26.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

राष्ट्रीय राजनीति में हलचल की संभावना

Advertisement

राष्ट्रीय राजनीति में हलचल की संभावना

Audio Book

ऑडियो सुनें

हालांकि पांच राज्यों में चुनाव हो रहे थे, लेकिन सबकी निगाहें पश्चिम बंगाल पर टिकी हुई थीं. इसकी वजह यह थी कि भाजपा ने उस राज्य के चुनाव को बहुत तूल दे दिया था मानो वह जीवन-मरण का सवाल हो. बंगाल एक बड़ा राज्य है और तीन साल से वहां केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह लगे हुए थे. वहां लोकसभा की 42 सीटें हैं और वह पूर्वोत्तर का द्वार है. सो, इस चुनाव की अहमियत तो थी ही, पर सबसे खास बात यह थी कि ममता बनर्जी जैसे जननेता का होना, जो भाजपा के लिए खटकनेवाली बात थी क्योंकि वही भाजपा को आड़े हाथों ले रही थीं और ऐसा कोई भी और विपक्षी नेता नहीं कर पा रहा था. उन्हें मात देना भाजपा का एकमात्र लक्ष्य था.

- Advertisement -

यदि आप 2016 की तुलना में देखें, तो भाजपा ने बड़ी छलांग लगायी है, लेकिन 2019 के रूझानों के मुताबिक देखें, तो करीब 40 सीटों पर वह पीछे हो गयी है. प्रधानमंत्री ने वहां कई रैलियां कीं, अमित शाह वहीं जमे हुए थे, मुख्यमंत्रियों और केंद्रीय मंत्रियों को लगाया गया था. ऐसे में ममता का यह चुनाव निकालकर ले जाना, वह भी दस साल के शासन की एंटी-इनकम्बेंसी, सरकार से नाराजगी, प्रधानमंत्री द्वारा भ्रष्टाचार के आरोप लगाना- इन सबके बावजूद, बहुत बड़ी बात है.

मुझे लगता है कि कहीं न कहीं भाजपा अपने अभियान में कुछ अधिक ही आगे निकल गयी थी, जिसकी प्रतिक्रिया हुई और माहौल भावनात्मक हो गया. तृणमूल ने भी ऐसे प्रचार चलाया कि बंगाल की संस्कृति पर हमला हो रहा है, बाहरी लोग आक्रामक हो रहे हैं, ममता बनर्जी को निशाना बनाया जा रहा है आदि.

भावनात्मक मुद्दों के अलावा तृणमूल को कांग्रेस व लेफ्ट के सफाये से भी मदद मिली है. इन दलों को जानेवाले अल्पसंख्यक वोटों को भी ममता बनर्जी अपने पाले में लाने में कामयाब रहीं. इसका असर कम-से-कम 15-20 सीटों पर तो पड़ा ही होगा. कांग्रेस पहले भी नरम पड़ गयी थी क्योंकि ममता ने सोनिया गांधी ने मदद का आग्रह किया था. इस परिणाम से राष्ट्रीय राजनीति में हलचल होगी और संभव है कि ममता बनर्जी विपक्षी एकता के लिए पहल भी करें.

वे इस एकता का चेहरा बनेंगी या नहीं, इस बारे में अभी नहीं कहा जा सकता है. चुनाव के दौरान उन्होंने दिल्ली का रूख करने का इशारा भी किया था. कई विपक्षी पार्टियों और उनके नेताओं ने भी ममता बनर्जी को अपना समर्थन दिया था.

कोरोना महामारी इस चुनाव में एक मुद्दा रहा है. केरल में पिनरई विजयन का जीतना इसका सबूत है. वे सरकार में थे, कुछ गंभीर आरोप थे, सबरीमला विवाद में उन्हें निशाना बनाया गया था, फिर कोविड से जूझना, सो चुनौतियां बहुत थीं.

जिस तरह से केरल ने महामारी में काम किया है और शासन दिया है, स्वास्थ्य के संबंध में जो उनकी तैयारियां है, वे बेमिसाल हैं. देश के कई राज्यों में हाहाकार मचा हुआ है, पर केरल शांति और धैर्य से महामारी का सामना कर रहा है. केरल की स्वास्थ्य मंत्री केके शैलजा को दुनियाभर ने सराहा है. केरल सरकार ने लोगों में भरोसा पैदा किया है कि वह उनके साथ खड़ी है. इसलिए उनकी जीत हुई है, अन्यथा हर पांच साल में वहां सरकार बदल जाती है. तमिलनाडु में बदलाव की संभावना थी.

पिछली बार भी स्टालिन को बड़ी हार नहीं मिली थी. इस राज्य में भी कोविड की समस्या गंभीर है. मुख्यमंत्री ई पलानीस्वामी इस चुनाव में बहुत पीछे नहीं रहे हैं. उन्होंने अपनी पार्टी के भीतर की गुटबंदी को नियंत्रित करने के साथ महामारी रोकने की भी पूरी कोशिश की. जयललिता के बाद पलानीस्वामी एक महत्वपूर्ण नेता के रूप में स्थापित हो चुके हैं.

जहां तक असम का सवाल है, वह कांग्रेस के लिए इस बार अपेक्षाकृत एक आसान चुनाव था. अगर पार्टी ने दो साल पहले तैयारी शुरू कर दी होती, शायद परिणाम इससे अलग होते. हालांकि उन्होंने रणनीतिक तौर पर प्रयास अच्छा किया था और आठ दलों का गठबंधन भी मैदान में उतारा था. इसका लाभ भी पार्टी को मिला है. राज्य में एक बड़ा पहलू नेतृत्व का भी है.

हेमंत बिस्वासरमा के नेतृत्व में भाजपा ने मजबूत लड़ाई लड़ी और चुनाव को जीता है. उन्हें केंद्रीय नेतृत्व से भी पूरी छूट मिली हुई है. वे जमीनी नेता तो हैं ही, साथ ही उनके पास अफसरों की टीम और मीडिया का मैनेजमेंट भी है. इस बार नागरिकता संशोधन कानून और नागरिकता पंजी के मामले को भी उन्होंने इस बार ठंडा रखा है. दूसरी तरफ कांग्रेस की ओर से कोई स्पष्ट चेहरा नहीं था.

कांग्रेस के लिए ये नतीजे बहुत चिंताजनक हैं. बंगाल से साफ हो जाना, केरल में हार जाना, पुद्दुचेरी से हाथ धो बैठना बड़े झटके हैं. इसका असर राष्ट्रीय नेतृत्व पर पड़ेगा. भाजपा का बंगाल नहीं जीत पाना एक बड़ा नुकसान तो है ही, भले सीटें आयी हों. यह अपेक्षा से कम है. कोरोना महामारी को संभालने की जगह सरकार का बंगाल पर ही ध्यान देने के रवैये का नतीजा आज पूरा देश भुगत रहा है.

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें