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भाजपा स्थापना दिवस: नीतिगत राजनीति के सरोकार

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छह अप्रैल, 1980 की तारीख भारतीय जनता पार्टी के स्थापना दिवस के रूप में दर्ज है. इसी तारीख को राजनीतिक उथल-पुथल भरे घटनाक्रमों के बीच भाजपा की स्थापना हुई थी. इस दल के विचार तत्व के बीज जनसंघ के तौर पर 1951 में ही रखे गये थे. ‘नेशन फर्स्ट’ की अवधारणा पर चलते हुए जनसंघ ने राजनीति में वैकल्पिक विचारधारा की मजबूत बुनियाद रखी.

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भूपेंद्र यादव

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राष्ट्रीय महामंत्री, भाजपा और राज्यसभा सदस्य bhupenderyadav69@gmail.com

छह अप्रैल, 1980 की तारीख भारतीय जनता पार्टी के स्थापना दिवस के रूप में दर्ज है. इसी तारीख को राजनीतिक उथल-पुथल भरे घटनाक्रमों के बीच भाजपा की स्थापना हुई थी. इस दल के विचार तत्व के बीज जनसंघ के तौर पर 1951 में ही रखे गये थे. ‘नेशन फर्स्ट’ की अवधारणा पर चलते हुए जनसंघ ने राजनीति में वैकल्पिक विचारधारा की मजबूत बुनियाद रखी.

आगे चलकर भाजपा ने भी स्वयं को ‘पार्टी विद ए डिफरेंस’ बताते हुए, ‘राजनीति साधन है, साध्य नहीं’ की भावना को स्वीकार किया. छह अप्रैल, 1980 को ‘भारतीय जनता पार्टी’ के नाम से जिस दल की स्थापना हुई, उसके सरोकार राष्ट्रीय रहे, उसमें समाज के सभी वर्गों की चिंता करने का कर्तव्यबोध बना रहा, उसकी विचारधारा में इतना खुलापन रहा कि वह दल को समाज से व्यापकता में जुड़ने से नहीं रोकती है.

ऐसा इसलिए है क्योंकि ‘भाजपा के सरोकार न तो कभी संकीर्ण थे और न ही कभी एकाकी ही रहे.’ राजनीतिक दलों के सामाजिक दायित्व कैसे हों, इसका उच्च मानदंड भाजपा ने मिसाल के रूप में अनेक बार रखा है. बेशक पार्टी जब सत्ता में न रही हो, तब भी उसके सामाजिक दायित्वों के प्रति निष्ठा में कोई आलसपना नहीं देखा गया है. यह सच है कि लंबे समय तक भाजपा को विपक्ष में रहना पड़ा है, लेकिन विपक्ष में रहते हुए राष्ट्रहित के मसलों पर ‘रचनात्मक सहयोग’ की भावना भाजपा नेताओं द्वारा हमेशा दिखायी गयी है.

वर्ष 1991 में नरसिंहा राव सरकार के वित्त मंत्री डॉ मनमोहन सिंह उदारीकरण का बजट लोकसभा में प्रस्तुत कर रहे थे. वाम दलों ने संसद में दिये जा रहे उनके भाषण में गतिरोध पैदा किये. उस दौरान विपक्ष में होने के बावजूद लालकृष्ण अडवाणी ने खड़े होकर तत्कालीन स्पीकर शिवराज पाटिल से पुरजोर ढंग से कहा कि सदन को वित्तमंत्री का भाषण सुनना चाहिए. यह गतिरोध ठीक नहीं है. एक और वाकया है- जब नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री थे और वाजपेयी विपक्ष के नेता, तब प्रधानमंत्री राव ने एक महत्वपूर्ण मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र की बैठक में जा रहे प्रतिनिधि मंडल में अटल बिहारी वाजपेयी को भेजा था.

आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा प्रभावी जनादेश लेकर केंद्र की सरकार में है. देश के अनेक राज्यों में उसकी सरकार है. पार्टी अपने कार्यों को, सरकार और संगठन, दोनों ही स्तरों पर उसी भावना के साथ लेकर आगे बढ़ रही है. ऐसे में राष्ट्रहित के मसलों पर राजनीति से ऊपर उठकर विपक्ष से ‘रचनात्मक सहयोग’ की अपेक्षा की जानी चाहिए. विशेषकर तब जब देश किसी कठिन चुनौती का सामना कर रहा हो.

गौरतलब है कि आज दुनिया ‘कोविड-19’ के प्रकोप से जूझ रही है. यह एक ऐसी विकट स्थिति है, जब दुनिया के अनेक विकसित देश इस महामारी जैसी आपदा से निपटने में निसहाय साबित हो रहे हैं और भारत भी इस वायरस से अछूता नहीं है. वैश्वीकरण के इस दौर में दुनिया में घट रही घटनाओं से पृथक रह पाना संभव भी नहीं है, लिहाजा भारत को भी इस कठिन चुनौती से दो-दो हाथ करने पड़ रहे हैं.

किंतु इस कठिन चुनौती के विरुद्ध प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार ने अत्यंत अनुशासित और समाधानपरक कदम उठाये हैं. गत 22 मार्च को ‘जनता कर्फ्यू’ की अपील को संपूर्ण देश की जनता ने अपने करतल ध्वनि से समर्थन देकर इस विभीषिका की परिस्थिति से लड़ने का साहस व्यक्त किया. एक सौ तीस करोड़ देशवासियों की यह एकजुटता किसी ‘अनुशासन पर्व’ की तरह दुनिया के सामने नजीर बनी.

उसी साहस, एकजुटता और जन-भागीदारी का परिणाम है कि इतने विशाल भूभाग और जनसंख्या वाले देश में ‘संपूर्ण लॉक डाउन’ का मार्ग सफल हो रहा है. निश्चित ही इस समय देश के सामने दोहरी चुनौतियां हैं. एक तरफ देश कोविड-19 से जूझ रहा है, तो वहीं आर्थिक चुनौतियों से भी निपटने की स्थिति बन रही है. बावजूद इसके मोदी सरकार ने गरीब, किसान, मजदूर, महिला, दिव्यांग सहित व्यापार जगत के लिए प्रभावी व ठोस कदम उठाये हैं.

सरकार द्वारा 1.70 लाख करोड़ का आर्थिक राहत पैकेज गरीब कल्याण योजना के तहत जारी किया जाना इसका प्रमाण है. किसानों और जन-धन खाताधारकों को डायरेक्ट बेनफिट ट्रांसफर के माध्यम से आर्थिक मदद सरकार द्वारा दी जा रही है.

उज्ज्वला योजना के महिला लाभार्थियों को तीन महीने तक मुफ्त गैस सिलिंडर मोदी सरकार द्वारा उपलब्ध कराये जा रहे हैं. साथ ही, राज्यों के साथ समन्वय करके इस चुनौती से मजबूती से निपटने के लिए सतत प्रयास चल रहे हैं. दूसरी तरफ भाजपा कार्यकर्ता करोड़ों गरीब लोगों तक भोजन मुहैया कराने, आर्थिक सहायता देने, अलग-अलग स्थानों पर फंसे हुए लोगों तक पहुंचने तथा इस वायरस से निजात के उपायों पर लोगों को जागरूक करने का कार्य कर रहे हैं. भाजपा संगठन ने यह निर्णय किया कि उसके सभी सांसद अपने एक माह का वेतन कोविड-19 से निपटने के लिए प्रधानमंत्री मोदी द्वारा गठित ‘पीएम-केयर्स’ में दें.

स्थापना से लेकर अब तक के चार दशकों में भाजपा ने सामाजिक दायित्वों के दायरे को अपने विस्तार के साथ-साथ बड़ा किया है. आज भाजपा में नौ ऐसे प्रकल्प सांगठनिक तौर पर कार्य कर रहे हैं, जिनका विशुद्ध दायित्व सामाजिक है. ‘बेटी बचाओ-बेटी पढाओ’, स्वच्छता संकल्प, नमामि गंगे, जैसे प्रकल्प पार्टी की सांगठनिक संरचना का हिस्सा हैं. एक राजनीतिक दल के रूप में समाज के प्रति अपने सरोकारों का कर्तव्यबोध भाजपा को जन के मन को छूने वाले दल के रूप में उपस्थित करता है.

यही कारण है कि पार्टी के पूर्ववत वरिष्ठ नेताओं ने इसे ‘सेवा व्रतधारी पार्टी’ बताया है. नि:संदेह भाजपा सरकार की कार्यनीति में गांधी का ‘ग्राम-स्वराज’ और दीन दयाल उपाध्याय का ‘अन्त्योदय’ स्पष्टता से नजर आते हैं. इस कठिन दौर में विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा भी मोदी सरकार द्वारा उठाये गये कदमों और कार्यनीतियों की सराहना की गयी है. यह स्वीकार करने में कोई गुरेज नहीं होना चाहिए कि देश एकजुट होकर सरकार के साथ खड़ा है और इस कठिन दौर से निकलने का सशक्त प्रयास कर रहा है.

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