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छोटे देशों के साथ चीन की गलत आर्थिक नीति

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चीन का मुख्य उद्देश्य अपनी वैश्विक ताकत को बढ़ाना है. एक रिपोर्ट के अनुसार चीन ने एक ट्रिलियन डॉलर से अधिक की सहायता विभिन्न छोटे राष्ट्रों को दी हुई है. जिन-जिन मुल्कों में चीन ने निर्माण योजनाओं को शुरू किया, लगभग सभी परियोजनाएं अधर में लटकी हुई हैं.

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पिछले वर्ष श्रीलंका की आर्थिक कंगाली ने इस बात को जगजाहिर किया कि कैसे हंबनटोटा बंदरगाह के विकास के बहाने श्रीलंका चीन की बातों में आ गया और उसके कर्ज में इतना दब गया कि उसके पास विदेशी मुद्रा भंडार की बहुत कमी हो गयी और देश में आर्थिक संकट आ गया. यह सच है कि लंबे अरसे से चीन अपनी वैश्विक ताकत बढ़ाने के लिए आर्थिक विकास का सपना दिखा कर छोटे राष्ट्रों को लगातार निशाना बना रहा है. श्रीलंका के अलावा भी कई अन्य मुल्क परेशानियों से घिरे हैं. पाकिस्तान इन दिनों संकट में है और उसका कारण भी चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा है. इस योजना के लिए चीन द्वारा पाकिस्तान को करीब 62 अरब डॉलर का कर्ज दिया गया है. पाकिस्तान आयात पर निर्भर रहने वाला मुल्क है. आज उसके पास तीन अरब डॉलर से भी कम विदेशी मुद्रा रह गयी है. पाकिस्तान अब लगातार विदेशी संस्थानों से कर्ज की गुहार लगा रहा है. एक रिपोर्ट के मुताबिक 148 से अधिक देशों में चीन ने निवेश किया हुआ है. एक बात और समझने वाली है कि लगभग इन सभी देशों में परियोजनाओं का संचालन चीनी कंपनियां ही कर रही हैं. चीन द्वारा दिये गये कर्जों पर तुलनात्मक रूप से ब्याज की दरें विश्व बैंक, आइएमएफ या अन्य अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं की तुलना में बहुत अधिक होती हैं.

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चीन का मुख्य उद्देश्य अपनी वैश्विक ताकत को बढ़ाना है. एक रिपोर्ट के अनुसार चीन ने एक ट्रिलियन डॉलर से अधिक की सहायता विभिन्न छोटे राष्ट्रों को दी हुई है. जिन-जिन मुल्कों में चीन ने निर्माण योजनाओं को शुरू किया, लगभग सभी परियोजनाएं अधर में लटकी हुई हैं. इसके पीछे एक मुख्य कारण यह है कि उन योजनाओं की लागत बहुत अधिक बढ़ गयी है. दूसरा कारण यह है कि उन परियोजनाओं में गुणवत्ता का ध्यान नहीं रखा गया है. अब स्थितियां ऐसी हो गयी हैं कि इन देशों में इन परियोजनाओं का विरोध किया जा रहा है. इस कारण चीन के लिए भी अब आर्थिक संकट की आशंका पैदा हो गयी है.

विश्व पिछले कुछ समय से लगातार आर्थिक समस्याओं का सामना कर रहा है. शुरुआत महामारी से हुई थी. रूस और यूक्रेन की समस्या ने वैश्विक स्तर पर आपूर्ति शृंखला बुरी तरह प्रभावित किया है, जिससे सभी देशों के घरेलू बाजार में महंगाई बढ़ गयी है. इसके अलावा अमेरिका में ब्याज नीतियों के कारण डॉलर तुलनात्मक रूप से अधिक मजबूत होता जा रहा है, जिसका दुष्प्रभाव सभी देशों की मुद्रा पर पड़ा है. इससे आयात की लागत बढ़ी है. ऐसे में कई छोटे राष्ट्र, जो चीन की परियोजनाओं से खुशहाली का सपना देख रहे थे, वे अब आर्थिक दबाव में है तथा चीन को भुगतान करने में अक्षम हैं. चीन वर्तमान समय में विश्व की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है तथा इसका वर्तमान स्तर 18 ट्रिलियन डॉलर से अधिक का है. पिछले तीन-चार दशकों में चीन ने अभूतपूर्व वृद्धि कर पूरे विश्व में निर्माण के क्षेत्र में अपने आपको एक ऐसी फैक्टरी के रूप में स्थापित कर लिया है, जिस पर सभी देशों की निर्भरता लगातार बढ़ती जा रही है. चीन ने 1978 के आर्थिक सुधारों के बाद वास्तविक रफ्तार पिछली शताब्दी के अंत में पकड़ना शुरू कर लिया था, जो उसे पिछले दो दशकों से लगातार शिखर पर बनाये हुए है. वर्ष 1978 के सुधारों से पूर्व चीन में हर पांच में से चार आदमी कृषि क्षेत्र पर निर्भर थे, जो आज व्यापार में संलग्न हैं. एक वैश्विक रिपोर्ट के अनुसार विश्व के 65 राष्ट्र पूर्णतया चीन से आयात पर निर्भर हैं.

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इन सबके बीच में चीन के नेतृत्व के द्वारा अपनी वैश्विक छवि को बहुत अधिक विस्तार देने की सोच ने इन दिनों चीन को एक संकट पर लाकर खड़ा कर दिया है. कोरोना के बाद से इस बात के लगातार पूर्वानुमान लगाये जा रहे हैं कि चीन में इन दिनों आर्थिक गिरावट का दौर चल रहा है. रियल एस्टेट व निर्माण के क्षेत्र के द्वारा लगभग एक-तिहाई हिस्सा चीन के सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) को जाता है, तो बैंकों की जमा राशि का 40 प्रतिशत भाग भी वित्तीय सहायता के रूप में अचल संपत्ति व विनिर्माण क्षेत्र को ही मिलता है. इन दिनों यह देखने को मिल रहा है कि चीन का रियल एस्टेट सेक्टर लगभग उसी दौर से गुजर रहा है, जो हाल 2006 में अमेरिका का था.

अगर यह अंदेशा आने वाले समय में सही साबित होता है, तो निश्चित रूप से ये चीन के लिए एक बहुत बड़ा आर्थिक संकट होगा. इसके अलावा कई ऐसे छोटे मुल्क, जो चीन पर निर्भर रहकर आर्थिक विकास के सपने को देख रहे हैं, उनकी बदहाली भी चीन के लिए एक बड़ा आर्थिक घाटा साबित होने वाला है. इसलिए अब जरूरत है कि चीन आर्थिक महाशक्ति बनने की अपनी महत्वाकांक्षा को कुछ सीमित करे, अन्यथा वैश्वीकरण के इस दौर में चीन सभी मुल्कों के लिए एक बड़ी समस्या बन जायेगा.

(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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