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बिबेक देबरॉय : एक बौद्धिक एवं अर्थशास्त्री का विदा होना

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Bibek Debroy : बिबेक देबरॉय का जन्म 25 जनवरी 1955 को शिलांग (मेघालय) में हुआ. उनके पुरखे सिलहट (बांग्लादेश) से शिलांग आये थे. देबरॉय ने खेल सिद्धांत, आर्थिक सिद्धांत, आय और सामाजिक असमानताओं, गरीबी, कानून सुधार, रेलवे सुधार और भारतविद्या (इंडोलॉजी) में महत्वपूर्ण योगदान दिया.

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Bibek Debroy : प्रसिद्ध अर्थशास्त्री एवं भारतीय संस्कृति के प्रणेता लेखक बिबेक देबरॉय अब हमारे बीच नहीं हैं. देबरॉय उन भारतीय लेखकों में शुमार थे, जिनकी गिनती अपनी बहुपक्षीय प्रतिभा और नये बौद्धिक परिदृश्य को दिखाने के लिए होती है. बिबेक देबरॉय अनुवादक तथा आध्यात्म, संस्कृति एवं इतिहास के ज्ञाता होने के साथ-साथ आर्थिक विशेषज्ञ भी थे. उन्होंने अपने आर्थिक विश्लेषण से आर्थिक नीतियों को सीधे प्रभावित किया. इन दिनों वे प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष थे. वे वित्त मंत्रालय की ‘अमृत काल के लिए बुनियादी ढांचे के वर्गीकरण और वित्तपोषण ढांचे की विशेषज्ञ समिति’ के अध्यक्ष भी थे.

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें अद्भुत प्रतिभावान लेखक तथा दर्शनवेत्ता के तौर पर याद किया है. उन्होंने देबरॉय की सेवाओं को याद करते हुए उन्हें एक यादगार व्यक्तित्व का मालिक बताया है. बिबेक देबरॉय का जन्म 25 जनवरी 1955 को शिलांग (मेघालय) में हुआ. उनके पुरखे सिलहट (बांग्लादेश) से शिलांग आये थे. देबरॉय ने खेल सिद्धांत, आर्थिक सिद्धांत, आय और सामाजिक असमानताओं, गरीबी, कानून सुधार, रेलवे सुधार और भारतविद्या (इंडोलॉजी) में महत्वपूर्ण योगदान दिया. बहुभाषाई प्रतिभा से संपन्न देबरॉय की हाल में आयी सह-लिखित कृति ‘इंक्ड इन इंडिया’ खूब चर्चा में रही है. वे नीति आयोग के भी सदस्य थे. उन्हें कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था, जिनमें 2015 में पद्मश्री और 2024 में ऑस्ट्रेलिया-इंडिया चैंबर ऑफ कॉमर्स द्वारा लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड भी शामिल हैं.

उनके विशिष्ट नेतृत्व, सार्वजनिक सेवा, कार्य और दिवालियापन कानून के क्षेत्र में योगदान के लिए इन्सॉल्वेंसी लॉ अकादमी एमेरिटस फेलोशिप से भी सम्मानित किया गया था. देबरॉय ने अपनी स्कूली शिक्षा रामकृष्ण मिशन से हासिल की और बाद में उन्होंने कोलकाता प्रेसीडेंसी कॉलेज और दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में पढ़ाई की. फिर वे कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय गये, जहां उनकी मुलाकात फ्रैंक हैन से हुई, जो एक प्रसिद्ध ब्रिटिश अर्थशास्त्री थे. हैन के संरक्षण में देबरॉय ने सूचना को एक सामान्य संतुलन ढांचे में एकीकृत करने पर काम किया. यह बिबेक की सफलता की नयी कहानी की शुरुआत थी, हालांकि उनकी पीएचडी पूरी नहीं हो सकी.


उन्होंने कई ग्रंथों का अनुवाद किया, जिनमें महाभारत तथा पुराण भी शामिल हैं. उनके अंग्रेजी और बांग्ला भाषा में किये गये अनुवादों के आधार पर इन ग्रंथों का अनेक भाषाओं में भी अनुवाद किया गया. वे सदैव बताते थे कि वे असल में एक लेखक बनना चाहते थे, पर जीवन की विषमताओं को देखते हुए उनकी रुचि आर्थिक मामलों में बढ़ी, तो उन्होंने सोचा कि इस पर काम किया जाए. उन्हें अपनी मातृभूमि तथा मातृभाषा बांग्ला से बेहद लगाव था. कोलकाता उनकी यादों में सदैव सजीव रहा तथा वे कोलकाता और शिलांग की निरंतर यात्राएं करते रहे. अपनी एक मुलाकात में उन्होंने बताया था कि यह अद्भुत संयोग है कि ये दोनों स्थान उनकी स्मृतियों में पुरानी यादों को हमेशा ताजा रखते थे. वे भारत के वित्तीय और अन्य समाचार पत्रों के सलाहकार संपादक भी रहे.

बहुत कम लोगों को पता होगा कि भारतीय रेल की नयी कायाकल्प के पीछे भी उनका हाथ रहा है. संविधान के संबंध में दिये गये अपने बयानों से उन्होंने सरकार को भी कई बार मुसीबत में डाल दिया, पर वे अपनी धार के पक्के थे. उन्होंने गोखले राजनीति और अर्थशास्त्र संस्थान, भारतीय विदेश व्यापार संस्थान और राष्ट्रीय अनुप्रयुक्त आर्थिक अनुसंधान परिषद में पढ़ाया भी था. उन्होंने संसद टीवी के शो ‘इतिहास’ की एंकरिंग भी की थे. वे बताते थे कि टेलीविजन का उनका यह तजुर्बा अच्छा रहा. वे इससे विद्यार्थी के तौर पर टेलीविजन को समझ सके. लेखक और पत्रकार के साथ-साथ उन्होंने अनुवादक के तौर पर बेहद बड़ा काम किया है.

इनमें प्रसिद्ध हैं महाभारत के संपूर्ण संस्करण का अंग्रेजी में 10 खंडों की शृंखला, गीता, हरिवंश, वेद और वाल्मीकि रामायण (तीन खंडों में). उन्होंने भागवत पुराण (तीन खंडों में), मार्कंडेय पुराण (एक खंड), ब्रह्म पुराण (दो खंड), विष्णु पुराण (एक खंड), शिव पुराण (तीन खंड) और ब्रह्मांड पुराण (दो खंड) का अनुवाद भी किया है. मन्मथ नाथ दत्त के साथ वे केवल दूसरे व्यक्ति हैं, जिन्होंने महाभारत और रामायण दोनों का, संपूर्ण रूप में, अंग्रेजी में अनुवाद किया. उनका शिव पुराण एक अनुवाद ही नहीं, बल्कि एक बौद्धिक सेतु है, जो समकालीन भारत को इसकी समृद्ध आध्यात्मिक विरासत से जोड़ता है. देबरॉय ने शिव पुराण के जटिल दर्शन, आख्यानों और आध्यात्मिक अंतर्दृष्टि को कुशलता से व्यक्त किया है. देबरॉय की हालिया कृति ‘जीवन, मृत्यु और अष्टावक्र गीता’ भी चर्चा में रही है.


आर्थिक सलाहकार के रूप में वे एक ऐसा भारत देखना चाहते थे, जो प्रधानमंत्री के अमृत काल की एक नयी व्याख्या करता है, जिसमें अनेक बदलावों तथा कठोर फैसलों का आह्वान है. इसके साथ ही वे एक सुहृदयी मित्र तथा ऐसे लेखक पत्रकार और विश्लेषक थे, जिनको खूब पढ़ा जाता था.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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