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ओम् शब्द को लेकर निराधार है विवाद

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ॐ हिंदू समेत विभिन्न धर्मों का पवित्र चिह्न है. हिंदू (वैष्णव, शैव , शाक्त, तांत्रिक आदि), जैन, बौद्ध, सिख जैसे धर्मों में ॐ या ओम् अथवा ओंकार की ध्वनि को पवित्र माना जाता है. ॐ शांति का प्रतीक माना गया है. यह शब्द हमारे मन के अंदर है और बाहर आकाश में भी.

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आजकल ओम् (ॐ) शब्द पर नेपाल में राष्ट्रीय बहस चल रही है. कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसा कोई शब्द नहीं है, इसलिए इसे शब्दकोश से निकाल देना चाहिए. नेपाल के सर्वोच्च न्यायालय ने इस विषय पर एक न्यायालय मित्र की नियुक्ति की संस्तुति की है. ‘ॐ’ के शब्द होने-न-होने पर नेपाल में उठे विवाद का इतिहास नया नहीं है. वर्ष 2012 में तत्कालीन शिक्षा मंत्री दीनानाथ शर्मा द्वारा मंत्री स्तरीय निर्णय लिया गया था, जिसमें ओम् और श्री जैसे संयुक्त शब्दों को हटाने का आदेश पारित किया गया था. इस विचार के पक्ष-विपक्ष में बहस होती रही और अंततः मामला नेपाल के सर्वोच्च न्यायालय जा पहुंचा.

मुद्दा उठाने वाले वकील स्वागत नेपाल का कहना है, ‘क्या ऐसा हो सकता है कि जब मन आये तो ओम् या श्री जैसे शब्दों को रखें और मन न आये तो न रखें.’ किन्हीं शब्दों को लेकर अदालत तक पहुंचना और अदालत का संज्ञान लेना नेपाल का आंतरिक मुद्दा हो सकता है, किंतु जहां तक इस विवाद का प्रश्न है, इसकी व्याप्ति भारत में सहज ही होती है. नेपाल और भारत सदियों से एक सीमा तक समान इतिहास, भाषा और संस्कृति के साझीदार हैं. विशेषकर ओम् और श्री शब्दों के धार्मिक, सांस्कृतिक अर्थों के आयाम दोनों देशों को प्रभावित करते हैं. भारत और नेपाल दोनों के विद्वान मानते हैं कि ओम् अ, उ, म् तीन ध्वनियों से बना एकाक्षरी वैदिक शब्द है और प्रत्येक मंत्र के उच्चारण में ओम् को सर्वप्रथम बोले जाने का नियम है. इसके संस्कृत में अन्य नाम हैं- ओंकार (ओङ्कार), प्रणव और प्रसार. ओंकार का अर्थ है ओम् की ध्वनि. ‘प्रणव’ में प्र उपसर्ग है. ओम् को ‘प्रस्वार’ भी कहा गया है क्योंकि इसके स्वर को तीन मात्रा तक खींचकर बोला जाता है. इसलिए ओम् की वर्तनी कहीं-कहीं ओइम् दिखाई पड़ती है. एक अक्षर का शब्द होने के कारण इसे ‘शब्दाक्षर’ और निर्धारित स्थिर उच्चारण के कारण ‘स्थिराक्षर’ भी कहा जाता है.

संस्कृत व्याकरण के अनुसार ‘ओम्’ की व्युत्पत्ति है अव्+√मन्+ऊठ्. ऊठ् से गुण होकर बन जाता है ओम्. इसका कोशीय अर्थ है- पवित्र ध्वनि. ओम् एक अव्यय भी है और अव्यय के रूप में इसका प्रयोग पुष्टीकरण, स्वीकृति, अंगीकार करने, आदेश देने आदि के लिए और एवमस्तु, तथास्तु के अर्थ में भी किया जाता है. सभी भारतीय धर्मों, मत-मतांतरों में ओम् का विशेष महत्व है. वैदिक यज्ञों में, आगे चलकर सनातन कर्मकांड, पूजा, मंत्र, पाठ आदि में ओम् का महत्व सर्वाधिक है. ओम् को टीकाकारों, प्रवाचकों, आचार्यों, शब्द शास्त्रियों द्वारा अनेक प्रकार से परिभाषित किया गया है. कहा जाता है कि ॐ जीवन शक्ति (प्राण) का नियंत्रक और जीवन दाता (प्राण संचारक) दोनों है. श्रीमद्भगवद्गीता में कृष्ण कहते हैं- ‘ओमित्येकाक्षरं ब्रह्म ओम्’, यह एक अक्षर ही ब्रह्म है.

ॐ हिंदू समेत विभिन्न धर्मों का पवित्र चिह्न है. हिंदू (वैष्णव, शैव , शाक्त, तांत्रिक आदि), जैन, बौद्ध, सिख जैसे धर्मों में ॐ या ओम् अथवा ओंकार की ध्वनि को पवित्र माना जाता है. ॐ शांति का प्रतीक माना गया है. यह शब्द हमारे मन के अंदर है और बाहर आकाश में भी. ‘इक ओंकार’ सिख धर्म के मूल दर्शन का प्रतीक है’ जैन मतावलंबियों में भी ॐ पवित्र उच्चार है. बौद्ध तंत्रयान में मंत्रों का प्रारंभ ओम् से और अंत स्वाहा से होता है. शाक्त भी मंत्र उपासना या तांत्रिक सिद्धि आदि में ओम् को महत्वपूर्ण मानते हैं. योग परंपरा में, ओम् सबसे पवित्र शब्द, सर्वोच्च मंत्र है. ओम् को शब्द ब्रह्म कहा जाता है- ध्वनि/कंपन के रूप में वही ईश्वर है. योग सिद्धांत के अनुसार, ब्रह्मांड ईश्वर की इस आदिम ध्वनि से उत्पन्न हुआ है. अनेक संत महात्माओं ने भी ‘ॐ’ के ध्वन्यात्मक स्वरूप को ही ब्रह्म माना है तथा ‘ॐ’ को ‘शब्द ब्रह्म’ भी कहा है. भाषा में प्रयुक्त होने वाली ध्वनियों से निर्मित किसी भी सार्थक ध्वनि समूह को शब्द कहा जाता है. ‘ॐ (ओम्)’ भी तीन ध्वनियों का सार्थक समूह है, उसका निश्चित अर्थ है और उसे लिपि से व्यक्त भी किया जा सकता है. किसी शब्दकोष में सम्मिलित करने के लिए इतना ही पर्याप्त है. इतने गहन और व्यापक अर्थ वाले और बहुप्रयुक्त ‘ॐ’ शब्द को नेपाली या भारतीय शब्दकोशों से हटानेे का प्रश्न ही नहीं उठता.

(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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