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मैराथन के महान धावक शिवनाथ

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हमें याद रखना होगा कि वे उस युग से हैं, जब भारतीय एथलीटों के पास आज जैसी सुविधाएं नहीं थीं. शिवनाथ सिंह एक स्व-निर्मित एथलीट थे.

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नंगे पांव व लंबी दूरी के महान धावक बिहार रेजिमेंटल सेंटर के नायब सूबेदार शिवनाथ सिंह को आज बहुत कम लोग याद करते हैं. एक दिन पहले ही उनकी पुण्यतिथि थी. शिवनाथ सबसे बड़े भारतीय मैराथन धावक थे और अविभाजित बिहार के महान खिलाडियों में से एक रहे. इनसे पहले जयपाल सिंह मुंडा व ऑक्सफोर्ड ब्लू थे, जिन्होंने 1928 में एम्स्टर्डम ओलंपिक में भारत को हॉकी में स्वर्ण दिलाया था और नवादा में जन्मे महान फुटबॉलर शेओ मेवालाल थे, जिन्होंने 1948 के लंदन ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व किया और 1951 में ईरान के खिलाफ पहले एशियाई खेलों के फाइनल में विजयी गोल किया था.

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अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शिवनाथ सिंह की लंबी दूरी की दौड़ की शुरुआत 1973 में फिलीपींस के मारीकिना में एशियाई चैंपियनशिप से हुई थी, जहां उन्होंने पांच हजार मीटर और दस हजार मीटर स्पर्द्धा में रजत पदक जीता. उन्होंने सियोल में 1975 की चैंपियनशिप में दोनों स्पर्धाओं में रजत जीत कर अपने प्रदर्शन को दोहराया. उन्होंने 1974 में तेहरान एशियाड में पांच हजार मीटर का स्वर्ण पदक और दस हजार मीटर दौड़ का रजत पदक जीता.

एशियाई खेलों की सफलता के बाद उन्हें अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया. सियोल चैंपियनशिप के बाद शिवनाथ ने मैराथन दौड़ना शुरू कर दिया. ऐसा कहा जाता है कि यह बदलाव लगातार दूसरी बार एशियाई चैंपियनशिप में स्वर्ण जीतने में उनकी असमर्थता के कारण हुआ था. साल 1976 में मॉन्ट्रियल ओलंपिक में उन्होंने अपनी पहली अंतरराष्ट्रीय मैराथन दौड़ से सबको चौंका दिया, जब उन्होंने दो घंटे, 15 मिनट और 58 सेकेंड का समय निकालकर 11वां स्थान हासिल किया.

साल 1978 में शिवनाथ ने दो घंटे और 12 मिनट में जो दौड़ पूरी की, वह एक भारतीय द्वारा अब तक का सबसे तेज मैराथन दौड़ है. अगर शिवनाथ ने मॉन्ट्रियल में तेज दौड़ लगायी होती, तो वे शायद पांचवें स्थान पर होते. अगर उन्होंने मास्को में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया होता, तो वे चौथे स्थान पर होते. शिवनाथ सिंह की सबसे तेज दौड़ को सही परिप्रेक्ष्य में रखने के लिए यह उल्लेख करना उपयोगी हो सकता है कि तत्कालीन पूर्वी जर्मनी के वाल्डेमर सिएरपिंस्की ने मॉन्ट्रियल और मॉस्को ओलंपिक में क्रमशः दो घंटे, नौ मिनट और 55 सेकेंड तथा दो घंटे, 11 मिनट और तीन सेकेंड के साथ मैराथन जीती थी.

कौन जानता है कि मॉस्को के एक करीबी दौड़ में क्या हो सकता था, अगर इस नायब सूबेदार ने भाग लिया होता! पुरुषों के मैराथन का वर्तमान विश्व रिकॉर्ड केन्या के एलियुड किपचोगे के नाम दो घंटे, एक मिनट और 39 सेकेंड के साथ दर्ज है, जो उन्होंने जून, 2018 में बनाया था. शिवनाथ का सबसे अच्छा प्रदर्शन इससे पीछे है, लेकिन हमें यह भी समझना चाहिए कि शिवनाथ सिंह के न्यूनतम प्रशिक्षण खर्च की तुलना में किपचोगे के प्रशिक्षण में हजारों डॉलर खर्च होता है. शिवनाथ के रिकॉर्ड के 43 साल हो गये हैं, मगर अभी तक कोई भी भारतीय इसे नहीं दुहरा पाया है.

हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि वे नंगे पांव दौड़े थे, जिससे उन्हें बहुत दर्द और दुख भी हुआ होगा. हमें याद रखना होगा कि वे उस युग से हैं, जब भारतीय एथलीटों के पास आज जैसी सुविधाएं नहीं थीं. शिवनाथ सिंह एक स्व-निर्मित एथलीट थे. उनका जन्म बिहार के बक्सर जिले के मझरिया गांव के एक साधारण परिवार में हुआ था. उन्होंने शायद भारतीय सेना में नौकरी पाने के लिए दौड़ना शुरू किया, जो अब भी कई ग्रामीण करते हैं.

शिवनाथ के दौड़ने के जुनून के बारे में एक दिलचस्प कहानी है, जो उनके भाई ने बतायी थी. एक बार मध्यम और लंबी दूरी के भारतीय धावकों को प्रशिक्षित करनेवाले महान कोच इलियास बाबर पान खाना चाहते थे. उन्होंने शिवनाथ को निर्देश दिया कि जब तक वह बाजार से वापस नहीं आ जाते, तब तक वह दौड़ता रहे. बाजार में वे अपने परिचितों के साथ बातचीत में व्यस्त हो गये. जब कोच बाबर दो घंटे के बाद लौटे, तो वे शिवनाथ को अब भी उसी गति से दौड़ता देख आश्चर्यचकित हो गये. उन्होंने कहा, ‘तुम अभी भी क्यों दौड़ रहे हो?’ ‘मैं गुरु की अवज्ञा कैसे कर सकता हूं?’, शिवनाथ ने उत्तर दिया.

शिवनाथ सिंह अपने सेना कार्यकाल के बाद टिस्को के सुरक्षा विभाग में नौकरी के लिए जमशेदपुर चले गये. दुर्भाग्य से सिर्फ 57 वर्ष की उम्र में 2003 में उनकी असामयिक मृत्यु हो गयी. आज शिवनाथ कई लोगों के लिए एक अज्ञात सैनिक की तरह है, जिन्होंने देश की ख्याति के लिए कड़ी मेहनत की थी. बिहार के लोगों की बात तो छोड़ें, उनकी उपलब्धियों के बारे में उन ग्रामीणों को भी नहीं पता है, जहां उनका जन्म हुआ था. उनके परिजन चाहते हैं कि कम से कम एक स्टेडियम का नाम इस मिट्टी के महान सपूत के नाम पर रखा जाए.

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