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बच्चों और इंटरनेट

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इंटरनेट पर हमारी निर्भरता लगातार बढ़ती ही जा रही है. इसके उपयोगकर्ताओं में बच्चे, युवा और बूढ़े सभी शामिल हैं. इसका उपयोग करनेवालों की संख्या में प्रति क्षण वृद्धि हो रही है. मोबाइल फोन ने इंटरनेट की उपलब्धता को बहुत ही सुलभ कर दिया है. चाहे शहर हो या गांव, मोबाइल एक ऐसा प्रोडक्ट बन गया है, जो घर-घर की जरूरत हो गया है. यह हमारे जीवन में ऐसे दाखिल हो गया है कि इसके प्रभामंडल से बाहर निकल पाना मुश्किल होता जा रहा है.

सूचना क्रांति के वाहक इंटरनेट ने जहां हमारे जीवन के कई कामों को बहुत ही आसान बनाया है, वहीं कई बड़ी मुश्किलें भी खड़ी की हैं. बड़े-बुजुर्ग साइबर फ्रॉड की घटना का शिकार हो रहे हैं तो बच्चे साइबर बुलिंग और ऑनलाइन यौन शोषण का. हाल ही में चाइल्ड राइट्स एंड यू व चाणक्या नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी, पटना ने एक संयुक्त अध्ययन किया है, जिसकी रिपोर्ट अब आयी है.

इस अध्ययन के अनुसार कोविड महामारी के बाद भारत में बच्चों के साथ ऑनलाइन अपराध के मामलों में बढ़ोतरी हुई है. मोबाइल इंटरनेट तक बच्चों और किशोरों की बढ़ती पहुंच ने उन्हें जोखिम में डाल दिया है. सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म उनके लिए एक ऐसी जगह साबित होते जा रहे हैं, जहां वे आसानी से अपराधियों के शिकार हो जा रहे हैं.

जब कोविड के दौरान स्कूल बंद हो गये थे, तब ऑनलाइन शिक्षा के चलन में आने के कारण इंटरनेट और सोशल मीडिया का उपयोग काफी बढ़ गया था. इस दौरान माता-पिता की ओर से बच्चों की निगरानी भी कम हुई कि वे क्या देख-पढ़ रहे हैं. शिक्षक भी बच्चों की गतिविधियों पर नजर नहीं रख पाये. इसका नतीजा यह हुआ कि बच्चे और किशोर ऑनलाइन अपराधियों की जकड़ में आते चले गये.

कुछ बच्चों के माता-पिता और शिक्षकों ने इस अध्ययन के दौरान यह स्वीकार किया है कि वो अपने बच्चों के व्यवहार में आये परिवर्तन को समझ तो गये थे, मगर इस स्थिति से निपटने के लिए उन्हें कोई सुसंगत जानकारी नहीं थी. उन्हें इससे संबंधित कानूनों के बारे में भी सूचना नहीं थी. रिपोर्ट के अनुसार ऑनलाइन यौन शोषण और दुर्व्यवहार की स्थिति पर नियंत्रण के लिए सख्त उपाय करने की जरूरत है.

यह अध्ययन हमारे लिए एक चेतावनी की भांति है. केंद्र सरकार इस कोशिश में लगी है कि बच्चों के लिए इंटरनेट को सुरक्षित बनाया जा सके. सरकार नया डिजिटल इंडिया एक्ट लाने जा रही है. इस कानून में साइबर बुलिंग को अपराध बनाने की तैयारी है.

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