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सर्दियों में कोरोना का खतरा ज्यादा

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जब हम दरवाजे बंद करके सारे लोग एक जगह अंगीठी के आसपास बैठेंगे, तो वहां खुली हवा नहीं होगी, जिससे संक्रमण फैलने की गुंजाइश अधिक रहेगी. खासकर उत्तर भारत में ठंडक के मौसम में मामले बढ़ने की आशंका अधिक रहेगी.

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डॉ ललितकांत, पूर्व प्रमुख, महामारी एवं संक्रामक रोग विभाग, भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आइसीएमआर)

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drlalitkant@gmail.com

विदेशों से आये लोग जब अपने घरों में पहुंचे, तो वहां से यह संक्रमण उनके यहां काम करनेवाले ड्राइवर, घरेलू सहायकों तक पहुंचा. वे इस बीमारी को अपने-अपने इलाकों तक ले गये. ऐसे ज्यादातर लोग स्लम एरिया में रहते हैं, जहां आबादी काफी सघन होती है. स्लम एरिया में इसे रोकना मुश्किल हो गया. एहतियात के तौर पर, मार्च में ही प्रधानमंत्री ने लॉकडाउन की घोषणा कर दी. इसके बाद दिल्ली, मुंबई, अहमदाबाद, चेन्नई, पुणे, कोलकाता आदि शहरों से निकले श्रमिकों के माध्यम से संक्रमण देश के दूर-दराज गांवों में फैल गया.

गांव-देहात के इलाकों में संक्रमण रोकने की चुनौती और बड़ी है. यहां स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़ी मुख्य तौर पर पांच गंभीर चुनौतियां हैं. पहली, जनसंख्या के अनुपात में डॉक्टरों की बहुत कमी है. देश में 10 प्रतिशत प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र तो ऐसे हैं, जहां कोई डॉक्टर नहीं हैं. इनमें से तो कई बिहार और उत्तर प्रदेश में होंगे. दूसरा, अस्पतालों में बेड की बहुत कमी है.

ग्रामीण इलाकों में प्रति 10,000 की आबादी पर मात्र साढ़े तीन बेड ही उपलब्ध हैं, जबकि डब्ल्यूएचओ के अनुसार, प्रति 300 पर एक बेड होना चाहिए. तीसरी बात, ग्रामीण इलाकों में 20 प्रतिशत ऐसे लोग हैं, जिन्हें डॉक्टर कहा जाता है, लेकिन वे क्वालीफाइड नहीं हैं. चौथी समस्या है दूरी और परिवहन की. अगर कोई बीमार पड़ जाये, तो अस्पताल तक पहुंचना बहुत मुश्किल है.

प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों या जिला अस्पतालों तक मरीजों को पहुंचने में काफी समय लगता है. अंतिम महत्वपूर्ण बात, जागरूकता का बहुत अभाव है. बीमारी होने पर क्या करना है, यह उन्हें पता नहीं है. अब संक्रमण गांवों में तेजी से फैल रहा है और उसे नियंत्रित करने की जरूरत है. प्रवासी श्रमिकों के घर लौटने और अर्थव्यवस्था को खोलने से संक्रमण बढ़ा है. अर्थव्यवस्था को लंबे समय तक बंद नहीं रखा जा सकता, हरेक को अपना जीवन चलाना है. लेकिन, ध्यान रखना है कि बाहर निकलते समय विशेष एहतियात बरतें.

कुछ राज्यों में संक्रमण की दर कम होने की खबर है. लेकिन, वहां जांच कैसे और किस तरह से की जा रही है, यह भी जानना जरूरी है. इम्युनिटी को लेकर अभी स्पष्ट तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता है. कुछ देशों में इससे संबंधित कुछ रिसर्च हुई है. उससे स्पष्ट है कि संक्रमण के बाद में शरीर में जो एंटीबॉडीज बनते हैं, वे चार से पांच महीने तक रहते हैं. लेकिन, ये एंटीबॉडीज कितना सुरक्षा देते हैं, यह अभी स्पष्ट नहीं हो पाया है. हालांकि, एंटीबॉडीज से थोड़ा बहुत अंतर जो जरूर आता होगा.

अगर कहीं टेस्टिंग कम होगी, तो नंबर अपने आप ही कम हो जायेंगे. हमें देखना चाहिए कितने टेस्ट के बाद पॉजिटिव मामले दर्ज हो रहे हैं. केवल आंकड़ों को देखकर यह नहीं कहा जा सकता कि उचित रूप से टेस्टिंग हो रही है या नहीं. अच्छी दशा उसे कहा जाता है, जब आप ज्यादा से ज्यादा टेस्टिंग करें और उसके अनुपात में पॉजिटिव मामलों की संख्या कम से कम दर्ज हो.

क्या ये आरटीपीसीआर कर रहे हैं या रैपिड एंटीजन कर रहे हैं. रैपिड एंटीजन में गलत मामले दर्ज होने की संभावना अधिक रहती है. आरटीपीसीआर अपेक्षाकृत महंगी और जटिल टेस्ट विधा है. इसके लिए आपको एक्सपर्ट और इक्विपमेंट की जरूरत होती है. ज्यादातर मामलों में लोग रैपिड टेस्ट कर रहे हैं. इससे मामले की यथार्थ स्थिति का आकलन नहीं हो पाता. टेस्ट किये गये मामलों में अगर पॉजिटिव मामलों की संख्या से भाग करें, तो उससे पता चलेगा कि कितने टेस्ट करने पर संक्रमण का मामला दर्ज हो रहा है.

अभी सर्दियों का मौसम शुरू हो रहा है और पहली बार इस मौसम में हमें संक्रमण का सामना करना है. दूसरे देशों का उदाहरण देखें, तो जहां ठंड है, वहां कोविड के मामले बढ़े हैं, लेकिन वहां गंभीर मामले अधिक नहीं थे और मार्च-अप्रैल की तुलना में मौतों की संख्या कम रही, लेकिन इतना स्पष्ट है कि जब हम दरवाजे बंद करके सारे लोग एक जगह अंगीठी के आसपास बैठेंगे, तो वहां खुली हवा नहीं होगी, जिससे संक्रमण फैलने की गुंजाइश अधिक रहेगी. खासकर उत्तर भारत में ठंडक के मौसम में मामले बढ़ने की आशंका अधिक रहेगी.

कई देशों में रिसर्च से पता चला है कि हर्ड इम्युनिटी नहीं बनती है. तीन प्रतिशत, पांच प्रतिशत या 10 प्रतिशत ही एंटीबॉडीज का प्रिविलेंस है. हर्ड इम्युनिटी के लिए यह आंकड़ा 65 से 70 प्रतिशत तक आना चाहिए. वह कहीं पर भी नहीं है.

अभी हमें मास्क पहनने और हाथ साफ रखने की आदत डालनी होगी. मास्क अच्छी क्वालिटी का, और कम से कम तीन परत का होना चाहिए. मास्क को ढंग से पहनना होता है. पूरी तरह से नाक और मुंह ढंका होना चाहिए. शारीरिक दूरी बनाकर रखें और किसी चीज को छूने से बचें. अगर बीमार हो जाते हैं या बुखार आ रहा है, तो घर से बाहर न निकलें. त्योहारों का सीजन आ रहा है, अगर इस समय एहतियात नहीं बरते, तो हम संक्रमित हो सकते हैं.

अभी स्कूल और सिनेमाघर आदि खोलने की फैसले किये गये हैं. बच्चे सावधानी बरतें, इसके लिए परिजनों को सतर्क रहने की जरूरत है. बच्चे फेस मास्क को आपस में बदल लेते हैं, इससे स्वस्थ्य बच्चा भी संक्रमित हो सकता है. बच्चों को एहतियात बरतना सिखाना होगा. अब हमें इस परिस्थिति के अनुसार ढलने की जरूरत हैं, साथ ही हर वक्त सावधान भी रहना है.

(बातचीत पर आधारित)

Posted by : pritish sahay

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