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कश्मीर में जी-20 बैठक का कूटनीतिक संदेश

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लद्दाख, अरुणाचल प्रदेश और कश्मीर में आयोजन कर भारत ने स्पष्ट संदेश दे दिया है कि भारत अपनी संप्रभुता वाले किसी भी क्षेत्र में ऐसे आयोजन कर सकता है.

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जम्मू-कश्मीर में जी-20 समूह की पर्यटन के वर्किंग ग्रुप की बैठक को एक महत्वपूर्ण आयोजन माना जाना चाहिए. इसमें सम्मिलित प्रतिनिधियों के बीच सदस्य देशों में पर्यटन के विकास एवं विस्तार को लेकर चर्चा हुई. श्रीनगर में इस आयोजन का सांकेतिक महत्व है क्योंकि हम कश्मीर को धरती का स्वर्ग मानते हैं. मुगल बादशाह जहांगीर ने यहां के सौंदर्य को देखकर उचित ही कहा था कि अगर दुनिया में कहीं स्वर्ग है, तो यहीं है, यहीं है, यहीं है.

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इस आयोजन में कुछ देशों के प्रतिनिधियों के आधिकारिक रूप से शामिल नहीं होने की बड़ी चर्चा हो रही है, लेकिन यह जानना दिलचस्प है कि विभिन्न विषयों पर बनाये गये वर्किंग ग्रुप की जितनी बैठकें अभी तक हुई हैं, उनमें सबसे अधिक भागीदारी श्रीनगर के आयोजन में ही हुई है. प्रतिनिधियों ने भी इस बात की अहमियत को समझा है कि पर्यटन को लेकर यह बैठक उस स्थान पर हो रही है, जो एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है. भारत सरकार की भी लगातार कोशिश रही है कि घाटी में स्थिति सामान्य होने की प्रक्रिया के साथ-साथ पर्यटन भी बढ़ता जाए ताकि क्षेत्रीय विकास को गति मिले.

जहां तक कुछ देशों- चीन, तुर्की, सऊदी अरब और मिस्र- के प्रतिनिधियों के इस आयोजन में भाग नहीं लेने की बात है, तो इसे अनेक आयामों से देखा जाना चाहिए. भारत सरकार की ओर से कहा गया है कि उन देशों के निजी पर्यटन ऑपरेटरों ने बैठक में भागीदारी की है. सरकार का यह कहना भी उचित है कि किसी आयोजन में नहीं आने भर से कोई देश हमारा दुश्मन नहीं हो जाता है.

संबंधों के दो स्तर हैं- जी-20 समूह में बहुपक्षीय संबंध तथा द्विपक्षीय संबंध. कश्मीर भारत और पाकिस्तान के बीच का एक मुद्दा है और यह बहुत पुराना मसला है. इस मुद्दे पर तुर्की लंबे समय से पाकिस्तान का साथ देता आया है. अपनी उसी नीति के अनुसार उन्होंने श्रीनगर में अपना आधिकारिक प्रतिनिधि नहीं भेजा. लेकिन पर्यटन ऐसी चीज है कि हर जगह से लोग दूसरी जगहों पर आते रहेंगे. तुर्की के पर्यटक भारत आते हैं, वहां से उड़ानें आती-जाती रहती हैं और जब वे श्रीनगर जायेंगे और लोगों से उनका मिलना-जुलना होगा, तो उन्हें सीधे-सीधे वास्तविकता का पता चल जायेगा.

कश्मीर का जो हिस्सा पाकिस्तान के अवैध कब्जे में है, उसकी क्या हालत बना दी गयी है, यह दुनिया से छुपा हुआ नहीं है. तुर्की और अन्य देशों का आधिकारिक रूप से नहीं आना पाकिस्तान को तुष्ट करने के लिए संदेश देने के लिहाज से अहम हो सकता है, लेकिन इसका भारत के साथ उनके संबंधों पर कोई असर नहीं पड़ेगा.

सऊदी अरब के साथ भी यही बात है. वैसे उसके साथ भारत के रणनीतिक संबंध भी गहरे हैं. मिस्र के साथ भी हाल के वर्षों में हमारी निकटता बढ़ी है. हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि जी-20 के आयोजनों के तहत करीब दो सौ बैठकें होनी हैं, जिनमें कई हो भी चुकी हैं. हर बैठक में हर देश के प्रतिनिधियों का आ पाना व्यावहारिक रूप से भी कठिन होता है.

पाकिस्तान और चीन ने जरूर इस मसले को लेकर बड़ा प्रचार अभियान चलाया है. चीन भी जम्मू-कश्मीर को विवादित क्षेत्र मानता है और इस क्षेत्र के लगभग बीस फीसदी हिस्से पर अवैध रूप से काबिज है. पाकिस्तान को तो वह अपने अधिकार क्षेत्र में ही मानता है और वहां अपने आर्थिक हितों को सुरक्षित रखने के लिए पाकिस्तान को तुष्ट रखने की पूरी कोशिश भी करता है.

तो उनकी हरकतों का मतलब आसानी से समझा जा सकता है. यह बात दुनिया के सामने जाहिर है और उसे इसे स्वीकार भी कर लेना चाहिए कि समूचा जम्मू एवं कश्मीर तथा लद्दाख, चीन और पाकिस्तान के अवैध कब्जे वाले इलाके भी, भारत का अभिन्न हिस्सा हैं. इनकी संप्रभुता को लेकर कोई भी समझौता नहीं किया जा सकता है.

इससे पहले चीन ने लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश में हुई बैठकों में भी भाग नहीं लिया था. इन जगहों पर और कश्मीर में आयोजन कर भारत ने स्पष्ट संदेश दे दिया है कि भारत अपनी संप्रभुता वाले किसी भी क्षेत्र में ऐसे आयोजन कर सकता है. उसे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि ऐसी बैठकों में कोई देश आ रहा है या नहीं आ रहा है. भारत का कहना साफ है कि ये क्षेत्र हमारे अभिन्न हिस्से हैं. जी-20 के आयोजन का अवसर इसके लिए अच्छा मौका है.

कुछ जगहों पर कुछ देश भले नहीं आ रहे हों, अधिकतर देश तो आ रहे हैं. महत्वपूर्ण बैठकों में सभी हिस्सा ले रहे हैं, पर वर्किंग ग्रुप की बैठकों में कुछ देश अपनी राजनीति दिखाने की कोशिश कर रहे हैं. अभी वैश्विक भू-राजनीति में रूस-यूक्रेन युद्ध तथा पश्चिम एवं चीन व रूस की तनातनी के मसले गर्म हैं. रूस, चीन और अमेरिका जी-20 समूह के महत्वपूर्ण सदस्य हैं.

बड़ी बैठकों में इनका रुख क्या होता है, यह देखने लायक बात होगी. अध्यक्ष होने के नाते भारत की कोशिश सभी की भागीदारी सुनिश्चित करना तथा आम सहमति से सम्मेलन का घोषणा पत्र बनाना है. इस घोषणा में तमाम बैठकों और निर्णयों का सार-संक्षेप होता है तथा उसके आधार पर समूह आगे के काम करता है.

अगले दो साल ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका जी-20 की मेजबानी करेंगे. ग्लोबल साउथ के नेता होने तथा वैश्विक समुदाय में महत्वपूर्ण स्थान रखने के नाते उसमें भारत का सहकार अहम होगा. बीते दिनों जापान के हिरोशिमा में आयोजित जी-7 शिखर सम्मेलन के अवसर पर भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ब्राजील के राष्ट्रपति लूला से भेंट की. उल्लेखनीय है कि ये तीनों देश चीन और रूस के साथ ब्रिक्स में भी सदस्य हैं.

उस समूह को लेकर भारत का तटस्थ रवैया है. भारत यह भी कहता रहा है कि जी-20 की भूमिका वैश्विक अर्थव्यवस्था पर केंद्रित होनी चाहिए, न कि कूटनीतिक और सामरिक तनातनी पर. जी-20 सम्मेलन से पहले भारत में ही शंघाई सहयोग संगठन की शिखर बैठक होनी है. इन दोनों आयोजनों में चीन के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के आने की संभावना है.

रूसी राष्ट्रपति पुतिन के आने की बात भी हो रही है. ये आयोजन सफल हों, इसकी कोशिश चीन को भी करनी चाहिए. भारत इसके लिए भी प्रयासरत है कि जी-20 में अफ्रीकी यूनियन को शामिल कर इस समूह को इक्कीसवीं सदी में जी-21 कर दिया जाए. प्रधानमंत्री मोदी कुछ समय बाद अमेरिका दौरे पर भी जाने वाले हैं. जी-20 के अध्यक्ष के रूप में भारत का रुख समावेशी रहा है.

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