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खतरनाक है मोटापा

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मोटापा से निम्न और मध्य आय वाले देशों के सबसे अधिक प्रभावित होने की आशंका जतायी गयी है, जिनमें भारत भी शामिल है.

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विश्व मोटापा फेडरेशन ने चेतावनी दी है कि 2030 तक दुनिया में एक अरब से अधिक लोग मोटापा से ग्रस्त होंगे. इसे मोटापा महामारी का नाम देते हुए बताया गया है कि कोई भी देश इस संबंध में 2025 तक के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्धारित लक्ष्यों को पूरा करने की स्थिति में है. मोटापा से निम्न और मध्य आय वाले देशों के सबसे अधिक प्रभावित होने की आशंका जतायी गयी है, जिनमें भारत भी शामिल है.

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उल्लेखनीय है कि हमारे देश समेत कई देशों में विशेषज्ञ असामान्य ढंग से बहुत अधिक मात्रा में शरीर में चर्बी या वसा के जमा होने के खतरे के प्रति आगाह करते रहे हैं. जागरूकता के बावजूद बहुत से लोग मोटापा को लेकर अगंभीर रहते हैं और वे तभी सचेत होते हैं, जब उनका सामना बीमारियों से होता है. आकलनों की मानें, तो 2030 तक भारत में लगभग तीन करोड़ पुरुष और पांच करोड़ से अधिक महिलाएं मोटापा का शिकार हो सकती हैं.

इस समस्या का एक चिंताजनक पहलू यह है कि बच्चे और किशोर भी इससे अछूते नहीं हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि 2030 तक हमारे देश में पांच से नौ साल आयु के लगभग सवा करोड़ बच्चे और 10 से 19 साल आयु के लगभग 1.4 करोड़ किशोर मोटापा से ग्रस्त होंगे. अधिक वसा और चीनी युक्त खाद्य पदार्थों के सेवन से पैदा होनेवाली यह समस्या अनेक गंभीर बीमारियों का आधार बनती है, जो अक्सर जानलेवा साबित होती हैं.

हम जानते हैं कि डाइबिटीज, हृदय रोग, हड्डियों का कमजोर होने और कैंसर से बहुत अधिक संख्या में लोग ग्रस्त हो रहे हैं. इन बीमारियों की एक बड़ी वजह मोटापा है. इतना ही नहीं, 20 फीसदी असंक्रामक बीमारियों की जड़ में मोटापा है. यदि समय रहते इस ओर ध्यान नहीं दिया गया, तो साल-दर-साल रोगियों की संख्या बढ़ती जायेगी. दो साल से अधिक समय से जारी कोरोना महामारी ने भी स्थिति को बदतर बनाया है.

खाने-पीने में परहेज की कमी और शारीरिक सक्रियता घटने से लोगों का वजन बढ़ा है. बच्चों और किशोरों पर इसका सबसे ज्यादा असर है. वयस्कों में मोटापा की समस्या उनकी कार्य क्षमता को घटा देती है. स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के बढ़ने से उनकी उत्पादकता और बचत भी घट सकती है. बच्चों का मोटापा बाद में अकाल मृत्यु या शारीरिक अक्षमता का कारण बन सकता है.

विश्व मोटापा फेडरेशन और विश्व स्वास्थ्य संगठन के अध्ययन में यह भी रेखांकित किया गया है कि पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं में यह समस्या अधिक है. इससे इंगित होता है कि मोटापा रोकने और इस संबंध में जागरूकता का प्रसार करने की पहलें समावेशी होनी चाहिए. खाने-पीने से जुड़ी आदतों तथा रहन-सहन के आचार-व्यवहार पर सभी को ध्यान देने की जरूरत है. बढ़ते शहरीकरण और सुविधायुक्त एवं तेज गति की जीवन शैली के स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव के प्रति सचेत होने का समय आ गया है.

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