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नये कल्याणकारी राज्य का आरंभ

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पूर्व में राजनीतिक दल उनकी गरीबी, अभाव और बेरोजगारी को दूर करने के छलावों से उनके वोट बटोर लिया करते थे. अब इन लाभार्थियों ने पिछले 9-10 सालों में सरकार की मदद और स्वयं के प्रयासों से इन अभावों से कुछ हद तक मुक्ति पायी है.

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राजनीतिक विश्लेषक राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भाजपा की जीत के कारणों का विश्लेषण कर रहे हैं. भाजपा चुनाव में अक्सर कांग्रेस की सांप्रदायिक वोट बैंक, भ्रष्टाचार, वंशवाद आदि की राजनीति के मुद्दे उठाती रही है. राम मंदिर का निर्माण, धारा 370 की समाप्ति, सांप्रदायिक हिंसा जैसे मुद्दे काफी चर्चा में रहे. लेकिन इतिहास गवाह है कि चाहे ये मुद्दे महत्वपूर्ण रहे हैं, लेकिन यदि कोई पार्टी या सरकार लोगों की भलाई के लिए काम नहीं करती, तो जनता उसे स्वीकार नहीं करती. भाजपा को मध्य प्रदेश में 48.81 प्रतिशत, राजस्थान में 41.85 प्रतिशत और छत्तीसगढ़ में 46.35 प्रतिशत वोट मिलना यह दर्शाता है कि पार्टी की केंद्र सरकार की योजनाओं और उनकी उपलब्धियों से जनता संतुष्ट है और इसलिए उसकी सरकार चाहती है.

वंशवाद, भ्रष्टाचार और सांप्रदायिक हिंसा के बारे में भी जनता संवेदनशील है और देश में स्वस्थ एवं विकासवादी राजनीति की स्थापना चाहती है. वह वोट बैंक की राजनीति के चलते आर्थिक एवं सामाजिक वातावरण को दूषित भी नहीं होने देना चाहती. आम जन इस दंश के साथ जी रहा था कि भारत एक गरीब देश है, जो अमीर देशों की अकूत संपत्ति, विकसित इंफ्रास्ट्रक्चर, उच्च आमदनी और जीवन स्तर का मुकाबला कर ही नहीं सकता. उनके बराबर पहुंचने में हमें कई सदियां भी लग सकती हैं.

साल 2014 में भारत की अर्थव्यवस्था सबसे जर्जर पांच अर्थव्यवस्थाओं में शामिल थी. लेकिन 10 वर्षों से भी कम समय में भारत विश्व की दसवीं अर्थव्यवस्था से आगे बढ़ता हुआ पांचवी बड़ी अर्थव्यवस्था तक पहुंच गया है और अगले तीन सालों से भी कम समय में चौथी बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की तरफ आगे बढ़ रहा है. आज भारत विश्व की सबसे तेज बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था भी बन चुका है. ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आजादी के 100 वर्ष पूर्ण होने से पहले एक विकसित राष्ट्र बनने का संकल्प देकर आम जन की आकांक्षाओं को नये पंख देने का काम किया है. स्वाभाविक है कि जनता ने भाजपा पर अपना भरोसा जताया है. पिछले कुछ समय से कुछ राज्यों में सरकारों और दलों द्वारा बड़ी मात्रा में मुफ्त की योजनाओं के दम पर सत्ता पर काबिज होने का प्रयास शुरू हुआ है. उन्हें कुछ हद तक सफलता भी मिलती हुई दिख रही है.

दिल्ली और पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकारों द्वारा मुफ्त की योजनाओं की झड़ी लगी हुई है. तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में भी ऐसी कई योजनाएं चल रही हैं. महत्वपूर्ण बात यह है कि इन योजनाओं को चलाने हेतु इन सरकारों के पास पर्याप्त धन की भारी कमी है. इस कारण वे एक ओर तो भारी कर्ज में डूबते जा रहे हैं, तो दूसरी ओर इन योजनाओं के कारण वे शिक्षा, स्वास्थ्य एवं आम जन को सशक्त बनाने वाली अन्य योजनाओं पर खर्च नहीं कर पा रहे हैं. हालिया चुनावों में भी दलों ने मुफ्त योजनाओं की कई घोषणाएं की. कांग्रेस ने मध्य प्रदेश में किसानों के कर्ज माफ करने के अलावा, मुफ्त बिजली, गैस सिलेंडर की सब्सिडी, महिलाओं को 1500 रुपये प्रतिमाह, युवाओं को 3000 रुपये बेरोजगारी भत्ते के अलावा आदि स्कीमों की घोषणा की. राजस्थान में पहले से ही कांग्रेस सरकार महिलाओं को स्मार्टफोन, सस्ता सिलेंडर, 25 लाख रुपये तक के इलाज के लिए फ्री मेडिकल बीमा, एक करोड़ परिवारों को फ्री फूड पैकेट आदि की योजनाएं तो चला ही रही थी, इस चुनाव में उसने फ्री लैपटॉप, फ्री बिजली आदि की भी घोषणा की थी.

हालांकि प्रधानमंत्री मोदी ऐसी मुफ्त की योजनाओं को गलत मानते हैं और इसे रेवड़ी बांटने की संज्ञा देते हैं, इसके बावजूद भाजपा और उसकी सरकारों ने बड़ी मात्रा में कई ऐसी योजनाओं को चलाया है, जिसमें उज्जवला लाभार्थियों और आम जन को सस्ता सिलेंडर देना, राजस्थान में 12वीं कक्षा पास करने के बाद लड़कियों को फ्री स्कूटी देना आदि की घोषणा भी शामिल है. लेकिन यह भी सच है कि मुफ्त बिजली, पानी और यात्रा आदि योजनाओं से भाजपा ने हमेशा परहेज रखा है. महत्वपूर्ण बात यह है कि रेवड़ियां बांटने और नयी रेवड़ियों की घोषणा के बावजूद तीन राज्यों में कांग्रेस जीत नहीं पायी.

अभी तक रोजगार योजनाओं के माध्यम से पैसे बांटने, मुफ्त या सस्ती बिजली-पानी, पेट्रोल, डीजल और गैस पर सब्सिडी, सस्ता राशन, शिक्षा और स्वास्थ्य पर सरकारी खर्च आदि तक सीमित रहना ही कल्याणकारी राज्य मान लिया जाता था. लेकिन पिछले नौ सालों में कल्याणकारी राज्य की परिभाषा बदली है और उसमें सुधार दिख रहा है, जिसे जनता का समर्थन भी प्राप्त हुआ है. सबसे पहले आवास योजना में आमूल चूल परिवर्तन के माध्यम से प्रौद्योगिकी का उपयोग करते हुए खर्च की वास्तविकता को सुनिश्चित करने का प्रयास हुआ है. कुछ ही सालों में लगभग तीन करोड़ घरों का निर्माण हुआ, जिसमें पांच लाख करोड़ रुपये केंद्र सरकार द्वारा दिये गये और 15 लाख करोड़ रुपये स्वयं लाभार्थियों ने खर्च कर अपने लिए बेहतर घरों का निर्माण किया. एक करोड़ अतिरिक्त घरों का निर्माण भी विभिन्न चरणों में है.

उज्ज्वला योजना के तहत 10 करोड़ गरीब महिलाओं को मुफ्त एलपीजी कनेक्शन दिया गया. लगभग सभी गांवों तक बिजली पहुंचाने से जीवन स्तर में सुधार तो हुआ ही है, संचार और इंटरनेट क्रांति को देशभर में ले जाने में भी सफलता मिल रही है. सभी घरों में नल से जल का लक्ष्य भी पूर्ण होने के कगार पर है. हर घर में शौचालय बनने से खुले में शौच जैसे अभिशाप से मुक्ति हुई है, जिसके चित्र दिखाकर भारत को पिछड़ा दिखाने का प्रयास विदेशी अक्सर किया करते थे.

प्राथमिक चिकित्सा में सुधार और सबसे महत्वपूर्ण आयुष्मान योजना के तहत पांच लाख रुपये तक का मुफ्त इलाज, कम साधन संपन्न लोगों के लिए वरदान सिद्ध हो रहा है. ये सभी योजनाएं लक्षित लाभार्थियों के लिए हैं. पूर्व में राजनीतिक दल उनकी गरीबी, अभाव और बेरोजगारी को दूर करने के छलावों से उनके वोट बटोर लिया करते थे. अब इन लाभार्थियों ने पिछले 9-10 सालों में सरकार की मदद और स्वयं के प्रयासों से इन अभावों से कुछ हद तक मुक्ति पायी है. शायद राजनीतिक दलों की मुफ्त की रेवड़ी योजना से ज्यादा वोटरों को नया कल्याणकारी राज्य का अवतार भा रहा है. संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) के अनुसार, 2015-16 से 2019-21 के मात्र पांच सालों में बहुआयामी गरीबी का सूचकांक 0.122 से घटकर 0.69 तक पहुंच चुका है. इस अवधि में लगभग 14 करोड़ अतिरिक्त लोग गरीबी से बाहर आ चुके हैं. आज बदलती हुई परिस्थितियां देश में नयी राजनीति को जन्म दे रही हैं और देश विकसित देश बनने की ओर अग्रसर हो रहा है.

(ये लेखक के निजी विचार हैं)

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