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देश को भारतजीवी की जरूरत है

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पैसे, प्रसिद्धि और नाम के लिए जीनेवाले जीवी भारत को नहीं चाहिए. आत्मनिर्भर होने के लिए इसे केवल भारतजीवियों की जरूरत है.

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प्रभु चावला

एडिटोरियल डायरेक्टर

द न्यू इंडियन एक्सप्रेस

prabhuchawla@newindianexpress.com

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शब्दकोशीय क्षण का अनुभव कर रहे हैं. तीखे विशेषणों को गढ़ने और पुराने नारों को नया अर्थ देने के लिए जाने जानेवाले प्रधानमंत्री मोदी भारत के विलक्षण भाषाजीवी हैं. टुकड़े-टुकड़े गैंग, खान मार्केट गैंग और भारत का चौकीदार राष्ट्रीय शब्दकोश की प्रचलित अभिव्यक्तियां हैं. ‘आत्मनिर्भरता’ को 2020 का ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी का हिंदी शब्द चुना गया है.

पिछले सप्ताह प्रधानमंत्री मोदी ने विरोधियों के एक समूह को नयी संज्ञा दी- आंदोलनजीवी. यह उन पेशेवर प्रदर्शनकारियों के लिए उपहासपूर्ण संबोधन था, जो भूगोल से परे हर सत्ता-विरोधी आंदोलन से जुड़कर अपनी प्रासंगिकता खोजते हैं. आंदोलनकारी किसानों को सफाई से छोड़ते हुए मोदी ने उनके प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष समर्थकों को आंदोलनजीवी का नाम दे दिया. अकल्पनाशील भाजपा नेता दुहराव से थक चुके दर्शकों के सामने ‘खालिस्तानी’, ‘देशद्रोही’ और ‘अर्बन नक्सल’ जैसे पुराने राग अलाप रहे थे.

मोदी का अलग विशेषण देना शायद इस समझ से प्रेरित होगा कि वे खुद बहुत-से आंदोलनों में भाग ले चुके हैं. उनका विशेषण देना पेशेवर बाधा डालनेवालों व उकसानेवालों तथा विचारधारा से प्रेरित विरोधियों के बीच रेखा खींचना था. उनका कथन एनआरसी, सीएए तथा अति वाम उदारवादियों के विरुद्ध कार्रवाई के विरोध में हर जगह नारा लगानेवालों की मौजूदगी पर आधारित था. अनुदारवादियों ने लोकतांत्रिक असंतोष को अपमानित करने के लिए मोदी का मजाक उड़ाया. उन्होंने रेखांकित किया कि महात्मा गांधी खुद एक आंदोलनजीवी थे. प्रधानमंत्री के भीतर पैठे उकसानेवाले विघ्नकारी ने अलग-अलग वर्गों के लिए अलग-अलग संज्ञाओं की पहचान की है, जिनमें से कुछ उल्लेखनीय हैं.

बुद्धिजीवी

यह बौद्धिकों के लिए प्रयुक्त होता है. उनकी आजीविका उनके सोचने का कौशल है. उनका दावा बुद्धि का भंडार होने का है. अज्ञानी भीड़ को प्रसन्न करनेवालों और ग्रंथियों से ग्रस्त व्यक्तियों के बीच इनकी बड़ी मांग है. वे दूसरों को भ्रमित करने के लिए मुक्त सोच के विरुद्ध उत्पीड़न पर शोक जताते हैं. वूडी एलेन उन्हें ऐसे माफिया के रूप में चिन्हित करते हैं, जो अपनों की ही हत्या करता है. लेकिन एक वर्ग के रूप में बौद्धिक अनश्वर हैं क्योंकि उनके पास एक सरल मुद्दे को जटिलता के साथ विश्लेषित करने की क्षमता होती है.

शायद ही ऐसी कोई संस्था या राजनीतिक पार्टी होगी, जो अपने सदस्यों व अधिकारियों की विश्लेषणात्मक क्षमता बढ़ाने के लिए बुद्धिजीवियों को नहीं बुलाती होगी. हर पार्टी में बुद्धिजीवियों की एक इकाई केवल इस कारण है कि उन्होंने बाकी लोगों से कुछ किताबें अधिक पढ़ रखी हैं. बादशाह अकबर के पास सलाह के लिए नवरत्न थे. उस समय से हर दरबार से इनकी करीबी रही और असल में ये चिरंजीवी हो चुके हैं. बुद्धिजीवियों के बिना शासक की दृष्टि पूर्ण नहीं मानी जाती. बुद्धिजीवी नीति-निर्धारकों के मानस को बनानेवाली एक दुष्ट प्रतिभा बन चुका है.

श्रमजीवी

जो कठिन श्रम से अपना जीविकोपार्जन करते हैं, श्रमजीवी कहलाते हैं. हालांकि सभी अपनी संस्था या पार्टी के लिए कड़ी मेहनत करने का दावा करते हैं, पर वे स्वामिभक्ति और समर्पण के लिए पुरस्कृत होते हैं. खेतों, कारखानों और निर्माण में काम करनेवाले करोड़ों श्रमिक असली श्रमजीवी हैं, जिनकी दुर्भाग्य से वोट बैंक के अलावा कभी प्रशंसा नहीं होती. धनवानों के लिए धन बनाना उनकी नियति है. दुनिया के मजदूरों को एक होने का मार्क्स का आह्वान राष्ट्रीय आय में श्रमजीवियों की अधिकतम हिस्सेदारी पाने के लिए ही था. बाजार द्वारा मार्क्स के इस विचार को खत्म करने के साथ श्रमजीवी बस कामगार रह गये हैं, जो अपने नियोक्ताओं द्वारा शोषित होते हैं.

सत्ताजीवी :

सही या गलत तरीके से हासिल सत्ता पर पलनेवाले लोग सत्ताजीवी होते हैं. अधिकतर निर्वाचित नेता, मंत्री व नौकरशाह लोगों की सेवा करने के बजाय अपनी ताकत का इस्तेमाल अपने फायदे के लिए करते हैं. सत्ता की इनकी भूख ऐसी होती है कि लोगों की सेवा के नाम पर ये सेवानिवृत्ति से पहले और बाद के लिए पूरा इंतजाम कर लेते हैं. विडंबना है कि ये इस कारण अपरिहार्य बन जाते हैं क्योंकि इन्हें नियुक्त करनेवाले भी सत्ताजीवी हैं.

मनोरंजनजीवी :

सिनेमा से लेकर स्टैंड-अप कॉमेडी करनेवाले हर तरह का मनोरंजन करनेवाले लोग मनोरंजनजीवी होते हैं. ये अपने कौशल से प्रशंसकों को खुश रखते हैं. इन्हें शायद ही कोई ताना देता है क्योंकि इन पेशेवरों की सेवाएं सभी पार्टियां और कॉर्पोरेट लेते हैं. कुछ समय से उनमें से कुछ को विभिन्न लोगों, नेताओं और पालतू पशुओं की भावनाएं आहत करने के लिए हिरासत में लेना फैशन बन गया है.

वसरजीवी :

ये किसी भी अवसर को भुना लेते हैं. ये असल में किनारे खड़े रहनेवाले लोग हैं और जैसे ही कोई जीतने लगता है, तुरंत उसकी ओर हो जाते हैं. ये आलू की तरह हैं और किसी भी व्यंजन में डाले जा सकते हैं. इनकी आबादी सबसे बड़ी है और ये मान-अपमान की चिंता नहीं करते तथा ऊपर चढ़ जाने के बाद सीढ़ी को भी छोड़ देते हैं. यह श्रेणी सबसे अधिक राजनीति, नौकरशाही और मीडिया में पलती-बढ़ती है.

मुद्राजीवी :

यह धन के इशारे पर जीता है. एक बड़े उद्योगपति कहा करते थे कि वे किसी को भी पैसे से खरीद सकते हैं. इनके साम्राज्य के तेज विस्तार का अध्ययन हो, तो पता चलेगा कि अधिकतर नीति-निर्धारक मुद्राजीवी हैं. मुद्राजीवी पैसे के एवज में कुछ भी कर सकते हैं. भारत शायद एकमात्र ऐसा देश हैं, जहां अपने संरक्षकों के समृद्ध भविष्य की भविष्यवाणी कर सबसे अधिक ज्योतिषी और साधु अपनी जीविका कमाते हैं. अधिकतर लोग गरीबी में जीते हैं, जबकि कुछ लालची साधु-संत भव्य आश्रम में रहते हैं, जहां ताकतवर सलाह व आशीर्वाद लेने आते हैं.

सेमिनारजीवी :

एक अलग ही वर्ग है, जो बौद्धिकों से थोड़ा कम महीन होता है. ये संपर्कों और सेमिनार के आयोजन से अपना जीवन चलाते हैं. ये थिंक टैंकों के जरिये काम करते हैं और ऐसा दिखाते हैं कि उनके पास विभिन्न समस्याओं का समाधान है. आप कह सकते हैं, नाम में क्या रखा है? इसका उत्तर है- पहचान. लेकिन उपनाम में क्या है? फर्जी तत्व अपने ताकतवर संरक्षकों की मूढ़ता का दोहन करने के साथ बुद्धि के ग्लैमर को पाने के लिए इसे धारण करते हैं. पैसे, प्रसिद्धि और नाम के लिए जीनेवाले जीवी भारत को नहीं चाहिए. आत्मनिर्भर होने के लिए इसे केवल भारतजीवियों की जरूरत है.

Posted By : Sameer Oraon

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