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कोरोना को रोकने की चीन की कोशिश

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दुनिया लॉकडाउन में है और कोरोना से लड़ने के लिए गांव-शहर जेल में तब्दील हो गये हैं. वहीं कोरोना संकट ने सरकारों को अभूतपूर्व शक्तियां भी प्रदान की हैं. राज्य एक सार्वभौमिक निगरानी संस्था के रूप में उभरी है, चाहे वह कम्युनिस्ट हो या राजशाही या लोकतांत्रिक हो.

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राजीव रंजन

प्राध्यापक, शंघाई विश्वविद्यालय

rajivranjan@i.shu.edu.cn

दुनिया लॉकडाउन में है और कोरोना से लड़ने के लिए गांव-शहर जेल में तब्दील हो गये हैं. वहीं कोरोना संकट ने सरकारों को अभूतपूर्व शक्तियां भी प्रदान की हैं. राज्य एक सार्वभौमिक निगरानी संस्था के रूप में उभरी है, चाहे वह कम्युनिस्ट हो या राजशाही या लोकतांत्रिक हो. फूको ने अपनी पुस्तक ‘अनुशासन और सजा’ में बेंथम के पनोप्टिकॉन की व्याख्या 17वीं सदी में फैले प्लेग के बाद कुछ इसी तरह के लॉकडाउन से की है. शोशाना जुबोफ्फ के अनुसार, 21वीं सदी का यह पनोप्टिकॉन निगरानी पूंजीवाद हैं. सूचना संचार में आयी क्रांति और भूमंडलीकरण ने विश्व को मार्शल मक्लुआन का ग्लोबल गांव ही नहीं, बल्कि बेन्थम के पनोप्टिकॉन का डिजिटल अवतार भी बना दिया है. यह डिजिटल पनोप्टिकॉन देशों को कोरोना को नियंत्रित करने में मदद कर रहा है. चीन, भारत, कोरिया, सिंगापुर तथा अन्य देश निगरानी तकनीक का इस्तेमाल कर रहे हैं. पर इस निगरानी राज्य की संकल्पना में जनता की सहमति भी हासिल है.

चीन में ही 83 हजार से ज्यादा लोग संक्रमित हुए और तीन हजार से ज्यादा लोग मारे गये. चीन के वुहान शहर में जब बीते दिसंबर की आठ तारीख को पहला मरीज अस्पताल लाया गया, तो उसकी बीमारी को सार्स-2 मानकर भ्रामक समाचार फैलाने के जुर्म में आठ डॉक्टरों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. उन्हीं आठ डॉक्टरों में एक डॉ ली वेन लियांग भी थे, जिनकी बाद में इसी रोग के कारण मृत्यु हो गयी. हुबेई की प्रांतीय सरकार इस नये कोरोना वायरस की बुरी खबर को बीजिंग सरकार तक ले जाने में डर रही थी. चीन शुरू के दिनों में कोरोना को नये तरह का निमोनिया मानकर इसके विकराल और वीभत्स रूप से अनभिज्ञ बना रहा.

यह वही समय था जब पूरा चीन नव वर्ष की छुट्टियां मनाने के लिए तैयार हो रहा था. एक अनुमान के मुताबिक, चीनी लोग कोई तीन ट्रिलियन ट्रिप्स यात्रा करते हैं इस छुट्टियों में. हालांकि 24 जनवरी को जब हुबेई प्रांत लॉकडाउन हुआ, तब तक लाखों चीनी यात्रा पर निकल चुके थे. यह साल चीन में चूहा वर्ष है, जो अपशकुन माना जाता है. इससे पहले 1840 में अफीम युद्ध, 1900 में बॉक्सर युद्ध, 1960 में अकाल, 1998 में यांगत्सी नदी में बाढ़ तथा 2008 में सिचुआन प्रांत में भूकंप, ये सभी चूहा वर्ष में ही होनेवाली घटनाएं थीं. आज जब हुबेई प्रांत और वुहान का लॉकडाउन हटा लिया गया है, चीन की आर्थिकी और जिंदगी अपने लय में वापस हो रही है, तो ये प्रश्न सबके सामने उभर रहा है कि आखिर चीन ने ऐसा कैसे कर लिया, जबकि स्वास्थ्य सेवा और आर्थिक रूप से संपन्न इटली, अमेरिका और अन्य यूरोपीय देश कोरोना से ज्यादा प्रभावित हैं. उनके यहां संक्रमण और मृत्यु दर चीन से कहीं अधिक है. इसका उत्तर जानने के लिए चीन की कोरोना से लड़ने की रणनीति को समझना आवश्यक है. चीन एक कम्युनिस्ट देश है और समाज उसकी बुनियाद है.

बीजिंग ने पूरी कमान अपने हाथ में लेकर कोरोना के खिलाफ जंग की शुरुआत की. हुबेई को लॉकडाउन किया गया. सनद रहे, इससे इतर किसी भी प्रांत को बंद नहीं किया गया. परंतु लोगों के बाहर निकलने पर पाबंदी लगा दी गयी, स्कूल, कॉलेज, सिनेमाघर, बाजार बंद कर दिये गये. मास्क पहनना अनिवार्य कर दिया गया. वैसे भी मास्क पहनना चीन, जापान तथा कोरिया में संस्कृति का हिस्सा रहा है. अन्य देशों की तरह मास्क पहननेवाले को शक की दृष्टि से नहीं देखा जाता और सामाजिक रूप से बहिष्कृत नहीं किया जाता है. यहां तक कि मास्क को इस समय राशन आपूर्ति की तरह वितरित किया जाने लगा.

चीन के कई प्रांतों ने डॉक्टरों और नर्सों के दल और स्वयंसेवी दस्ते को वुहान भेजा ताकि कोरोना के प्रकोप केंद्र को नियंत्रित किया जा सके. आर्मी के लगभग 40 हजार डॉक्टरों को वुहान भेजा गया. पूरा देश और चीनी समाज एकजुट होकर वुहान के साथ खड़ा हो गया. वहीं चीन के अन्य प्रांत में हुबेई निवासियों को और हाल ही में हुबेई यात्रा पर गये अन्य प्रांत के लोगों को भी क्वारंटाइन किया गया. जैसा कि मैंने पहले कहा कि चीन में समाज की अहम भूमिका है, संकट की इस घड़ी में आवासीय समूह, स्वयंसेवी संस्था, स्वयं सेवक आदि ने अपनी भूमिका बखूबी निभायी. हर काॅलोनी ने निवासियों के अंदर-बाहर जाने और तापमान को रजिस्टर में दर्ज किया. हॉटस्पॉट क्षेत्रों में काॅलोनी के गेट तक आवश्यक चीजों को पहुंचाया गया.

चीन की कोरोना से इस जंग में बिग डेटा ने बड़ी भूमिका निभायी है. कम्युनिस्ट राज्य होने के कारण निजता जैसी समस्या नहीं उभरी. सर्वप्रथम संक्रमित लोगों की पहचान की गयी. एक विशेष सर्च इंजन तैयार किया गया, जिस पर संक्रमित लोगों की यात्रा से जुड़ा पूरा विवरण था ताकि सहयात्री अपनी जांच करा सकें और एकांतवास में रहें. दूसरी तरफ, एक मोबाइल एप की मदद से संक्रमित व्यक्तियों के लोकेशन को आधार बनाकर स्वस्थ्य व्यक्ति को आगाह किया गया कि वे उनके नजदीक आने से बचें. जैसा भारत में आरोग्य सेतु एप के माध्यम से किया जा रहा है. पूरे चीन को कोरोना की भयावहता और संक्रमित लोगो की संख्या के आधार पर तीन रंगों के भौगोलिक क्षेत्र में विभाजित कर आवागमन को नियंत्रित किया गया.

लाल क्षेत्र को सीलबंद कर निवासियों की आवाजाही पर पाबंदी तथा घर में ही नजरबंद किया गया. पीले कोडवाले क्षेत्रों को क्वारंटाइन में रखा गया और हरे रंगवाले क्षेत्र में आवाजाही की मंजूरी दी गयी. इसी तरह तीन रंगों का वर्गीकरण आम आदमी पर भी लागू किया गया. एक क्यूआर कोड हर आदमी अपनी मोबाइल पर प्राप्त कर सकता था, जो उसके स्वास्थ्य और हाल के यात्रा विवरण का प्रमाणपत्र बना. इसी कोड के आधार पर वह घर से बाहर और आर्थिक क्रियाकलापों को कर सकता है. अब चीन के अलावा दूसरे देश भी बिग-डेटा और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआइ) का उपयोग कोरोना को नियंत्रण करने के लिए कर रहे हैं. यह राज्य और लोगों के मध्य जो नया अनुबंध हुआ है, उसमें लोग निजता के अधिकार को स्वास्थ्य-सुरक्षा के बदले राज्य को सौप रहे हैं. नया अनुबंध राज्य की शक्तियों में निरकुंशता ला दे, तो कोई अचरज नहीं.

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