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निर्यात में बढ़ोतरी उत्साहवर्द्धक है

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महामारी की रोकथाम करने के लिए लगायी जा रही पाबंदियों और अन्य कारकों के असर से उत्पादन प्रक्रिया को बचाने की चिंता अभी प्राथमिक है.

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इस वर्ष अप्रैल में हुए निर्यात के आंकड़ों के आधार पर केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने आशा व्यक्त की है कि चालू वित्त वर्ष में निर्यात 400 अरब डॉलर तक पहुंच सकता है. यह महत्वाकांक्षी लक्ष्य पिछले साल अप्रैल के निर्यात की तुलना के आधार पर निर्धारित किया गया है. पिछले साल और इस साल अप्रैल के आंकड़ों को देखें, तो जवाहरात, आभूषण, जूट सामग्री, चर्म उत्पाद आदि क्षेत्रों में निर्यात में भारी बढ़ोतरी हुई है.

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ऐसे में आगे के लिए उम्मीद रखना स्वाभाविक है, पर हमें कुछ अन्य पहलुओं का भी ध्यान रखना चाहिए. पिछले साल कोरोना महामारी की पहली लहर की रोकथाम के लिए मार्च के अंतिम सप्ताह से देशभर में लॉकडाउन लगाना पड़ा था. इस कारण अप्रैल में तमाम कारोबारी और औद्योगिक गतिविधियां लगभग ठप हो गयी थीं. इस कारण निर्यात में भारी गिरावट आयी थी. इस साल पिछले महीने कई पाबंदियों के बावजूद पिछले साल की तरह कामकाज पूरी तरह बंद नहीं हैं. ऐसे में हमें पिछले साल के आधार पर इस साल की उपलब्धियों की तुलना नहीं करनी चाहिए.

बहुमूल्य पत्थरों और आभूषणों के कारोबार में तो पिछले साल अप्रैल में लगभग 90 फीसदी की गिरावट आयी थी. कमोबेश यही स्थिति अन्य क्षेत्रों में भी थी. यदि हमें निर्यात की स्थिति की तुलना करनी है और लक्ष्य निर्धारित करना है, तो आज की तुलना 2019-20 के आंकड़ों से यानी महामारी से पहले की स्थिति के संदर्भ में करना चाहिए. अप्रैल, 2019 की तुलना में इस वर्ष अप्रैल में बहुमूल्य पत्थरों व आभूषणों में लगभग 16 प्रतिशत और अन्य निर्यातों में लगभग 20 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है.

यह बढ़ोतरी संतोषजनक है और इसे आधार बनाया जाना चाहिए. पिछले साल के आधार पर बहुत अधिक बढ़ोतरी की बात करने से कोई फायदा नहीं होगा. सरकारी आंकड़े इंगित करते हैं कि 2019-20 में 2018-19 की तुलना में निर्यात में लगभग पांच प्रतिशत की कमी हुई थी. साल 2018-19 में भारत का कुल निर्यात लगभग 330 अरब डॉलर रहा था. उस हिसाब से मौजूदा बढ़ोतरी एक उम्मीद दिखाती है, पर हमें अधिक उत्साहित से परहेज करना चाहिए क्योंकि एक बार फिर हम महामारी के दूसरे चरण की चपेट में हैं और तीसरी लहर की आशंका भी जतायी जा रही है.

इस कारण विभिन्न एजेंसियां इस साल के अनुमानित वृद्धि दर को कम करने लगी हैं. अगर हमें 400 अरब डॉलर का लक्ष्य हासिल करना है, तो 2019-20 के स्तर से 27 फीसदी से अधिक की बढ़ोतरी करनी होगी. ऐसे में वित्त वर्ष के केवल एक महीने के आधार पर कुछ कहना ठीक नहीं है.

कोरोना की दूसरी लहर से सबसे प्रभावित वे क्षेत्र, जैसे- महाराष्ट्र, दिल्ली, गुजरात, कर्नाटक आदि, हैं, जिनका अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान है. इस स्थिति में बहुत अधिक महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित नहीं करना चाहिए. ऐसा करने की कोई आवश्यकता भी नहीं है. सरकार को यह कहना चाहिए कि बीते दो सालों के हिसाब से निर्यात में सकारात्मक बढ़ोतरी के संकेत हैं और उसकी कोशिश इसे बरकरार रखने की होगी.

यह भी उल्लेखनीय है कि जिन क्षेत्रों में अभी बढ़त दिख रही है, उनमें पिछले साल अप्रैल में बड़ी गिरावट आयी थी और उससे पहले ये क्षेत्र अच्छी मात्रा में निर्यात कर रहे थे. इसका एक मतलब यह है कि उन क्षेत्रों की वापसी का संकेत है. बीते एक साल में सरकार ने निर्यात बढ़ाने के जो उपाय किये हैं, उनके नतीजे अभी आने बाकी हैं और उनके लिए हमें कुछ इंतजार करना होगा.

फिलहाल सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि जहां-जहां निर्यात होनेवाले वस्तुओं का उत्पादन होता है, वहां उत्पादन समुचित गति से जारी रहे. महामारी की रोकथाम करने के लिए लगायी जा रही पाबंदियों और अन्य कारकों के असर से उत्पादन प्रक्रिया को बचाने की चिंता अभी प्राथमिक है क्योंकि यदि इसमें अवरोध उत्पन्न होगा, तो इसका सीधा असर निर्यात में कमी के रूप में होगा.

दवा और चिकित्सा साजो-सामान से जुड़े उद्योगों से अर्थव्यवस्था को आस रहती है. सरकार इस क्षेत्र को लेकर भी सकारात्मक है. इस क्षेत्र में हमारी क्षमता होने के बावजूद मौजूदा परिस्थिति में इन उत्पादों की जरूरत देश को ही अधिक है. सरकार घरेलू जरूरत और विदेशी मांग के बीच संतुलन कैसे स्थापित करती है, यह देखने की बात है. वैक्सीन को लेकर जो चिंताजनक स्थिति पैदा हुई है, वह हम देख रहे हैं.

इस क्षेत्र में आयात की आवश्यकता भी बढ़ सकती है, जो निर्यात की उपलब्धियों को कमजोर बना सकती है. यह बात समूचे आयात-निर्यात और व्यापार संतुलन पर भी लागू होती है. इस संबंध में यह भी कहा जाना चाहिए कि अगर दवा उद्योग घरेलू मांग की पूर्ति कर पाता है, तो यह अच्छी बात होगी और अर्थव्यवस्था के लिहाज से भी यह सकारात्मक उपलब्धि होगी. इससे अन्य देशों पर हमारी निर्भरता कम होगी. वाहन उद्योग को लेकर भी उम्मीदें जतायी जा रही हैं.

पिछले साल अनेक कारणों से इस क्षेत्र में उल्लेखनीय वृद्धि हुई थी. पर यह दावे के साथ नहीं कहा जा सकता है कि यह बढ़ोतरी बनी रहेगी. पिछले साल हुए वाहनों के पर्यावरण संबंधी नियमों में बदलाव से लागत बढ़ने की संभावना है, जिसका सीधा असर कीमतों पर होगा. ऐसा ही इंजीनियरिंग वस्तुओं की स्थिति है. अगर हमारी अर्थव्यवस्था में विभिन्न कारणों से बार-बार अवरोध उत्पन्न होता रहेगा, तो उसका असर इस क्षेत्र पर होगा ही.

पिछले साल कृषि व संबंधित उत्पादों का निर्यात उत्साहवर्द्धक रहा था. इस साल बारिश सामान्य रहने की आशा है, सो खेती को लेकर निश्चिंत रहा जा सकता है. लेकिन इस मामले में भी महामारी चिंता का बड़ा कारण है. पहली लहर में ग्रामीण भारत लगभग अप्रभावित रहा था, किंतु इस बार संक्रमण का प्रकोप गांवों में भी कहर ढा रहा है. कृषि उत्पादों और महामारी के असर के आंकड़े आने के बाद इस बारे में निश्चित रूप से कुछ कहा जा सकेगा. बीते वित्त वर्ष की आखिरी तिमाही के नतीजे बहुत अच्छे रहे थे.

अगर उन्हें बहाल रख़ा जायेगा, तो खेती निर्यात के साथ अर्थव्यवस्था के लिए ठोस आधार बन सकती है. लेकिन केवल उसके भरोसे रहना भी ठीक नहीं होगा क्योंकि ग्रामीण अर्थव्यवस्था विभिन्न कारणों से पहले से ही दबाव में है. कोरोना अगर घातक होता है, तो खेती प्रभावित हो सकती है क्योंकि अन्य बातों के अलावा श्रमशक्ति भी कमजोर हो सकती है. आंतरिक उपभोग के लिए कृषि उत्पाद जरूरी हैं, सो देखना होगा कि हमारे पास निर्यात की कितनी गुंजाइश होती है. कुल मिलाकर, कहा जा सकता है कि निर्यात में बढ़ोतरी उत्साहवर्द्धक है, पर अभी हमें बड़े लक्ष्यों से बचना चाहिए. (ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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