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गतिशील अर्थव्यवस्था

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बीते कुछ महीनों से महामारी के असर से मंदी में फंसी हमारी अर्थव्यवस्था उबरने लगी है. चालू वित्त वर्ष की पहली और दूसरी तिमाहियों के बड़े झटकों के बरक्स आर्थिकी की मौजूदा गति अनुमानों से कहीं अधिक है. विशेषज्ञों की आम राय है कि अगला वर्ष बेहतर होगा और सकल घरेलू उत्पादन की संभावित दर इंगित कर रही है कि सबसे खराब दौर पीछे रह गया है.

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यह सही है कि महामारी से पहले जैसी बढ़ोतरी के स्तर पर पहुंचने में कुछ देर लगेगी, लेकिन वर्तमान के तमाम सूचक यही संकेत कर रहे हैं कि अर्थव्यवस्था के आधार मजबूत हैं. महामारी के भयावह दिनों में लॉकडाउन की मजबूरी की वजह से तमाम आर्थिक गतिविधियां थम गयी थीं.

उन्हीं दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आत्मनिर्भरता का आह्वान करते हुए घरेलू उत्पादन और मांग बढ़ाने पर जोर दिया था. अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने तथा प्रभावित क्षेत्रों को मदद करने के लिए केंद्र सरकार तीन चरणों में लगभग तीस लाख करोड़ रुपये के राहत पैकेज की घोषणा कर चुकी है.

कल्याण कार्यक्रमों के जरिये समाज के गरीब व वंचित वर्गों को हरसंभव सहायता मुहैया करायी जा रही है. इन उपायों की वजह से ही इस भयावह समय में देश में कोई मानवीय संकट पैदा नहीं हो सका. अब देश की निगाहें आगामी बजट पर हैं. केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री अनुराग ठाकुर ने कहा है कि सरकार मैन्युफैक्चरिंग और निर्यात बढ़ाने की दिशा में पहलकदमी कर रही है.

ये कदम प्रधानमंत्री के आत्मनिर्भर भारत के संकल्प को साकार करने के क्रम में उठाये जा रहे हैं. महामारी और भू-राजनीति के संदर्भ में चीन से दुनिया का भरोसा उठने लगा है. अंतरराष्ट्रीय उद्योग और वित्त बाजार तथा विभिन्न देश चीन पर आश्रित वैश्विक आपूर्ति शृंखला में बदलाव चाहते हैं. साल 2020 ने वैश्विक अर्थव्यवस्था के स्वरूप को भी बदल दिया है.

ऐसे में भारत एक महत्वपूर्ण विकल्प के रूप में सामने है. व्यापक घरेलू बाजार होने के साथ श्रम, संसाधन तथा समुचित नीतियों की उपलब्धता भी भारत में है. अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने के लिए निर्यात में बढ़ोतरी जरूरी है. यदि भारत में निर्माण और उत्पादन में वृद्धि होती है, तो निर्यात भी बढ़ेगा और हमारा व्यापारिक घाटा भी कम होगा.

इससे बेरोजगारी की समस्या के समाधान में भी बड़ी मदद मिलेगी. सरकार ने राहत पैकेज देने और महामारी से निपटने के उपाय करते हुए आर्थिक सुधारों की प्रक्रिया को भी बरकरार रखा है. इससे विदेशी निवेशकों और सरकारों का भरोसा बढ़ा है. तमाम मुश्किलों के बावजूद हमारे विदेशी मुद्रा भंडार में भी वृद्धि हुई है. यही कारण है कि कोरोना काल में विदेशी निवेश बढ़ा है तथा अनेक देशों के साथ द्विपक्षीय समझौते हुए हैं.

इसके अलावा कुछ देशों के साथ व्यापारिक संधियों पर इस साल मुहर लग जायेगी. महामारी, मंदी और महंगाई को लेकर चिंताएं अभी भी हैं, किंतु देश की आर्थिकी निश्चित ही बढ़ोतरी की राह पर अग्रसर होगी.

Posted By : Sameer Oraon

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