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केंद्र सरकार ने कृषि कानूनों के हर प्रावधान पर किसान संगठनों से बातचीत करने की अपनी मंशा को फिर दोहराया है. पूर्ववर्ती बैठक में सरकार ने अनेक संशोधनों का प्रस्ताव किसानों को दिया है. कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा है कि जैसे ही इस प्रस्ताव पर संगठन अपनी प्रतिक्रिया से सरकार को अवगत करायेंगे, बातचीत शुरू हो जायेगी. विभिन्न केंद्रीय मंत्रियों ने भी कहा है कि बातचीत के लिए सरकार हमेशा तैयार है.

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इसी बीच कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग को लेकर किसान संगठनों ने दिल्ली सीमा के साथ अनेक राज्यों में अपना आंदोलन तेज कर दिया है. कुछ किसान संगठनों ने इन कानूनों का समर्थन करते हुए सरकार से कुछ बिंदुओं पर स्पष्टीकरण देने का सुझाव दिया है. आंदोलन से किसानों और उनके परिजनों के साथ लोगों को भी परेशानी हो रही है. दिल्ली के आसपास और पड़ोसी राज्यों में यातायात बाधित हुआ है तथा वस्तुओं की आपूर्ति में परेशानी हो रही है.

कुछ आर्थिक विशेषज्ञों का मत है कि यदि आंदोलन लंबा चलता है और कोई ठोस समाधान नहीं निकलता है, तो अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के प्रयासों को धक्का लग सकता है. सरकार की ओर से बार-बार कहा गया है कि कृषि कानूनों का उद्देश्य किसानों और खेती का विकास करना है तथा ऐसे सुधारों की आवश्यकता लंबे समय से महसूस की जा रही थी. जैसा कि रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा है कि सरकार किसानों को भरोसा दिलाने के लिए भरसक प्रयास करेगी.

यह पहल जल्दी और व्यापक तौर पर होनी चाहिए. किसान संगठनों की चिंताओं और आशंकाओं को दूर करना सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए. इसलिए बातचीत जरूरी है. आंदोलनकारियों को भी बातचीत से विमुख नहीं होना चाहिए. केंद्र या किसी राज्य सरकार को आंदोलित किसानों के विरुद्ध किसी भी तरह के बल प्रयोग नहीं करना चाहिए क्योंकि इससे तनाव बढ़ेगा और भरोसा कमजोर होगा.

खेती-किसानी की वजह से ही हम खाद्यान्न के मामले में न केवल आत्मनिर्भर हैं, बल्कि कृषि उत्पादों का बड़ी मात्रा में निर्यात भी होता है. देश के सकल घरेलू उत्पादन में खेती का योगदान 16 प्रतिशत है. यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि हमारे देश में अधिकतर हिस्सों में औसत कृषि उत्पादन बहुत से विकसित और विकासशील देशों से काफी कम है. कुछ लोगों द्वारा आंदोलन के बारे नकारात्मक बातें की जा रही हैं तथा उस पर आधारहीन होने के आरोप लगाये जा रहे हैं.

यह अनुचित ही नहीं, आंदोलन के लोकतांत्रिक अधिकार की अवमानना भी है. ऐसी टीका-टिप्पणियों से परहेज किया जाना चाहिए. संबद्ध पक्षों के साथ देशभर की प्राथमिकता सरकार व किसानों के बीच सकारात्मक बातचीत के लिए सकारात्मक माहौल बनाने की होनी चाहिए. आक्रामकता, भड़काऊ बातों, बेबुनियाद आरोप-प्रत्यारोपों से बनी हुई बात बिगड़ सकती है. पहले भी सरकार और कृषि संगठनों के बीच बातचीत हुई है और आगे भी बातचीत होगी. इसके अलावा समाधान का कोई और रास्ता भी नहीं है.

posted by : sameer oraon

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