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विवेकानंद की वैश्विक प्रासंगिकता

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स्वामी जी सिर्फ आजीविका-उन्मुख शिक्षा के पक्ष में नहीं थे. उन्होंने उस वास्तविक शिक्षा की बात की, जो आत्मविश्वास को बढ़ाने के साथ-साथ चरित्र निर्माण भी करे. नयी शिक्षा नीति, 2020 उनके विचारों से मेल खाती है.

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स्वामी विवेकानंद जी के विचारों की प्रासंगिकता और मान्यता पूरे संसार में है. दुबई एक्सपो 2020 में बीते दिनों भारतीय पवेलियन ने स्वामी विवेकानंद जी की 159वीं जन्म शताब्दी मनायी. भारतीय मूल बच्चों ने कला का प्रदर्शन करते हुए स्वामी विवेकानंद जी के विचारों का संदेश दिया. विभिन्न देशों में भारतीय दूतावास इस सप्ताह स्वामी विवेकानंद की जयंती मना रहे हैं.

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विश्व समुदाय, खास कर भारतीय मूल के लोग अब भारतीय विभूतियों को जानने-समझने लगे हैं. भारतीय दार्शनिक दीनदयाल उपाध्याय जी का जन्मदिन अंत्योदय दिवस के रूप में मनाया जा रहा है. विदेश में स्थित 38 में से 23 भारतीय सांस्कृतिक केंद्रों का नामकरण स्वामी विवेकानंद के नाम पर हुआ है. भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद के अध्यक्ष विनय सहस्त्रबुद्धे का कहना है कि ऐसे और भी केंद्र अन्य देशों में भी स्थापित किये जायेंगे, जिसमें खाड़ी के देश भी शामिल हैं.

विदेशों में रहनेवाले लोग सिर्फ एक या दो परिवारों या उनकी उपाधियों से ही भारत का संबंध जोड़ते थे, लेकिन आज महान नेताओं और गुरुओं की निष्पक्ष तस्वीर प्रस्तुत करने की जरूरत है. यह सिर्फ हमारे दिवंगत नेताओं को आदर और न्याय देने के लिए नहीं, बल्कि समाज को उनके आदर्शों से प्रेरणा लेने के लिए किया जाए. इसी श्रृंखला में स्वामी विवेकानंद के 125 साल पहले इंग्लैंड में आगमन की स्मृति में उनकी मूर्ति का अनावरण कला केंद्र लंदन, हैरो में किया गया. आज लंदन विवेकानंद की जयकार कर रहा है, तो वहीं दुनिया की सबसे बड़ी प्रदर्शनी दुबई एक्सपो में उनकी जयंती मनायी जा रही है.

दूसरे ऐसे महान विश्वनेता जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय शैक्षणिक और राजनीतिक गलियारों में अपना स्थान बनाया है, वे हैं- डॉक्टर भीमराव आंबेडकर. हाल ही में भारत सरकार द्वारा कोशिश की गयी है कि यूएसए और यूके में आंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर की शाखाएं स्थापित की जाएं. एनआरआइ के नेतृत्व में कार्य करनेवाली अंाबेडकर ग्लोबल डॉट कॉम संस्था भी इस दिशा में काम कर रही है. स्वामी विवेकानंद के विचार वर्तमान समय में भारत के साथ-साथ दुनिया में भी कई मुद्दों पर प्रासंगिक हैं.

विश्व धर्म सम्मेलन में 11 सितंबर, 1893 को स्वामी विवेकानंद ने धर्म से जुड़ी हर प्रकार की कट्टरता को खत्म करने के महत्व के बारे में बात की थी. विवेकानंद के इस ओजपूर्ण भाषण को सुन कर उपस्थित समुदाय ने खड़े होकर तालियां बजायीं और उनके प्रति सम्मान प्रदर्शित किया. स्वामीजी ने कल्पना की थी कि भविष्य में भारत को दुनिया का नेतृत्व करना होगा.

न केवल आध्यात्मिकता के क्षेत्र में, अपितु आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक क्षेत्र में भी. उन्होंने विज्ञान और प्रौद्योगिकी में क्षमता निर्माण का आह्वान किया. उनसे प्रभावित होकर अग्रणी उद्योगपति सर जमशेदजी टाटा ने अपने प्रसिद्ध इस्पात संयंत्र के साथ-साथ ‘भारतीय विज्ञान संस्थान, बैंगलोर’ की स्थापना की. सर जेसी बोस ने उनके विचारों से प्रेरणा प्राप्त की और विज्ञान की दुनिया में भारत को योग्य स्थान दिलाया.

आज विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हमारी प्रगति ने दुनिया का ध्यान आकर्षित किया है. साल 1921 में बेलूर मठ के दर्शन के बाद महात्मा गांधी ने ‘विजिटर बुक’ में लिखा था- मैंने स्वामी विवेकानंद की रचनाओं को अच्छी तरह से पढ़ा है. उससे मेरी देशभक्ति हजार गुना बढ़ गयी है. स्वामी विवेकानंद के अनुसार, भारत एक असाधारण वास्तविकता है, जो भौगोलिक सीमाओं तक सीमित नहीं है. भारत एक आदर्श है जो दुनिया पर राज करेगा.

स्वामी जी का मानना था कि भारत का पुनरुद्धार देश के युवाओं पर निर्भर है. वे कहते थे कि हजारों समर्पित युवा इस देश में क्रांति ला सकते हैं. उन्होंने यह भी कहा कि युवाओं में परोपकार, सेवा और साथी देशवासियों के लिए सद्भावना होनी चाहिए. भारत की ‘आध्यात्मिक गुरु’ की अपनी स्थिति को पुनः प्राप्त करने प्रति वे बहुत आशावादी थे. उन्होंने भविष्यवाणी की थी कि भारत का भविष्य अपने अतीत के गौरव को पार कर जायेगा. संप्रति, हमारा युवा वर्ग जाग रहा है, सवाल पूछ रहा है. धीरे-धीरे, परंतु निश्चित रूप से समय के साथ हम भारतीय अधिक प्रबुद्ध हो जायेंगे.

स्वामी जी सिर्फ आजीविका-उन्मुख शिक्षा के पक्ष में नहीं थे. उन्होंने उस वास्तविक शिक्षा की बात की, जो आत्मविश्वास को बढ़ाने के साथ-साथ चरित्र निर्माण भी करे. नयी शिक्षा नीति, 2020 उनके विचारों से मेल खाती है. विवेकानंद के पास दर्शन, धर्म, साहित्य, वेद, पुराण, उपनिषद की असाधारण समझ थी. नयी शिक्षा नीति 2020 में इन सबके लिए जगह है. संचार प्रौद्योगिकी और पूंजीवाद के वैश्वीकरण के विचार को बढ़ावा देने के भी बहुत पहले भारत ने दुनिया के सामने स्वामी विवेकानंद के रूप में एक वैश्विक नागरिक प्रस्तुत किया था.

उन्होंने कहा था कि शांति के लिए मानव की तलाश तब तक अधूरी रहेगी, जब तक पश्चिमी दुनिया भारत के आध्यात्मिक और सभ्यतागत विकास को स्वीकार नहीं करेगी. यानी, आधुनिकता और प्रगति के साथ भारतीय विचारों का संयोजन आवश्यक है. उन्होंने भारतीयों को सलाह दी थी कि वे राष्ट्रीय एकीकरण पर ध्यान दें, सामाजिक पदानुक्रमों और व्यर्थ के संस्कारों से अलग रहें.

‘शिक्षा और शांति’ को वे दुनिया को जीतने का हथियार मानते थे. वे कहते थे कि युवा आराम की जिंदगी से बाहर निकलें और कुछ न कुछ जरूर हासिल करें. युवा वर्ग जिन परिवर्तनों को चाहता है, उसके लिए वह आवाज उठाये. उनकी दूरदर्शिता को सम्मान देने और युवाओं को उसके कार्यान्वयन हेतु प्रेरित करने के लिए ही ‘राष्ट्रीय युवा दिवस’ मनाया जाता है.

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