27.1 C
Ranchi
Wednesday, February 12, 2025 | 11:18 am
27.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

ग्लासगो जलवायु सम्मेलन से उम्मीदें

Advertisement

ऐसा लगता है कि ग्लासगो सम्मेलन में भी भारत की रणनीति धनी देशों पर सौ अरब डॉलर की आर्थिक सहायता और स्वच्छ तकनीक के हस्तांतरण का दबाव बनाये रखने की ही रहेगी.

Audio Book

ऑडियो सुनें

स्कॉटलैंड के ग्लासगो शहर में विश्व जलवायु सम्मेलन चल रहा है. इसे कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज या सीओपी कहा जाता है. इस वर्ष 26वां वार्षिक सम्मेलन होने के कारण इसका नाम सीओपी26 रखा गया है. सम्मेलन में उन वादों को पक्का किया जायेगा, जो 2015 के पेरिस सम्मेलन में जलवायु परिवर्तन की रोकथाम के लिए किये गये थे. विश्व मौसम विज्ञान संगठन के अनुसार, सालभर में भारत को प्राकृतिक आपदाओं से 87 अरब डॉलर और चीन को 238 अरब डॉलर का नुकसान हुआ है.

ऐसी विभीषिका रोकने के लिए ग्लासगो सम्मेलन को अंतिम उपाय के रूप में देखा जा रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन समेत विश्व के सौ से अधिक नेता इसमें शामिल हो रहे हैं. इस सम्मेलन का पहला प्रमुख लक्ष्य है वायुमंडल के बढ़ते औसत तापमान को औद्योगिक क्रांति से पहले के औसत तापमान से 1.5 डिग्री सेल्शियस से ऊपर न जाने देना. दो सौ साल पहले की तुलना में वायुमंडल का औसत तापमान 1.1 डिग्री बढ़ चुका है. यदि ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन होता रहा, तो यह 2.7 डिग्री तक पहुंच सकता है.

वायुमंडल का तापमान आधा या एक डिग्री बढ़ते ही ध्रुवीय बर्फ और ग्लेशियर पिघलने लगते हैं. सम्मेलन का दूसरा लक्ष्य है- बढ़ते तापमान से धरती को बचाने के लिए निर्माण और जीवन शैली को बदलना, जैव ईंधन का प्रयोग रोक कर अक्षय ऊर्जा साधनों को अपनाना, मिथेन गैस घटाने के लिए मांस की खपत कम करना तथा भारत जैसे विकासोन्मुख देशों में इन उपायों के लिए स्वच्छ तकनीक और आर्थिक अनुदान मुहैया कराना.

विभिन्न देश ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन घटाने और शून्य तक ले जाने की घोषणा करते रहे हैं. ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन शून्य करने का मतलब है उनके उत्सर्जन की मात्रा और उन्हें सोखनेवाले पेड़ों के बीच संतुलन बनाना. कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड और मिथेन जैसी गैसें धूप की गर्मी को धरती की सतह से परावर्तित होने से रोकती हैं, जिससे वायुमंडल गर्म होने लगता है. उन देशों से पहल की उम्मीद की जा रही है, जिनके औद्योगिक विकास के कारण अब तक तापमान बढ़ा है.

इन देशों में अमेरिका, यूरोपीय संघ, जापान और चीन सबसे ऊपर हैं. अकेले चीन ग्रीनहाउस गैसों का 27 प्रतिशत उत्सर्जन करता है. अमेरिका का उत्सर्जन घट कर अभी 11 प्रतिशत है. यूरोपीय संघ के 27 देश कुल सात प्रतिशत उत्सर्जन करते हैं. भारत, रूस और ब्राजील का योगदान क्रमशः 6.6, 3.1 और 2.8 प्रतिशत है. जापान का उत्सर्जन 2.2 प्रतिशत से भी कम है. अमेरिका, यूरोपीय संघ, भारत और जापान के बराबर चीन अकेले ग्रीनहाउस गैसें छोड़ रहा है. फिर भी चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन सम्मेलन में भाग नहीं ले रहे हैं.

जिनपिंग ने कहा है कि चीन 2060 तक उत्सर्जन में नेट जीरो के लक्ष्य को प्राप्त कर लेगा और 2030 के बाद गैसों के उत्सर्जन में कोई सालाना बढ़ोतरी नहीं होगी.चीन के ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन की मुख्य वजह है पेट्रोल और डीजल से चलनेवाले वाहन, इस्पात कारखाने और कोयले से चलनेवाले एक हजार से ज्यादा बिजलीघर. चीन का उत्सर्जन पिछले दशक में बढ़कर डेढ़ गुना हो गया है. साल 2030 तक चीन पूरी दुनिया का 40 प्रतिशत से ज्यादा उत्सर्जन करने लगेगा. इसके भयंकर दुष्परिणाम होंगे.

पड़ोसी देश भारत के लिए भी यह खतरनाक साबित हो सकता है. चीन के कोयला बिजलीघरों, इस्पात के कारखानों और वाहनों से निकलनेवाली ग्रीनहाउस गैसें हिमालय के उन ग्लेशियरों के लिए घातक हो सकती हैं, जिनसे गंगा, यमुना, सतलज और ब्रह्मपुत्र जैसी सदानीरा नदियां निकलती हैं. चीन के उत्सर्जन का प्रभाव हिमालय के वनों और भारत के मॉनसून पर भी पड़ सकता है, जिससे भारत में प्राकृतिक आपदाएं और बढ़ सकती हैं. दुनिया के आधे से ज्यादा कोयला बिजलीघर अकेले चीन में हैं.

वह सबसे बड़ा इस्पात उत्पादक भी है. कोयले के बिजलीघरों और इस्पात कारखानों को बचाने के लिए अभी तक चीन भारत जैसे विकासोन्मुख देशों की आड़ में छिपता आया है. भारत ने भी अपने कोयला बिजलीघरों, ईंट के भट्ठों और इस्पात के कारखानों को बचाने और नेट जीरो के दबाव से बचने के लिए चीन का साथ दिया है.

भारत की दलील है कि उसका प्रतिव्यक्ति उत्सर्जन बहुत कम है, इसलिए वह नेट जीरो का लक्ष्य निर्धारित करने के लिए अभी तैयार नहीं है. लेकिन भारत ने 2030 तक उत्सर्जन में 2005 की तुलना में एक-तिहाई कटौती करने, अपनी 40 प्रतिशत बिजली को अक्षय ऊर्जा से बनाने और कार्बन सोखने के लिए करोड़ों पेड़ लगाने का वादा किया है.

ऐसा लगता है कि ग्लासगो सम्मेलन में भी भारत की रणनीति धनी देशों पर सौ अरब डॉलर की आर्थिक सहायता और स्वच्छ तकनीक के हस्तांतरण का दबाव बनाये रखने की ही रहेगी. लेकिन भारत को चीन पर दबाव बनाने की रणनीति भी बनानी होगी. भारत हर साल करीब साठ अरब डॉलर से अधिक का तेल आयात करता है. इससे होनेवाले प्रदूषण से लाखों लोग सांस की बीमारियों से मर रहे हैं. भारत को तेल के आयात पर खर्च हो रहे धन का कुछ हिस्सा बिजली और हाइड्रोजन से चलनेवाले वाहनों को बढ़ावा देने में खर्च करना चाहिए. इससे शहरों की आबो-हवा सही होगी और ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन भी कम होगा.

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

संबंधित ख़बरें

Trending News

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें