17.9 C
Ranchi
Wednesday, February 5, 2025 | 04:31 am
17.9 C
Ranchi

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

सैनिक स्कूलों में पढ़ेंगी बेटियां

Advertisement

एनडीए मामले की सुनवाई के दौरान न्यायाधीशों ने संकीर्ण मानसिकता को आड़े हाथों लिया है और असल में समानता के अधिकार के सिद्धांत पर ही यह फैसला आधारित है.

Audio Book

ऑडियो सुनें

नेशनल डिफेंस एकेडेमी (एनडीए) की प्रवेश परीक्षा में लड़कियों के शामिल होने का सर्वोच्च न्यायालय का फैसला निश्चित तौर पर सराहनीय है और इसका स्वागत किया जाना चाहिए. लेकिन हमें यह भी सोचना चाहिए कि ऐसे फैसले अगर सरकार करे, तो फिर न्यायपालिका के हस्तक्षेप की नौबत ही नहीं आयेगी.

- Advertisement -

यदि सरकार चाहे कि उसे सशस्त्र सेनाओं और अर्द्धसैनिक बलों में स्त्रियों और पुरुषों की समान भागीदारी सुनिश्चित करनी है, तो उसे कोई नहीं रोकेगा या रोक सकता है. सेना में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने की मांग लंबे समय से की जा रही है. अनेक सरकारें आयीं और गयीं, पर बदलाव की गति बहुत धीमी है. इस मसले को हमें समाज में व्याप्त पूर्वाग्रह से जोड़कर देखना होगा. एनडीए में प्रवेश के मामले की सुनवाई के दौरान न्यायाधीशों की खंडपीठ ने भी महिलाओं को लेकर संकीर्ण मानसिकता को आड़े हाथों लिया है और असल में समानता के अधिकार के सिद्धांत पर ही यह फैसला आधारित है.

जीवन के हर क्षेत्र में महिलाओं ने अपनी क्षमता का परिचय दिया है, लेकिन इसके बावजूद हर क्षेत्र में उनकी भागीदारी बढ़ने के बजाय घटती ही जा रही है. ऐसी स्थिति में यह निर्णय नये उत्साह का संचार कर सकता है.

भारत के कार्यबल में महिलाओं की समुचित भागीदारी नहीं होने की एक बड़ी वजह यह है कि हमारे देश में उनके सशक्तीकरण और सर्वांगीण विकास को लक्षित कोई ठोस राष्ट्रीय नीति नहीं है. जो नीतियां और कार्यक्रम हैं, उन्हें अच्छी तरह से लागू नहीं किया जा रहा है. यह शिकायत इस या उस सरकार से नहीं, सभी सरकारों से है. वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम के ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट, 2021 में 156 देशों की सूची में भारत का स्थान 140वां है, जो पिछली रिपोर्ट की तुलना में 28 पायदान की गिरावट है.

ऐसा एक या दो या चार साल में नहीं हुआ है, बल्कि यह गिरावट कई वर्षों की कमियों का नतीजा है. हम आर्थिक समेत अनेक क्षेत्रों में विकास कर रही हैं तथा वैश्विक मंच पर महत्वपूर्ण देशों की पंक्ति में शामिल होने की हमारी महत्वाकांक्षा है. ऐसे में हमें दुनिया के सामने यह उदाहरण प्रस्तुत करना होगा कि हम पुरुषों और महिलाओं के बीच भेदभाव प्रभावी ढंग से कम कर रहे हैं. इसके लिए सरकार को न्यायालय के आदेश की प्रतीक्षा करने की आवश्यकता नहीं है, बल्कि संवेदनशीलता के साथ समानता स्थापित करने के उपायों पर ध्यान देने को प्राथमिकता बनाया जाना चाहिए.

इसीलिए न्यायालय ने अपने आदेश में कहा है कि एनडीए की परीक्षा में महिलाओं को बैठने से रोकना एक नीतिगत निर्णय है, जो लैंगिक भेदभाव पर आधारित है तथा सरकार एवं सेना को इस मामले में सकारात्मक रवैया अपनाना चाहिए.

यदि हमें देश को विकास के रास्ते पर आगे बढ़ाना है, तो महिलाओं को हर क्षेत्र में समानता और प्रतिनिधित्व देना ही होगा. आधी आबादी को सुरक्षा, अवसर और सम्मान सुनिश्चित किये बिना हम समृद्ध राष्ट्र नहीं बन सकते हैं. चुनावी वादों और महिलाओं के बारे में जारी होनेवाले बयानों से आगे बढ़ने की आवश्यकता है. सेना में महिलाएं क्या भूमिका निभा सकती हैं और क्या नहीं, आज के समय में यह तो बहस की बात ही नहीं होनी चाहिए. अनेक बड़े, ताकतवर और धनी देशों की सेनाओं में महिलाएं सभी क्षेत्रों में योगदान दे रही हैं.

उनके उदाहरण और अनुभव से हम सीख सकते हैं. इक्कीसवीं सदी में कोई भी ऐसा क्षेत्र नहीं है, जहां औरतें काम नहीं कर रही हैं. यदि हम सेना में महिलाओं की भूमिका सीमित रख रहे हैं, तो इसका मतलब यह हुआ कि हम भारतीय महिलाओं की क्षमता को कम आंक रहे हैं. ऐसी मानसिकता को स्वीकार नहीं किया जा सकता है. इस पितृसत्तात्मक और स्त्रीविरोधी सोच से हमें मुक्त होना चाहिए. ध्यान रहे, ऐसा केवल सेना में महिलाओं की भागीदारी के मामले में नहीं है, बल्कि हर क्षेत्र में है. इस सोच से महिलाओं के विरुद्ध अन्याय, अत्याचार और उत्पीड़न का वातावरण भी बनता है.

स्वतंत्रता दिवस के संबोधन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह घोषणा की है कि अब सैनिक स्कूलों में लड़कियां भी पढ़ाई कर सकेंगी. यह भी स्वागतयोग्य है. अब आवश्यकता यह है कि एक ऐसी नीति बने कि जहां भी पुरुष पढ़ रहे हैं या काम कर रहे हैं, वहां महिलाएं भी बराबरी के साथ शामिल हो सकती हैं. ऐसी घोषणा के बाद अलग-अलग निर्णयों की जरूरत नहीं होगी. सह शिक्षा को एक सिद्धांत के रूप में स्वीकार्य करना चाहिए.

जब लड़के-लड़कियां एक साथ पढ़ेंगे और बढ़ेंगे, तो उनमें एक-दूसरे के प्रति संवेदनशीलता भी बढ़ेगी और क्षमता या समानता को लेकर किसी भी तरह के पूर्वाग्रहों को भी समाप्त करने में बड़ी मदद मिलेगी. इस संबंध में अन्य देशों के अनुभव महत्वपूर्ण हैं. जिन देशों में सह शिक्षा की व्यवस्था व्यापक रूप में है, वहां सेना या अन्य क्षेत्रों में भागीदारी को लेकर भी अड़चनें नहीं हैं.

हमारे देश में जिन विद्यालयों में सह शिक्षा है, वहां के छात्र अपेक्षाकृत बेहतर हैं. इससे हम उपलब्ध संसाधनों का भी अधिक सकारात्मक रूप से उपयोग कर सकेंगे. सैनिक स्कूलों में लड़कियों के जाने से उन स्कूलों की व्यवस्था के लाभ का दायरा बढ़ जायेगा और आगे चलकर सेना संबंधी बाधाओं को दूर करने में भी मदद मिलेगी. उम्मीद है कि एनडीए परीक्षा में शामिल होने का फैसला सेना में मुख्य भूमिकाओं में जाने के रूप में बदलेगा. (बातचीत पर आधारित)

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें