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बड़े शहरों पर जल समाधि का खतरा

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हमारे नीति-नियंता हिमालयी ग्लेशियरों के पिघलने की बढ़ती दर, उसके दुष्परिणामों से बेखबर हो अंधाधुंध विकास रथ पर सवार हैं. वे सोचते ही नहीं कि यदि ग्लेशियर नहीं बचे

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आज दुनिया के बड़े शहरों पर जल समाधि का खतरा मंडरा रहा है. इसका सबसे अहम कारण जलवायु परिवर्तन के चलते समुद्री जलस्तर में हो रही बढ़ोतरी है. बीते कुछ समय में हर वर्ष समुद्री जलस्तर में औसतन 3.7 मिलीमीटर की वृद्धि हुई है. इसी बात को लेकर पूरी दुनिया आशंकित है कि भविष्य में छोटे-छोटे द ही नहीं शंघाई, ढाका, जकार्ता, मापुटो, लागोस, काहिरा, लंदन, कोपेनहेगन, न्यूयॉर्क, लास एंजिल्स, ब्यूनस आयर्स, सेंटियागो सहित दुनिया के अनेक शहर समुद्र में समा जायेंगे.

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गुतेरेस का कहना है कि यदि समुद्री जलस्तर में इसी तरह बढ़ोतरी जारी रही, तो दुनिया की करीब 10 फीसदी आबादी, (90 करोड़ लोग) जो तटीय इलाकों में वास करते हैं, सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे. कई आइलैंड या देश दुनिया के नक्शे से गायब हो जायेंगे, रहने के लिए जमीन नहीं बचेगी, पीने के पानी का अकाल हो जायेगा. आने वाले आठ दशकों से भी कम समय में तकरीबन 25 से 45 करोड़ लोगों को रहने के लिए नयी जगह तलाशनी होगी, जिससे जीवन के लिए जरूरी संसाधनों में बेतहाशा कमी आ जायेगी.

सच तो यह है कि इस समस्या के लिए मानवीय गतिविधियां ही पूरी तरह जिम्मेदार हैं. जलवायु परिवर्तन ने इसमें अहम भूमिका निभायी है. जिसके चलते धरती के तापमान में अभूतपूर्व वृद्धि हो रही है. बर्फ तेजी से पिघल रहे है, समुद्र पहले से ज्यादा गर्म हो रहे हैं व उनका जलस्तर बढ़ रहा है. एक अनुमान के मुताबिक, हर वर्ष अंटार्कटिका में 150 अरब टन बर्फ पिघल रही है.

वैश्विक तापमान में वृद्धि इसका अहम कारण है. इससे वैश्विक समुदाय भी चिंतित है. उसकी चिंता की असली वजह है कि यदि वैश्विक तापमान की दर को 1.5 डिग्री पर ही सीमित रखा जाये, तब भी अगले दो हजार वर्षों में समुद्री जलस्तर हर वर्ष दो से तीन मीटर तक बढ़ जायेगा. वैज्ञानिकों की रिपोर्ट व अनुसंधान इस तथ्य को प्रमाणित करते हैं. और यदि धरती का तापमान दो डिग्री तक बढ़ता है, उस दशा में समुद्री जलस्तर दो से छह मीटर तक बढ़ जायेगा.

यही नहीं, तापमान में यह बढ़ोतरी यदि पांच डिग्री तक पहुंचती है, तो समुद्र के जलस्तर के 19 से 22 मीटर तक बढ़ने की संभावना है, जो भयावह खतरे का संकेत है. इसलिए ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन पर अंकुश के लिए दुनिया के 192 से ज्यादा देश सहमति बनाने को प्रयासरत हैं और वैश्विक सम्मेलन के माध्यम से दुनिया को आने वाले खतरों से आगाह भी कर रहे हैं. डब्ल्यूएमओ की रिपोर्ट भी चेतावनी दे रही है कि यदि ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन पर रोक नहीं लगी, तो 2100 तक समुद्री जलस्तर दो मीटर और 2300 तक 15 मीटर तक बढ़ जायेगा.

आंकड़ों के मुताबिक, वर्ष 1901 से 1971 के बीच समुद्री जलस्तर 1.3 मिमी की दर से बढ़ रहा था, जो 1971 से 2006 के बीच हर वर्ष 1.9 मिमी की दर से बढ़ा, जिसमें 2018 तक 3.7 मिमी की दर से इजाफा हुआ. रिपोर्ट से यह भी पता चलता है कि बीते 11 हजार वर्षों में पहली बार समुद्र इतना गर्म हुआ है और बीते तीन हजार वर्षों में पहली बार समुद्री जलस्तर में इतनी वृद्धि हुई है. इससे इस आशंका को बल मिलता है कि यदि समुद्री जलस्तर में हर वर्ष 0.15 मीटर तक की बढ़त होती है, तो दुनिया की बाढ़ प्रभावित आबादी में 20 फीसदी और यदि 0.75 मीटर की बढ़ोतरी होती है, तो इस आबादी में 1.4 फीसदी की और वृद्धि होगी. नतीजा, यह आंकड़ा तीन गुणा पार कर जायेगा, जो भयावह होगा.

संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, हिमालय के ग्लेशियर पिघलने से पाकिस्तान बाढ़ से जूझ रहा है. ज्यों-ज्यों ग्लेशियर पिघलते जायेंगे, नदियां सिकुड़ती जायेंगी, सूख जायेंगी. इस समय अहम समस्या वैश्विक तापन के चलते होने वाले जलवायु परिवर्तन के कारण हिमखंडों का टूटना या पीछे हटना है. ग्लेशियर जितना टूटेगा या पीछे हटेगा, उतनी ही ज्यादा बर्फ पानी पर तैरेगी और जलस्तर उतनी ही तेजी से बढ़ेगा.

औरेगॉन यूनिवर्सिटी की शोधकर्ता ऐरिन पोटेट मानती हैं कि आने वाले वर्षों में यह रफ्तार और तेज होगी. यही नहीं, नेशनल साइंस फाउंडेशन में थाटीज अध्ययन के निदेशक पाल कटलर कहते हैं कि आने वाले समय में ग्लेशियरों में हो रही टूटन से बर्फ के पिघलने की प्रक्रिया की दर में और तेजी आयेगी, जिसके परिणाम भयावह होंगे.

हमारे नीति-नियंता हिमालयी ग्लेशियरों के पिघलने की बढ़ती दर, उसके दुष्परिणामों से बेखबर हो अंधाधुंध विकास रथ पर सवार हैं. वे सोचते ही नहीं कि यदि ग्लेशियर नहीं बचे, देश की जीवनदायी नदियां सूख गयीं, जिन पर तकरीबन देश की आधी आबादी निर्भर है, तो इस आबादी का क्या होगा? (ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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