18.1 C
Ranchi
Tuesday, February 25, 2025 | 01:16 am
18.1 C
Ranchi
No videos found

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

मजबूरी और पलायन का दंश

Advertisement

जब तक गांवों में बुनियादी सहूलियतें नहीं बढ़ायी जायेंगी, नीतिगत रूप से गांव को आर्थिक गतिविधियों के केंद्र में नहीं लाया जायेगा, दस्तकारी के लिए बाजार का निर्माण नहीं किया जायेगा, तबतक गांवों की प्रतिभाओं को गांवों तक रोक पाना आसान नहीं होगा.

Audio Book

ऑडियो सुनें

उमेश चतुर्वेदी वरिष्ठ पत्रकार

uchaturvedi@gmail.com

सपनों को पूरा करने की तुलना में पेट की आग बुझाने के लिए होने वाला पलायन एक तरह से विभीषिका ही होती है. कोरोना के चलते जब इस साल मार्च के आखिरी हफ्ते से महानगरों या नगरों से गांवों की ओर पलायन बढ़ा, तो इसे ग्राम केंद्रित सामाजिक व्यवस्था के लिए बेहतर माना गया. सिवाय नीतीश सरकार के, ज्यादातर राज्य सरकारों ने ऐसा दिखाना शुरू किया मानो घर लौटे मजदूरों के जरिये वे सामाजिक और आर्थिक मोर्चे पर ऐसा ताना-बाना खड़ा कर देंगी, जो पलायन रोकने में सफल होगा.

जैसे-जैसे दिन बीतने लगे हैं, गांव लौटे लोगों को लगने लगा है कि सरकार की मुफ्त अनाज योजना और मनरेगा के जरिये उनके परिवार का पेट भले ही कुछ महीने भर जाये, लेकिन इससे उनके परिवार की दूसरी बुनियादी आवश्यकताएं शायद ही पूरी होंगी. लिहाजा, गांव छोड़कर उस महानगर की ओर कामगार लौटने लगा है, जिसे वह अपने लिए निष्ठुर मानकर छोड़ आया था. भारी जनसंख्या और घनघोर गरीबी वाले पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल से दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, मुंबई, सूरत आदि जगहों की ओर जानेवाली गाड़ियों की बुकिंग भर चुकी है. जिन्हें टिकट नहीं मिल पा रहा है, वे परेशान हैं.

कोरोना के संकट काल में जो पलायन हुआ, मोटे तौर पर उसके तीन कारण रहे. कुछ लोग बीमारी के डर से घरों को लौट पड़े, तो कुछ को उन महानगरों और औद्योगिक केंद्रों ने उपेक्षित छोड़ दिया, जिनकी जीवन रेखा ये कामगार ही थे. इन सबसे कहीं ज्यादा बड़ा कारण कुछ राजनीतिक दल भी रहे, जिन्होंने केंद्र सरकार को नाकाम साबित करने के लिए पलायन को अफवाह के जरिये बढ़ावा दिया.

केंद्र सरकार की गलती यह रही कि उसने उन राज्य सरकारों पर भी भरोसा कर लिया, जिनका एकमात्र उद्देश्य उसकी हर योजना को नाकाम ही साबित करना रहा है. कुछ राज्य सरकारों ने यह भी सोचा कि अगर वे अपने यहां की भीड़ को उनके मूल स्थानों की ओर भेज देंगे, तो वे कोरोना संकट का आसानी से मुकाबला कर सकेंगे.

लेकिन इस आपाधापी और भागमभाग का उल्टा असर पड़ा है. प्रवासियों के जरिये उनके पैतृक स्थानों तक तो कोरोना पहुंचा ही, मुंबई, दिल्ली और अहमदाबाद जैसे महानगरों में भी कोरोना और ज्यादा बढ़ गया. इस पूरी राजनीति में आर्थिक गतिविधियां लंबे समय के लिए पूरी तरह ठप हो गयीं. नतीजा, मजदूरों को भगाने में परोक्ष भूमिका निभाने वाले राजनीतिक दलों द्वारा शासित राज्यों को भी अनलॉक शुरू होने के बाद अपनी आर्थिक गतिविधियां बढ़ाने के लिए मजदूरों की कमी खलने लगी. अब वे चाहते हैं कि उनके यहां मजदूर लौटें और काम शुरू हो.

पंजाब और हरियाणा की खेती व्यवस्था को बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश के लोग ही संभालते रहे हैं. मजदूरों की वापसी में इन राज्यों के किसानों ने अपनी ओर से कहीं ज्यादा संजीदा और सम्मानजनक व्यवस्था की. अब वे अपने यहां मजदूरों को वापस लाने के लिए बस भेज रहे हैं. मुंबई के कुछ शोरूम मालिक और कारोबारी मजदूरों के खाते में पैसे ट्रांसफर कर रहे हैं. एक बार फिर से शहर, औद्योगिक और रोजगार केंद्र आबाद होने जा रहे हैं. कोरोना के चलते यह प्रक्रिया बेशक कुछ महीनों तक धीमी रहेगी.

भूख शांत करने के लिए होनेवाले पलायन की मोटे तौर पर तीन बड़ी वजहें हैं. पहली, औद्योगीकरण के दौर में विकास और औद्योगीकरण का असमान वितरण. दूसरी, बेतहाशा जनसंख्या वृद्धि और तीसरी, ग्राम केंद्रित अर्थव्यस्था का अभाव. राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी और भ्रष्टाचार इसके पीछे की सार्वभौम बड़ी वजहें हैं. हमारा संविधान कभी ग्राम केंद्रित बना ही नहीं.

अंबेडकर ने गांधीजी के सपनों पर आधारित ग्राम केंद्रित के बजाय व्यक्ति केंद्रित शासन व्यवस्था को स्वीकार किया. नेहरू तो मानते ही थे कि गांव असभ्य और अस्वच्छ हैं, लिहाजा वहां से सामाजिक बदलाव की बड़ी भूमिका नहीं निभायी जा सकती. ऐसे में संविधान के अनुच्छेद 310-311 से संरक्षित अपनी नौकरशाही भला क्यों चूकती. उसे कल्पनाशीलता की बजाय अपने रुतबे और अहं को तुष्ट करने में ही बेहतरी नजर आती है.

इसलिए गांव उजाड़ होते चले गये. उदारीकरण के दौर में स्थानीय दस्तकारी को किनारे लगाया गया तो वे लोग भी शहरों के मजदूर होने को मजबूर हो गये, जो अपनी दस्तकारी के दम पर अपने मूल निवासों पर मालिक की भूमिका में रह सकते थे. कोरोना संकट काल में गांवों की ओर लौटते लोगों को देख विचारकों को लगा कि यह प्रक्रिया रुकेगी, दस्तकारी को बढ़ावा मिलेगा. ऐसा सोचते वक्त वे भूल गये कि दस्तकारी आदि की जो बुनियादी सहूलियत खत्म हो चुकी है, उसे एकबारगी जिंदा नहीं किया जा सकता.

इसलिए गांवों में लौटे हाथों को काम दे पाना मुश्किल होगा. जब तक गांवों में बुनियादी सहूलियतें नहीं बढ़ायी जायेंगी, नीतिगत रूप से गांव को आर्थिक गतिविधियों के केंद्र में नहीं लाया जायेगा, दस्तकारी के लिए बाजार का निर्माण नहीं किया जायेगा, तबतक गांवों की प्रतिभाओं को गांवों तक रोक पाना आसान नहीं होगा. देश में करीब चालीस करोड़ लोग महज पेट की आग बुझाने के लिए अपने घर से दूर जाने को मजबूर हैं. गांवों को स्मार्ट बनाने की योजना पर आगे बढ़ना होगा.

(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

संबंधित ख़बरें

Trending News

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें
Home होम Videos वीडियो
News Snaps NewsSnap
News Reels News Reels Your City आप का शहर