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अपराधों पर अंकुश लगे

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राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की ताजा सालाना रिपोर्ट के अनुसार, महिलाओं के लिए देश की राजधानी दिल्ली सबसे अधिक असुरक्षित है.

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साल 2022 में 2021 के तुलना में अपराधों में चिंताजनक बढ़ोतरी हुई है. एक ओर महिलाओं, बच्चों, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों के विरुद्ध अपराध के मामले बढ़े हैं, तो दूसरी ओर साइबर अपराध भी बढ़ते जा रहे हैं. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की ताजा सालाना रिपोर्ट के अनुसार, महिलाओं के लिए देश की राजधानी दिल्ली सबसे अधिक असुरक्षित है. स्थिति कितनी भयावह है, इसका अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि किसी भी अन्य महानगर की तुलना में दिल्ली में महिलाओं के विरुद्ध हुए अपराधों की संख्या दुगुने से भी अधिक है. कोलकाता ने लगातार तीसरी बार सबसे ज्यादा सुरक्षित महानगर के रूप में अपनी जगह बरकरार रखी है.

राज्यों की बात करें, तो महिलाओं के विरुद्ध सबसे अधिक अपराध उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान और मध्य प्रदेश में हुए. इसके अलावा, जो तथ्य इस रिपोर्ट में बेहद चिंताजनक है, वह यह है कि 2022 में आत्महत्या से मरने वालों में एक-तिहाई लोग दिहाड़ी मजदूर थे. इससे यह इंगित होता है कि गरीब और मामूली कमाई करने वाले लोग गहरे अवसाद में हैं. आत्महत्याओं के संबंध में यह पहले विशेष रूप से ध्यान देने योग्य है कि सबसे अधिक आत्महत्या के मामले महाराष्ट्र, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, केरल और तेलंगाना में दर्ज हुए. मध्य प्रदेश को छोड़ दें, तो इनमें अन्य सभी राज्य अपेक्षाकृत विकसित क्षेत्र हैं. आत्महत्या करने वाली महिलाओं में आधी से अधिक गृहिणियां थीं. मामलों की जांच और सुनवाई में देरी से स्थिति और बिगड़ रही है. देशभर में पुलिसकर्मियों के लगभग पांच लाख पद खाली हैं.

सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश के बाद भी भर्ती में तेजी के आसार नहीं दिख रहे हैं. यह सही है कि जागरूकता बढ़ने, तकनीकी सुविधाओं की बेहतरी तथा सरकारों एवं पुलिस के प्रयासों जैसे कारकों ने अधिक लोगों को शिकायत दर्ज कराने का हौसला दिया है. इस कारण भी मामलों की तादाद ज्यादा दिख रही है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि अपराध बढ़ नहीं रहे हैं. महिलाओं पर अत्याचार के अधिकतर आरोपी परिजन और करीबी होते हैं. समाज और परिवार के भीतर संवेदनशीलता बढ़ाकर ऐसे अपराधों को बहुत हद तक रोका जा सकता है. इसी प्रकार आत्महत्याओं को भी रोकने के प्रयास होने चाहिए. बच्चों और महिलाओं तथा दलित एवं आदिवासी समुदायों के खिलाफ हुए अपराधों की शिकायतों की सुनवाई जल्दी करने पर ध्यान देना चाहिए. शासन, समाज और नागरिक के परस्पर सहयोग से ही हिंसा और अपराध को रोका जा सकता है.

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