13.1 C
Ranchi
Saturday, February 8, 2025 | 05:18 am
13.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

महामारी में प्रकृति के साथ जीना सीखें

Advertisement

महामारी में प्रकृति के साथ जीना सीखें

Audio Book

ऑडियो सुनें

डॉ सामदु छेत्री

- Advertisement -

पूर्व कार्यकारी निदेशक, ग्रॉस नेशनल हैप्पीनेस सेंटर, भूटान

जगदीश रत्नानी

पत्रकार एवं फैकल्टी मेंबर

एसपीजेआइएमआर

प्रकृति के साथ हमारे संबंध को लोकप्रिय टेलीविजन सीरियल ‘बॉस्टन लीगल’ के एक संवाद में बखूबी दर्ज किया गया है. सीरियल में किसी सुंदर जगह पर छुट्टियां मनाता एक वकील पर्यावरण कानून के बारे में बात करते हुए अपने दोस्त से कहता है- ‘मैं तुम्हें एक बात बताता हूं, मैं यहां प्रकृति का आनंद उठाने के लिए आया हूं, मुझसे पर्यावरण के बारे में बात मत करो.’ प्रकृति की ऐसी छवि की समझ इंगित करती है कि छुट्टी मनाने का मतलब किसी इच्छित जगह जाना है, जहां की तस्वीरें इंस्टाग्राम पर साझा की जाती हैं.

तो फिर लॉकडाउन में महामारी की दूसरी लहर के बारे में चिंता करते हुए हम कैसे प्रकृति से जुड़कर उसका आनंद उठा सकते हैं? कुछ दिन पहले अपने रेडियो संबोधन ‘मन की बात’ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस सवाल पर विचार व्यक्त किया था. उन्होंने रेखांकित किया था कि कैसे महामारी ने हमारी दिनचर्या को बदलकर रख दिया है और उन्होंने ‘नये तरीके’ से प्रकृति का अनुभव लेने के अवसर की बात की थी.

आधुनिकता की सत्ता के तहत जानेवाली रोजमर्रा की हमारी जिंदगी में सच यही है कि पहले के किसी दौर से अभी हम प्रकृति से कहीं अधिक अलग-थलग हैं. हममें से कितने लोग ऐसे हैं, जो सही में प्रकृति के व्यापक और जादुई रूपों को देखने के आनंद का अनुभव ले पाते हैं? आधुनिक जीवनशैली, विशेष रूप से शहरी माहौल में, भले ही कितनी भी वैभवशाली हो, वह हमें हर कदम पर वैसे आनंद का अनुभव ले पाने को दूभर बनाती है, जो न केवल जिज्ञासा पैदा करता है, बल्कि हमें खुशी और जुड़ाव का अहसास भी देता है.

आज के समाज की संरचना हमें लगभग अलग करने, वास्तविकता को सैनिटाइज करने और एक बनावटी दुनिया में रहना आसान बनाने के लिए गढ़ी गयी है. सुपरमार्केट से हमें उपभोग की तमाम वस्तुएं प्लास्टिक के पैकेट में मिल जाती हैं, जिन्हें हम स्वास्थ्यकर होने या नैतिक होने के आधार पर न खरीद कर इस आधार पर खरीदते हैं कि उनमें कितनी छूट मिल रही है.

बाजार और बेचने की उसकी कोशिशें हमेशा हमें धकियाती रहती हैं. सामान्य भोजन को भी जटिल पोषक विश्लेषण में बदल दिया गया है. इतना ही नहीं, ये भोज्य पदार्थ एक स्क्रीन के सामने खरीदे या खाये जाते हैं, जिस पर अक्सर मार्केटिंग के और भी संदेश प्रसारित होते रहते हैं. यह सब प्रकृति से अलगाव है, जो हमारी जीवनशैली, स्वास्थ्य, सीखने और हमारे बच्चों के बढ़ने को प्रभावित करता है.

मामूली सोच-विचार से यह सब कुछ बदला जा सकता है. प्रकृति आनंद है, वह कहीं दूर नहीं, बल्कि यहीं है और अभी है- घास पर नाचती हुई, आस-पास के पेड़ों व झाड़ियों की हरियाली में, उन फलों में, जिन्हें हम खाते हैं और हमारी खिड़की के बाहर चहचहाती चिड़ियों में. हमें इसकी सर्वत्र उपस्थिति पर ध्यान देने की आवश्यकता है.

ध्यान के प्रयोगों में भाग लेनेवालों को अक्सर एक किशमिश छूने, महसूस करने और भिगोने के लिए दी जाती है, ताकि हम उस चीज से परिचित हो सकें, जिसे हमें खाना है. इस किशमिश को फिर जीभ पर रखा जाता है और हम इसके आकार, रूप और अन्य विवरणों को महसूस करते हैं और फिर इसे चबाया जाता है व इसके पोषण के हर हिस्से का आनंद लिया जाता है. सिर्फ एक किशमिश से मन, मस्तिष्क और शरीर को पोषण मिल जाता है. यह ध्यान है, जो बदले में बहुत अधिक दे सकता है.

जब हम प्रकृति के प्रति ध्यान के साथ जीना शुरू करते हैं, तो यह देखना कठिन नहीं होता है कि प्रकृति कई मायनों में भगव(अ)न है. इस शब्द में निहित ‘अ’ को हमेशा लिखा नहीं जाता है, लेकिन उच्चारित किया जाता है. जब इस शब्द का अर्थ उद्घाटित होता है, वह प्रकृति के पांच तत्वों को इंगित करता है- भ भूमि के लिए, ग गगन के लिए, अ अग्नि के लिए, वा वायु के लिए और न नीर यानी जल के लिए. हम प्रकृति के इन्हीं पांच तत्वों से बने हैं.

प्रकृति के प्रति आभार हमें कृतज्ञता के विचार और उन सभी के प्रति कृतज्ञता की ओर ले जाता है, जो हमें उपलब्ध कराया जाता है, और यहीं प्रसन्नता का मूल्यवान चक्र प्रारंभ हो जाता है, जो अपने-आप में मस्तिष्क को पोषित करता है तथा हर दिन के जीवन में सकारात्मक प्रवृत्ति निर्मित करता है. इस आनंद से भागना नहीं है. यह हर किसी को उपलब्ध होने की प्रतीक्षा में है, जो हमारे चारों ओर पसरी प्रकृति के प्रति ध्यानस्थ हो सकता है.

प्रकृति से इस जुड़ाव को समझने के लिए एक आसान तरीका उस बच्चे के चकित चेहरे को देखना है, जो प्रकृति के एक हिस्से- पेड़ पर फल, इंद्रधनुष या बारिश में आनंदित हो उठता है. बारिश में गाना केवल गाना भर नहीं है, हम मनुष्य ऐसे ही हैं, हम तभी प्रसन्न होते हैं, जब हम प्रकृति के साहचर्य में होते हैं. इसके लाभों का बखान करना या उनकी गिनती कर पाना यहां संभव भी नहीं है.

उदाहरण के लिए, यह जगजाहिर बात है कि प्रकृति हमारी आंतरिक प्रसन्नता को उभारने और अवसाद से लड़ने में मदद करती है तथा हमें अचरज के अहसास के करीब ले जाती है. मिनेसोटा विश्वविद्यालय के एक अध्ययन के अनुसार, प्रकृति के साथ होना या केवल प्रकृति के दृश्यों को देखना क्रोध, भय, तनाव आदि को घटाता है तथा अच्छे अहसास को बढ़ाता है.

प्रकृति की ओर उन्मुख होने से न केवल आप भावनात्मक रूप से अच्छा महसूस करते हैं, बल्कि इससे आपका शारीरिक स्वास्थ्य बेहतर होता है, ब्लड प्रेशर कम होता है, धड़कन सामान्य होती है, मांसपेशियों का तनाव घटता है तथा तनाव नियंत्रित करनेवाले हार्मोनों का निर्माण अधिक होता है. इससे आपकी आयु भी बढ़ती है.

बीते महीने एक जर्नल में छपे शोध में इंगित किया गया है कि प्रकृति कोविड-19 के कुछ नकारात्मक प्रभावों से उबरने में भी मददगार हो सकती है. इस अध्ययन में मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े पांच पहलुओं- अवसाद, जीवन संतुष्टि, व्यक्तिगत प्रसन्नता, आत्मविश्वास और अकेलापन- के संदर्भ में प्रकृति के अनुभव-घर की खिड़की से हरियाली देखना या हरियाली में घूमना-फिरना को परखा गया था.

मुख्य अध्ययनकर्ता डॉ मसाशी सोगा के अनुसार, हमारे निष्कर्ष इंगित करते हैं कि आसपास की प्रकृति मनुष्यों के लिए तनावपूर्ण घटना के नुकसानदेह प्रभावों को रोकने में मददगार हो सकती है. शहरी क्षेत्रों में प्राकृतिक वातावरण को बचाना केवल जैव-विविधता के संरक्षण के लिए ही नहीं, मानव स्वास्थ्य की रक्षा के लिए भी आवश्यक है.

posted by : sameer oraon

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें