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आर्थिक बदलाव जरूरी

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लॉकडाउन में छूट के बाद ग्रामीण क्षेत्रों में कामकाज शुरू हुआ है और शहरों में भी कारोबारी हलचल बढ़ रही है. लेकिन यह भी निश्चित है कि अर्थव्यवस्था का स्वरूप कोरोना संकट से पहले की आर्थिकी से कई तरह से अलग होगा और वापस उस स्थिति में लौट पाना संभव नहीं होगा

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कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के उपायों की वजह से दुनिया की अर्थव्यवस्था की दशा और दिशा तेजी से बदल रही है. एशियन डेवलपमेंट बैंक के अनुसार, सकल वैश्विक उत्पादन में लगभग पांच प्रतिशत की गिरावट आ सकती है. यह आंकड़ा संकट गहराने की स्थिति में अधिक भी हो सकता है. इसमें कोई दो राय नहीं है कि निकट भविष्य में कोविड-19 की रोकथाम के लिए दवाई या टीके की उपलब्धता हो जायेगी और धीरे-धीरे आर्थिक गतिविधियां भी गति पकड़ने लगेंगी. लॉकडाउन में छूट के बाद ग्रामीण क्षेत्रों में कामकाज शुरू हुआ है और शहरों में भी कारोबारी हलचल बढ़ रही है] लेकिन यह भी निश्चित है कि अर्थव्यवस्था का स्वरूप कोरोना संकट से पहले की आर्थिकी से कई तरह से अलग होगा और वापस उस स्थिति में लौट पाना संभव नहीं होगा.

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ऐसी स्थिति में जहां नुकसान की भरपाई करने की चुनौती हमारे सामने है, वहीं इस संकट ने हमारे आर्थिक दिशा को बदलने का एक अवसर भी मुहैया कराया है. कोरोना-पूर्व दुनिया में चीन वैश्विक उत्पादन का सबसे प्रमुख केंद्र था और आपूर्ति शृंखला में उसकी हिस्सेदारी लगभग एक-चौथाई थी. अनेक कारणों, विशेषकर चीन में भरोसा घटने, से चीन की बड़ी बढ़त कमतर होगी. इसका फायदा भारत को मिल सकता है. केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने कंपनियों से इस स्थिति का लाभ उठाने का आह्वान किया है. भारत औद्योगिक उत्पादन में बढ़त बना सकता है. नब्बे के दशक में इस मामले में हम चीन से पिछड़ गये थे, उस भूल के सुधार का यह बड़ा अवसर है.

लॉकडाउन, तेल की कीमतों में भारी कमी, प्रदूषण से होनेवाले जान-माल के नुकसान में राहत और सड़क दुर्घटनाओं में होनेवाली मौतों में बड़ी कमी आदि का मौका उठाकर भारत बचत को बेहतर दिशा में निवेश कर सकता है तथा तेल आयात, वायु प्रदूषण आदि के संबंध में नयी नीतियां बना सकता है. इस संकट में तकनीक पर हमारी निर्भरता बढ़ी है, किंतु हम विदेशी एप और सिस्टम पर आश्रित हैं. इस दिशा में आत्मनिर्भरता के लिए पहलकदमी की जा सकती है. इन आयामों पर विचार करते हुए हमें इस तथ्य को नहीं भूलना चाहिए कि भले ही बीते दशकों में आर्थिक विकास के लिए कुछ विशेष क्षेत्रों पर हमारा ध्यान बहुत अधिक रहा है, ग्रामीण अर्थव्यवस्था और शहरों को मिलनेवाले श्रम का महत्व बहुत अधिक है.

नीतियों के असंतुलन की वजह से ग्रामीण क्षेत्र लंबे समय से संकटग्रस्त है. वहां से मजबूरी में होनेवाले पलायन ने शहरों पर दबाव बढ़ाया है, ग्रामीण-शहरी खाई को बढ़ाया है तथा श्रमिकों के जीवन को भी अभावग्रस्त बनाया है. अर्थव्यवस्था का स्वरूप ऐसा बनाया जा सकता है, जहां उत्पादन को बड़े पैमाने पर ग्रामीण क्षेत्रों में केंद्रित किया जा सके, ताकि विकास भी संतुलित हो तथा पलायन भी रुके.

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