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जरूरी हैं भूकंप से बचाव के उपाय

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राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और आसपास के इलाकों में समुचित तैयारी और व्यापक जागरूकता की दरकार है, ताकि किसी बड़े भूकंप की स्थिति में नुकसान को कम-से-कम किया जा सके.

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प्रोफेसर पीके खान

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इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी आइएसएम, धनबाद

khanprosanta1966@gmail.com

भूकंप की आवृत्ति को लेकर हमें बेचैन होने की आवश्यकता नहीं है. जरूरत इस बात की है कि हम इस बारे में समुचित जानकारी रखें तथा उसके मुताबिक अपनी तैयारी दुरुस्त रखें. ऐतिहासिक रूप से भूकंप की बड़ी घटनाओं (जैसे- 1945 में चंबा में 6.3 तीव्रता, धर्मशाला में 1905 में 7.8 तीव्रता और 1986 में 5.5 तीव्रता के भूकंप) की जगहों से सटे कांगड़ा के आसपास हाल में भूकंप की बढ़ती बारंबारता बड़ी चिंता की बात बनती जा रही है. उत्तरकाशी के पास एक क्षेत्र में तुलनात्मक रूप से कम तीव्रता के भूकंप बीते तीस सालों से महसूस किये जा रहे हैं, जो आम तौर पर निष्क्रिय क्षेत्र रहा है, लेकिन यह गढ़वाल (1803 में 7.7 तीव्रता) तथा 1991 में 6.8 की तीव्रता के भूकंप के स्रोत क्षेत्र के निकट है.

हालिया भूकंपन की घटनाएं दिल्ली-हरिद्वार रिज क्षेत्र में भी दर्ज की गयी हैं, जिन्हें राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली और निकटवर्ती इलाकों के लिए चेतावनी माना जा रहा आही, जहां निकट अतीत में बस्तियों की बसावट हुई है. इस समूचे क्षेत्र में पिछले दो वर्षों में चार से 4.9 की तीव्रता की 64 घटानाएं दर्ज की गयी हैं, जबकि पांच और उससे अधिक तीव्रता की आठ घटनाएं हुई हैं. ये आंकड़े इंगित करते हैं कि इस इलाके में खिंचाव ऊर्जा का संघनन बढ़ रहा है. विशेष रूप से ऐसा दिल्ली और कांगड़ा के करीब होता हुआ दिख रहा है.

ढाई हजार किलोमीटर में पसरा हिमालयी क्षेत्र भूकंपीय दृष्टि से विभिन्न हिस्सों में विभाजित है और यदि हम ऐतिहासिक रिकॉर्ड को देखें, तो ये सभी हिस्से एक साथ ही बड़े भूकंप को सक्रिय नहीं करते हैं. मौजूदा हिस्से ने भी अतीत में विध्वंसक भूकंप का अनुभव किया है और बहुत अरसे से इस क्षेत्र में बड़े भूकंप की आशंका बनी हुई है.

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली कांगड़ा से 370 किलोमीटर तथा उत्तरकाशी से 260 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. यदि भविष्य में उनमें से किसी एक क्षेत्र में अधिक तीव्रता का भूकंप आता है, तो दिल्ली पर भी उसका बड़ा प्रभाव पड़ेगा. जब भी भारतीय उपमहाद्वीप में कोई विनाशकारी भूकंप आता है, तो इसे प्रकृति का कोप या त्रासदी की संज्ञा दी जाती है तथा इसके पीड़ितों को दुर्भाग्यग्रस्त कहा जाता है, लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि मानव-निर्मित भवनों के गिरने से लोगों की मौत होती है या वे घायल होते हैं. इसमें भूकंप तो उत्प्रेरक की भूमिका निभाता है.

जानकारियों में पाया गया है कि भूकंप में होनेवाली आधे से अधिक मौतें भवनों के गिरने से होती हैं. हम एक ऐसी दुनिया में हैं, जहां तेज गति से शहरीकरण हो रहा है तथा बस्तियों का घनत्व बढ़ता जा रहा है, अनियमित बस्तियों की संख्या में भी तेजी से बढ़ोतरी हो रही है, अंधाधुंध विकास में नियामक संस्थाएं स्थापित नियमों को ठीक से लागू नहीं कर पा रही हैं. ऐसी स्थिति में मनमाने ढंग से बनाये गये भवन भूकंप की स्थिति में जानलेवा साबित होते हैं.

हमारी त्रासदी यही हैं. इस आधार पर यह कहा जाना चाहिए कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और आसपास के इलाकों में समुचित तैयारी और व्यापक जागरूकता की दरकार है ताकि किसी बड़े भूकंप की स्थिति में नुकसान को कम-से-कम किया जा सके. सभी संबद्ध पक्ष यदि सचेत रहें, तो तैयारी बेहतर रूप से की जा सकती है और अच्छी तैयारी भूकंप के दौरान कारगर साबित हो सकती है. दीर्घकालिक उपाय के रूप में स्थापित पद्धति और प्रक्रिया के आधार पर भूकंप के बारे में अग्रिम चेतावनी प्रणाली की स्थापना दिल्ली के लिए बेहद जरूरी है, क्योंकि भूकंप की भविष्यवाणी करने का कोई तंत्र हमारे पास उपलब्ध नहीं है. (ये लेखक के निजी विचार हैं).

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