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सफल रहा गोवा फिल्म समारोह

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भारतीय अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह के हाईब्रिड आयोजन को महामारी के बावजूद जैसी सफलता मिली, वह निश्चित ही प्रशंसनीय है.

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गोवा में 52वें भारतीय अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह का शानदार समापन हो गया. इस हाईब्रिड समारोह को वैश्विक महामारी के बावजूद जैसी सफलता मिली, वह निश्चित ही प्रशंसनीय है. इसकी भव्यता, देश-विदेश के हजारों फिल्मकारों की उपस्थिति और सिनेप्रेमियों की उत्सुकता देखते ही बनती थी.

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मुंबई से पहुंचे कई सितारों की चमक से भी समारोह रोशन रहा. करीब 40 बरसों से इस समारोह को करीब से देखते हुए मैंने अनुभव किया कि केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर इस आयोजन को सफल व सार्थक बनाने के लिए जिस तरह सक्रिय रहे, आमतौर से वैसा जुड़ाव पहले किसी और मंत्री का नहीं दिखा. समारोह में प्रदर्शित 300 से अधिक फिल्मों में अच्छी फिल्मों की भरमार थी. निर्माता ताकाशी शिओत्स्की और निर्देशक मसाकाजू की जापानी फिल्म ‘रिंग वांडरिंग’ को सर्वश्रेष्ठ फिल्म का स्वर्ण मयूर और 40 लाख रुपये का पुरस्कार मिला.

सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का रजत मयूर और 10 लाख रुपये का पुरस्कार भारत के जितेंद्र जोशी को मराठी फिल्म ‘गोदावरी’ के लिए मिला, तो स्पेन की एंजेला मोलिना को फिल्म ‘शेर्लोट’ के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का. सर्वश्रेष्ठ निर्देशन के लिए रजत मयूर और 15 लाख रुपये का पुरस्कार चेक फिल्म ‘सेविंग वन हू वाज डैड’ के लिए वाक्लाव कद्रंका को प्रदान किया गया. ब्राजील की फिल्म ‘द फर्स्ट फालन’ के लिए अभिनेता रेनाटा कार्वाल्हो को जूरी के विशेष पुरस्कार से नवाजा गया.

समारोह के पहले दिन दिग्गज अभिनेत्री हेमा मालिनी को और समारोह के अंतिम दिन गीतकार प्रसून जोशी को भी ‘इंडियन फिल्म पर्सनेलिटी ऑफ द ईयर’ के रजत मयूर और 10 लाख रुपये के पुरस्कार से सम्मानित किया गया. नाम से उलट यह पुरस्कार किसी को उसके एक वर्ष के कार्य के लिए नहीं, बल्कि जीवनभर की उपलब्धियों के लिए दिया जाता है, जैसे राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों के समय प्रति वर्ष देश का सर्वोच्च फिल्म सम्मान दादा साहब फाल्के सम्मान दिया जाता है.

दोनों पुरस्कारों की राशि समान है, लेकिन फाल्के में स्वर्ण कमल मिलता है, तो इसमें रजत मयूर. इस अंतर को देखते हुए इसे दूसरा सर्वोच्च फिल्म सम्मान कहा जा सकता है. यूं ‘पर्सनेलिटी ऑफ द ईयर’ की जगह इस पुरस्कार का नाम लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड होना चाहिए.

गोवा के फिल्म समारोह के शुरुआती दौर में जब यह दिलीप कुमार और लता मंगेशकर जैसी हस्तियों को दिया गया, तो उन्हें लाइफ टाइम अचीवमेंट के नाम से ही मिला. ‘इंडियन फिल्म पर्सनेलिटी ऑफ द ईयर’ नाम से पुरस्कार देने की शुरुआत भारतीय सिनेमा के 100 वर्ष होने पर 2013 में हुई थी. अब तक प्रति वर्ष यह एक फिल्मी हस्ती को दिया जाता था, लेकिन इस वर्ष यह दो लोगों को दिया गया.

लगभग 58 बरसों से फिल्मों में सक्रिय और लोकप्रिय 73 वर्षीया अभिनेत्री हेमा मालिनी को यह सम्मान मिलना स्वागतयोग्य है. करीब 150 फिल्में कर चुकीं हेमा मालिनी को फिल्मफेयर के लाइफ टाइम अचीवमेंट पुरस्कार और सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री सहित और भी बहुत से सम्मान मिल चुके हैं. उनके खाते में ‘सपनों का सौदागर’, ‘एक थी रानी ऐसी भी’, ‘शोले’ और ‘सीता और गीता’ जैसी कई यादगार फिल्में हैं.

‘जॉनी मेरा नाम’, ‘लाल पत्थर’, ‘अंदाज’, ‘धर्मात्मा’, ‘प्रतिज्ञा’, ‘संन्यासी’, ‘खुशबू’, ‘क्रांति’, ‘सत्ते पे सत्ता’, ‘लेकिन’ और ‘बागबान’ जैसी कितनी ही फिल्में उनके खूबसूरत अभिनय की बानगी पेश करती हैं. प्रसून जोशी की बात करें, तो वे बिना संदेह एक बेजोड़ गीतकार हैं. पुरस्कार लेते हुए प्रस्तुत उनकी कविता ‘एक आसमान कम होता है’ भी खूबसूरत थी.

प्रसून जोशी एक गीतकार व कवि के रूप में मशहूर हैं. उन्होंने कई प्रसिद्ध विज्ञापन भी लिखे हैं. उन्हें कला व साहित्य में योगदान के लिए पद्मश्री से सम्मानित किया जा चुका है. उनको सर्वश्रेष्ठ गीतकार के लिए दो बार राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार और तीन बार फिल्मफेयर पुरस्कार भी मिल चुके हैं. करीब 20 साल के फिल्म करियर में प्रसून जोशी ने ‘हम तुम’, ‘ब्लैक’, ‘रंग दे बसंती’, ‘तारे जमीन पर’, ‘दिल्ली-6’, ‘भाग मिल्खा भाग’, ‘नीरजा’ और ‘मणिकर्णिका’ जैसी फिल्मों से अपनी विशिष्ट पहचान बनायी है.

2016 में फिल्म नीरजा का उनका यह गीत बेहद लोकप्रिय हुआ- ‘कहता ये पल, खुद से निकल, जीते हैं चल/ गम मुसाफिर था जाने दे/ धूप आंगन में आने दे/ जीते हैं चल, जीते हैं चल, जीते हैं चल…’ 2007 में आयी फिल्म ‘तारे जमीन पर’ का यह गीत भी खूब सराहा गया, जिसे शंकर महादेवन, डोमिनिक सेरेजो और विविएने पोचा ने स्वर दिया, ‘देखो इन्हें ये हैं ओस की बूंदें/ पत्तों की गोद में आसमां से कूदे/ अंगड़ाई लें फिर करवट बदल कर/ नाजुक से मोती हंस दे फिसल कर/ खो ना जाएं ये तारे जमीं पर..’ इन सबके बावजूद प्रसून को यह राष्ट्रीय सम्मान मिलना बहस का हिस्सा है, क्योंकि एक तो वे स्वयं इस फिल्म समारोह की एक जूरी में भी थे, दूसरे कि यह पुरस्कार पहली बार एक साथ दो लोगों को दिया गया.

अब तक यह बड़ा राष्ट्रीय फिल्म सम्मान जिन व्यक्तियों को भी मिला है, वे सभी 40-50 वर्ष या उससे भी अधिक समय से फिल्मों में अपना योगदान देते आ रहे हैं. साल 2013 से 2020 तक इस फिल्म समारोह में इस सम्मान से सम्मानित लोगों में वहीदा रहमान, रजनीकांत, अमिताभ बच्चन, इलाय राजा, एसपी बालासुब्रहमणियम, सलीम खान और विश्वजीत जैसे नाम हैं, जिन्हें उनकी जीवनभर की उपलब्धियों के लिए यह सम्मान मिला.

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