सबसे ज्यादा है़ं यह एक गंभीर मसला है़ सांस्कृतिक, भाषिक और जैव सांस्कृतिक विविधता भारत की एकता व अखंडता का सबसे मजबूत स्तंभ है़ भारत की प्रामाणिक भाषाई स्थिति को जानने का एक मात्र स्रोत आज भी ग्रियर्सन द्वारा संपन्न भारतीय भाषा सर्वेक्षण ही है़ इतना ही नहीं, हमारे देश में भाषा को लेकर कोई स्पष्ट नीति भी नहीं है़ हम एक राष्ट्रभाषा की बात तो करते हैं, लेकिन मर रही स्थानीय भाषाओं और संस्कृतियों को नजरअंदाज करते है़ं

‘चार कोस पर पानी बदले, आठ कोस पर वाणी’, ये उक्ति स्वत: ही भौगोलिक एवं भाषिक विविधता को दर्शाती है़ जिस भाषा का प्रयोग किसी समाज में होता है, वही भाषा उस समाज के विभिन्न पहलुओं को रेखांकित भी करती है़ व्याकरण केवल भाषा का लेखा-जोखा मात्र नहीं है, यह विचारों, संस्कृतियों, व्यवहारों, वैश्विक चिंतनों एवं भाषा-भाषी लोगों की पहचान का कूटबद्ध दस्तावेज है़ किसी भी भाषा का व्याकरण उस भाषा के बोलने वालों के भौगौलिक और सांस्कृतिक विविधता को अंतर्निहित किये रखता है, जैसे हिंदी में आप और तुम दो अलग-अलग शब्दों से छोटे-बड़े का अंतर तो समझ में आता है,

लेकिन अंग्रेजी के ‘यू’ शब्द से यह भेद स्पष्ट नहीं होता है़ अंग्रेजी के अंकल की तुलना में हिंदी में नातेदारी के शब्द चाचा, मामा और मौसा आदि है़ं यह सामाजिक पक्ष के वात्सल्य व आदर सूचक संबोधन प्रदर्शित करने का हिंदी भाषी तरीका है़ झारखंडी द्रविड़ियन भाषा कुड़ुख में, पुरुष से पुरुष और महिला से महिला संवाद में स्पष्ट भेद प्रतीत होता है़ जो लिंग के आधार पर दो अलग-अलग व्याकरणों को गठित करती है और दो अलग-अलग पहचानों का प्रतिनिधित्व करती है़

जैसे पुरुष के भाषा प्रयोग में ‘पुरुष नर्तक’ के लिए शब्द नलुर है, जबकि महिला भाषा में यह नलुआलये है़ जर्मन भाषा में सूर्य स्त्रीलिंग पद है, लेकिन स्पेनिश में पुल्लिंग है़ वहीं जर्मन में चंद्रमा पुल्लिंग की तरह और स्पेनिश में स्त्रीलिंग की तरह प्रयोग में लाया जाता है़ क्या यह मानवीय सोच को प्रदर्शित करने का तरीका नहीं है?

भारत देश में आज लगभग सोलह सौ भाषाएं होते हुए भी केवल बत्तीस से चालीस भाषाओं में प्राथमिक शिक्षा दी जाती है़ भाषा केवल शिक्षा का माध्यम नहीं है, बल्कि यह बच्चों के दिमाग को सीखने के साधनों से लैस करती है़ हमें मैकालेवाद से इतर सोचने की जरूरत है़ नयी शिक्षा नीति इस दिशा में एक मजबूत कदम प्रतीत होता है़ बहरहाल, वैश्वीकरण और नवउदारवाद की प्रवृत्ति एकरूपता की है, जो भारतीय परिप्रेक्ष्य में बिल्कुल सही नहीं है़

भारतीय भाषा वैज्ञानिक व शिक्षाविद डीपी पटनायक के अनुसार, पश्चिमी ज्ञान परंपरा बाइनरी और लीनियर है, जबकि भारतीय ज्ञान परंपरा चक्रीय और स्पाइरल है़ विविधता में एकता इसी ज्ञान परंपरा की विरासत है़ भारत की सांस्कृतिक, भाषिक और जैव सांस्कृतिक विविधता कमल पुष्प पंखुरियों के सामान है, जिसमें हर पंखुरी इसकी संपूर्णता और अखंडता के लिए महत्वपूर्ण है़ परंतु आज हम पश्चिमी सिद्धांत को धुरी मानकर एकरूपता के पक्ष में खड़े दिखते है़ं इन सबमें सबसे ज्यादा लाभ अंग्रेजी जैसी भाषा को हो रहा है

और हानि हमारी बहुलता वाली भारतीय तस्वीर को़ हम आज भी भाषाई उपनिवेश से पूरी तरह आजाद नहीं दिखते़ यहां अंग्रेजी को समाप्त करने की बात नहीं है, बल्कि इसे हमारी बहुभाषीय प्रसंग और परिप्रेक्ष्य में उपयोग करने की बात है़ अंग्रेजी या कोई अन्य भाषा हमारे भाषाई श्रृंखला में वृद्धि का माध्यम बने, न कि उसके विस्थापन का. राम दयाल मुंडा जी ने कहा था,

‘जे नाची से बाची़ ‘ कोई भी भाषा या बोली सिर्फ संवाद स्थापित करने का माध्यम मात्र नहीं, अपितु यह मानव के आर्थिक, शैक्षणिक, लोकतांत्रिक और सांस्कृतिक अधिकारों को सुनिश्चित करने का सबसे महत्वपूर्ण और सशक्त माध्यम है़ किसी भी भाषा के लोप से न केवल सांस्कृतिक संकट पैदा होता है, बल्कि ऐतिहासिक एवं बौद्धिक क्षति भी होती है जो अपूरणीय है़ हर भाषा मानव के अद्भुत अनुभव की नयी व्याख्या होती है, इसलिए किसी भी भाषा का ज्ञान भविष्य के जटिल प्रश्नों की कुंजी भी हो सकती है़

Posted By : Sameer Oraon

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

संबंधित ख़बरें

Trending News

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें