16.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

महिलाओं को मिले सुरक्षित माहौल

Advertisement

तमाम सरकारें प्रशासनिक मशीनरी को चुस्त-दुरुस्त करने के साथ ऐसे अपराधों के लिए प्रशासन की जवाबदेही सुनिश्चित करें और ऐसे मामलों में कोताही बरतने वाले जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ सख्त कदम उठाये जायें.

Audio Book

ऑडियो सुनें

विश्वभर में प्रतिवर्ष 25 नवंबर को ‘अंतरराष्ट्रीय महिला हिंसा उन्मूलन दिवस’ मनाया जाता है. महिलाओं के विरुद्ध हिंसा रोकने के प्रयास की आवश्यकता को रेखांकित करनेवाले कार्यक्रम इस दिन आयोजित किये जाते हैं. पैट्रिया मर्सिडीज मिराबैल, मारिया अर्जेंटीना मिनेर्वा मिराबैल तथा एंटोनिया मारिया टेरेसा मिराबैल द्वारा डोमिनिक शासक रैफेल ट्रुजिलो की तानाशाही का कड़ा विरोध किये जाने पर क्रूर शासक के आदेश पर 25 नवंबर, 1960 को उन तीनों बहनों की हत्या कर दी गयी थी.

- Advertisement -

वर्ष 1981 से उस दिन को महिला अधिकारों के समर्थक उन तीनों बहनों की मृत्यु की पुण्यतिथि के रूप में मनाते आये हैं. दिसंबर, 1999 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 25 नवंबर को अंतरराष्ट्रीय हिंसा उन्मूलन दिवस घोषित किया गया. यौन हिंसा और उत्पीड़न के खिलाफ कड़ा रुख अपनाने का आग्रह करते हुए संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुतारेस का कहना है कि महिलाओं के प्रति हिंसा विश्व में सबसे भयंकर, निरंतर और व्यापक मानव अधिकार उल्लंघनों में शामिल है. इसका दंश विश्व में हर तीन में से एक महिला को भोगना पड़ता है.

वर्ष 2010 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा ‘संयुक्त राष्ट्र महिला’ का गठन किया गया था. आंकड़ों के अनुसार विश्वभर में 15-19 आयु वर्ग की करीब डेढ़ करोड़ किशोरियां जीवन में कभी न कभी यौन उत्पीड़न का शिकार होती हैं, करीब 35 फीसदी महिलाओं और लड़कियों को अपने जीवनकाल में शारीरिक एवं यौन हिंसा का सामना करना पड़ता है.

हिंसा की शिकार 50 फीसदी से अधिक महिलाओं की हत्या उनके परिजनों द्वारा ही की जाती है. वैश्विक स्तर पर मानव तस्करी के शिकार लोगों में 50 फीसदी व्यस्क महिलाएं हैं. प्रतिदिन तीन में से एक महिला शारीरिक हिंसा का शिकार होती है. भारत में भी स्थिति काफी चिंताजनक है.

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के मुताबिक, 2020 में कोरोना महामारी के कारण राष्ट्रीय तालाबंदी के दौरान महिलाओं और बच्चों के खिलाफ पारंपरिक अपराधों में कुछ कमी देखी गयी, लेकिन देश में अपराध के मामले 28 प्रतिशत बढ़ गये. देशभर में 2020 में बलात्कार के प्रतिदिन औसतन 77 मामले दर्ज किये गये और कुल 28046 मामले सामने आये. वर्षभर में पूरे देश में महिलाओं के खिलाफ अपराध के कुल 3,71,503 मामले दर्ज हुए, जो 2019 में 4,05,326 और 2018 में 3,78,236 थे. वर्ष 2019 में महिलाओं के खिलाफ 4,05,326 मामले सामने आये थे, जिनमें प्रतिदिन औसतन 87 मामले बलात्कार के दर्ज किये गये.

देश की राजधानी दिल्ली में 2020 में महिलाओं के खिलाफ अपराध में 2019 की तुलना में 24.65 फीसदी अपराध कम हुए. साल 2020 में दिल्ली में महिलाओं के अपहरण के 2938, बलात्कार के प्रयास के नौ और बलात्कार या सामूहिक बलात्कार के बाद हत्या का एक मामला दर्ज किया गया. इस दौरान देशभर में साइबर अपराध 2019 के मुकाबले 11.8 फीसदी बढ़ा है.

वर्ष 2012 में दिल्ली में हुए निर्भया कांड के बाद देशभर में सड़कों पर महिलाओं के आत्मसम्मान के प्रति जिस तरह की जन-भावना और युवाओं का तीखा आक्रोश देखा गया था, यौन हिंसा रोकने के लिए जिस प्रकार कानून सख्त किये गये थे, उसके बाद लगने लगा था कि समाज में इससे संवदेनशीलता बढ़ेगी और ऐसे कृत्यों में लिप्त असामाजिक तत्वों के हौंसले पस्त होंगे, किंतु विडंबना है कि समूचे तंत्र को झकझोर देने वाले निर्भया कांड के बाद भी हालात यह हैं कि कोई दिन ऐसा नहीं बीतता, जब महिला हिंसा से जुड़े अपराधों के मामले देश के कोने-कोने से सामने न आते हों.

होता सिर्फ यही है कि जब भी कोई बड़ा मामला सामने आता है तो हम पुलिस-प्रशासन को कोसते हुए संसद से लेकर सड़क तक कैंडल मार्च निकालकर या अन्य किसी प्रकार से विरोध प्रदर्शन कर रस्म अदायगी करके शांत हो जाते हैं. पुनः तभी जागते हैं, जब ऐसा ही कोई बड़ा मामला पुनः सुर्खियां बनता है, अन्यथा महिला हिंसा की छोटी-बड़ी घटनाएं तो बदस्तूर होती ही रहती हैं. ऐसे अधिकांश मामलों में प्रायः पुलिस-प्रशासन का भी गैरजिम्मेदाराना और लापरवाही भरा रवैया ही सामने आता रहा है.

अहम प्रश्न है कि निर्भया कांड के बाद कानूनों में सख्ती, महिला सुरक्षा के नाम पर कई तरह के कदम उठाने और समाज में आधी दुनिया के आत्मसम्मान को लेकर बढ़ती संवेदनशीलता के बावजूद आखिर ऐसे क्या कारण हैं कि बलात्कार के मामले हों या छेड़छाड़ अथवा मर्यादा हनन या फिर अपहरण अथवा क्रूरता, ‘आधी दुनिया’ के प्रति अपराधों का सिलसिला थम नहीं रहा है?

इसका एक बड़ा कारण तो यही है कि कड़े कानूनों के बावजूद असामाजिक तत्वों पर वो कड़ी कार्रवाई नहीं होती, जिसके वे हकदार हैं और इसके अभाव में हम ऐसे अपराधियों के मन में भय पैदा करने में असफल हो रहे हैं. हैदराबाद की बेटी दिशा का मामला हो या उन्नाव पीड़िता का अथवा हाथरस या बुलंदशहर की बेटियों का, लगातार सामने आते इस तरह के तमाम मामलों से स्पष्ट है कि केवल कानून कड़े कर देने से ही महिलाओं के प्रति हो रहे अपराध थमने वाले नहीं हैं.

इसके लिए सबसे जरूरी है कि तमाम सरकारें प्रशासनिक मशीनरी को चुस्त-दुरुस्त करने के साथ ऐसे अपराधों के लिए प्रशासन की जवाबदेही सुनिश्चित करें और ऐसे मामलों में कोताही बरतने वाले जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ सख्त कदम उठाये जायें.

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें