15.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

मोदी के करिश्मे से प्रभावित हुए नतीजे

Advertisement

बिहार चुनाव नरेंद्र मोदी के साथ विश्वास के इस बंधन का एक वसीयतनामा है और यह उस विश्वास का अंतिम उदाहरण नहीं होगा.

Audio Book

ऑडियो सुनें

अद्वैता काला, वरिष्ठ टिप्पणीकार

- Advertisement -

advaita0403@gmail.com

बिहार के नतीजे चुनावी राजनीति में नरेंद्र मोदी की लगातार मौजूदगी का एक और प्रमाण हैं. राजनीतिक पंडितों के अनुसार, यह एनडीए के ‘अंत’ और 31 वर्षीय तेजस्वी यादव के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनता दल के उदय का वक्त था. जैसा कि हमने देखा, राजनीतिक पंडितों की यह भविष्यवाणी गलत साबित हुई, हालांकि तेजस्वी के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनता दल ने बहुत प्रभावशाली प्रदर्शन किया है, लेकिन अंततोगत्वा अपने ही सहयोगी दल कांग्रेस से उन्हें निराशा मिली. दिल्ली में लेफ्ट लिबरल टिप्पणीकारों ने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव-2017 के दौरान भी एक अन्य ‘राजवंश’, अखिलेश यादव के साथ इसी तरह का नाटक किया था.

राहुल-अखिलेश की जुगलबंदी के लिए ‘यूपी के लड़के’ का नारा गढ़ा गया था और सभी ने देखा कि वहां क्या हुआ था? उस उपाय से तेजस्वी यादव ने खुद को और अधिक निर्णायक रूप से बरी कर लिया, लेकिन एनडीए के लिए यह चुनावी जीत प्रधानमंत्री मोदी के बिना एक असंभव उपलब्धि है, इसमें कोई दो राय नहीं है. मई के महीने में जब कोरोना संकट के कारण देशभर में लॉकडाउन लगा, तब हजारों की संख्या में हताशा से भरे प्रवासियों का शहरों से पलायन हुआ, जिनमें बड़ी संख्या में बिहारी श्रमिक वर्ग था. निर्गमन और पीड़ा के हृदय-विदारक दृश्यों ने हम सभी को प्रभावित किया. जब दुनिया के सामने कोरोना महामारी के रूप में एक अभूतपूर्व चुनौती खड़ी थी, तब भारत की विस्तृत जनसंख्या को घातकताओं के नियंत्रण के लिए कई बुद्धिजीवी वर्ग के लोगों ने चिंता का विषय बताया था.

इस कठिन और अनिश्चित समय में, प्रधानमंत्री मोदी ने परिवार के मुखिया की भांति देश के कल्याण के लिए कड़ा निर्णय लिया और लॉकडाउन से होनेवाली हानि को देखते हुए उन्होंने गरीबों से माफी भी मांगी. इस महामारी से दैनिक ग्रामीणों के लिए रोजगार के अवसर सबसे ज्यादा प्रभावित हुए. अवसर सिकुड़ते गये और घर जाने की होड़ भीड़ में तब्दील हो गयी. मुख्यधारा के मीडिया और विपक्ष ने इसे एक मुद्दा बनाने का अवसर नहीं छोड़ा. हर जगह एक राग था- मोदी ने गरीबों को निराश किया और इसके लिए उन्हें कभी भी माफ नहीं किया जायेगा. 2020 की गर्मियों में इस शो को आगे बढ़ाने के लिए महीनों तक टीवी शो, ऑप एड और डिबेट चलाये गये. वास्तव में यह एक भावनात्मक विषय था कि एक समय में हम सभी देशवासी असुरक्षित और असहाय महसूस करते हुए एक मानवीय पीड़ा के दौर से गुजर रहे थे.

यहां तक कि अमेरिका जैसा विकसित देश भी कोरोना महामारी से निबटने में असफल साबित हुआ था और न्यूयॉर्क शहर के अस्पतालों के गलियारों में लाशें जमा हो रही थीं. अब छह महीने बाद हम कह सकते हैं कि भारत अपनी आबादी, चुनौतियों और संघर्षों के बावजूद उस दृश्य से बचा रहा, जो पश्चिमी देशों में दर्दनाक और अनियंत्रित तौर पर उभरा था. इसके लिए प्रधानमंत्री मोदी को श्रेय दिया जाना चाहिए, हालांकि हमने अभी तक जितना भी बेहतर काम किया है, उससे कहीं ज्यादा विकास के मार्ग पर अग्रसर होने का मौका जनता ने उन्हें दिया है.

बिहार चुनाव में वापसी करते हुए प्रधानमंत्री मोदी की गरीबों से मांगी हुई क्षमा, इस परिणाम के साथ कबूल हो गयी है. लोगों से स्पष्ट और सीधे तरीके से की गयी बात के कारण ही चुनाव में समर्थन का नतीजा निकला है, वरना एनडीए के हारने की बड़ी संभावना थी. तीसरा कार्यकाल गठबंधन के सामने अड़चन बनकर खड़ा हुआ था. जंगल राज का संदेश पुराना और अच्छी तरह से इस्तेमाल किया गया था. बिहार के नये युवा मतदाताओं के पास लालू के न्यायविरुद्ध शासन का अनुभव नहीं था.

बिहार की राजनीति में एक नया चेहरा बनकर उभरे तेजस्वी यादव ने जेल में बंद अपने पिता के साथ मिलकर युवाओं को रोजगार देने का वादा किया था, वह भी ऐसे समय में जब बिहार रोजगार की भारी कमी से जूझ रहा है. इन परिस्थितियों में मीडिया के मसाले और राजनीतिक पंडितों ने चुनाव से पहले ही परिणाम युवा तेजस्वी यादव के पक्ष में दे दिया था. ऐसा माना जा रहा था की एनडीए किसी लंगड़े घोड़े की तरह चुनावी दौड़ से बाहर निकल जायेगा और अपने साथ नीतीश के राजनीतिक करियर को भी समाप्त करता चलेगा.

हालांकि जिस तरह के परिणाम सामने आये, उनसे यह साफ दिखलायी पड़ा कि प्रधानमंत्री मोदी बिहार की जनता के दिलों में अपनी जगह बनाने में कामयाब रहे. भाजपा द्वारा लड़ी गयी सीटों पर जीत के प्रतिशत ने उनके सहयोगी संगठन जदयू को भी पीछे छोड़ दिया और नीतीश का चौथा कार्यकाल सुनिश्चित किया. समय के पहिये वास्तव में दिलचस्प हैं, जब नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में चुना गया था, तो यह नीतीश कुमार ही थे, जो एनडीए से बाहर निकल गये थे. यह कुछ दैवीय मितव्ययता ही है कि यह वही नरेंद्र मोदी हैं, जिन्होंने नीतीश कुमार को उनका अंतिम कार्यकाल दिया है.

नीतीश कुमार पहले ही कह चुके हैं कि यह उनका अंतिम चुनाव होगा, उन्होंने दीवार पर लिखा हुआ लेख पढ़ा है, अनुभवी राजनेता जानते हैं कि दीवार पर सिर्फ लिखना-पढ़ना है, उस पर रंगना नहीं. इसमें कोई संदेह नहीं है कि मुख्यमंत्री अलोकप्रिय होने लगे थे. नीतीश के तीन कार्यकालों के बाद यह कहा जा सकता है कि भारतीय मतदाता अपने चुनावी नायकों से आसानी से थक सकता है, क्योंकि यह एक ऐसा देश है जहां बदलाव धीमी गति से होता है. हालांकि प्रधानमंत्री मोदी अपने करिश्मे और राष्ट्रीय चेतना में अधिक मौजूदगी की वजह से एक वोट प्राप्त करने वाली मशीन है, जिसे भारतीय लोकतंत्र ने न पहले कभी देखा है और संभवता न ही फिर कभी देखेगा!

इस कोविड महामारी ने प्रदर्शित किया कि कैसे नरेंद्र मोदी की दूरदर्शिता ने लाखों लोगों के जीवन में सुधार किया है, प्रत्येक घर में एक शौचालय की पहल ने वायरस के प्रसार का मुकाबला करने में मदद की है, जो कि मल के माध्यम से तेजी से फैल सकता है. डिजिटल इंडिया और जन-धन खातों पर जोर देने की वजह से ही इस महामारी के दौर में गरीब जनता की मदद संभव हो सकी. जनधन खातों के डेटा के माध्यम से ही गरीबो तक पैसा पहुंचाया जा सका. ऐसा पांच साल पहले संभव भी नहीं था. ‘मोदी है तो मुमकिन है’ केवल एक आकर्षक वाक्यांश नहीं है, बल्कि एक वास्तविकता का वादा है. बिहार चुनाव नरेंद्र मोदी के साथ विश्वास के इस बंधन का एक वसीयतनामा है और यह उस विश्वास का अंतिम उदाहरण नहीं होगा.

(ये लेखिका के निजी विचार हैं.)

Posted by : Pritish Sahay

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें