19.1 C
Ranchi
Monday, February 3, 2025 | 10:37 pm
19.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

सभी भाषाओं का आदर करना होगा

Advertisement

दक्षिण में केरल ऐसा राज्य है, जहां हिंदी को लेकर कोई दुराग्रह नहीं है. वहां त्रिभाषा फार्मूले के तहत हिंदी पढ़ाई जाती है और लोग उत्साह से इसे पढ़ते हैं.

Audio Book

ऑडियो सुनें

पिछले दिनों दिल्ली सरकार के गोविंद बल्लभ पंत अस्पताल में मलयालम को लेकर एक विवादास्पद आदेश जारी किया गया था. इसमें कहा गया था कि अस्पताल की नर्सें केवल हिंदी या अंग्रेजी में ही बात करें, किसी दूसरी भाषा में नहीं, अन्यथा उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जायेगी. अस्पताल प्रबंधन की ओर जारी इस आदेश में मलयालम भाषा का उल्लेख था.

- Advertisement -

कहा गया था कि कुछ नर्सें अस्पताल में मलयालम भाषा का इस्तेमाल करती हैं, जिससे मरीजों और उनके तीमारदारों को उनकी बात समझना मुश्किल होता है. इसलिए नर्सिंग स्टाफ केवल हिंदी अथवा अंग्रेजी में बात करें. इसको लेकर भारी विवाद उठ खड़ा हुआ और केरल से कांग्रेस सांसद राहुल गांधी और शशि थरूर भी इसमें कूद पड़े. नर्सों की यूनियन ने इस आदेश का खुल कर विरोध किया. उन्होंने इसे पक्षपातपूर्ण और गलत निर्णय बताया. उनका कहना था कि वे आपस में तो अपनी मातृभाषा में बात कर ही सकती हैं.

भाषा विवाद बढ़ता देख अस्पताल प्रशासन को अपना आदेश वापस लेना पड़ा. उसने सफाई दी कि प्रबंधन के वरिष्ठ लोगों की जानकारी के बगैर यह आदेश जारी कर दिया गया था. गौरतलब है कि दिल्ली में एम्स, राम मनोहर लोहिया, लोक नायक जयप्रकाश अस्पताल और और गुरु तेग बहादुर जैसे बड़े अस्पताल हैं. एक अनुमान के अनुसार इनमें 60 फीसदी नर्सें केरल से हैं. जाहिर है कि उनकी मातृभाषा मलयालम है. आपको देश के हर कोने में केरल की नर्सें मिलेंगी और उन्हें हिंदी राज्यों में नौकरी करने में कोई असुविधा नहीं होती. वे अपनी बेहतरीन सेवा के लिए जानी जाती हैं.

दक्षिण में केरल एक ऐसा राज्य है, जहां हिंदी को लेकर कोई दुराग्रह नहीं है. वहां त्रिभाषा फार्मूले के तहत हिंदी पढ़ाई जाती है और लोग उत्साह से इसे पढ़ते हैं, लेकिन ऐसी घटनाओं से संदेश अच्छा नहीं जाता है. केरल की तुलना में दक्षिण के एक अन्य राज्य तमिलनाडु पर नजर डालें, तो पायेंगे कि उसका हिंदी से बैर खासा पुराना है. आपको याद होगा कि कुछ समय पहले द्रमुक की सांसद कनिमोझी ने आरोप लगाया था कि हवाई अड्डे पर उन्हें केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल की एक अधिकारी ने हिंदी में बोलने को कहा था.

कनिमोझी ने इसे भाषाई विवाद बना दिया था और ट्वीट कर कहा था कि कब से भारतीय होने के लिए हिंदी जानना जरूरी हो गया है. इस भाषाई विवाद में पूर्व केंद्रीय मंत्री पी चिदंबरम भी तत्काल कूद पड़े थे. चिदंबरम ने कहा था कि मुझे सरकारी अधिकारियों और आम लोगों से बातचीत के दौरान इसी तरह के अनुभव का सामना करना पड़ा है. इसको लेकर तमिलनाडु में राजनीति शुरू हो गयी थी और तत्कालीन द्रमुक अध्यक्ष और मौजूदा मुख्यमंत्री स्टालिन ने पूछा था कि क्या भारतीय होने के लिए हिंदी जानना ही एकमात्र मापदंड है? यह इंडिया है या हिंदिया है?

तमिलनाडु में हिंदी विरोध की राजनीति काफी पहले से होती आयी है. इसमें अनेक लोगों की जानें तक जा चुकी हैं. तमिलनाडु के नेता त्रिभाषा फार्मूले के तहत हिंदी को स्वीकार करने को भी तैयार नहीं रहे हैं. वे हिंदी का जिक्र कर देने भर से नाराज हो जाते हैं. तमिल राजनीति में हिंदी का विरोध 1937 के दौरान शुरू हुआ था और देश की आजादी के बाद भी जारी रहा.

सी राजगोपालाचारी ने स्कूलों में हिंदी को अनिवार्य बनाने का सुझाव दिया, तब भी भारी विरोध हुआ था. तमिलनाडु के पहले मुख्यमंत्री अन्ना दुरई ने तो हिंदी नामों के साइन बोर्ड हटाने को लेकर एक आंदोलन ही छेड़ दिया था. इस आंदोलन में डीएमके नेता और तमिलनाडु के कई बार मुख्यमंत्री रहे दिवंगत एम करुणानिधि भी शामिल रहे थे. कुछ समय पहले कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी ने भी सिलसिलेवार ट्वीट किया था और कहा था कि हिंदी पॉलिटिक्स ने दक्षिण भारत के कई नेताओं को प्रधानमंत्री बनने से रोका.

करुणानिधि, एचडी देवगौड़ा और कामराज इसमें प्रमुख हैं. हालांकि देवगौड़ा इस बाधा को पार तो कर गये, लेकिन भाषा के कारण कई मौकों पर उनकी आलोचना की गयी. कुमारस्वामी ने लिखा कि हिंदी पॉलिटिक्स के कारण ही स्वतंत्रता दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा को हिंदी में भाषण देना पड़ा था. वह उत्तर प्रदेश और बिहार के किसानों के कारण इस पर राजी भी हो गये थे. यह दिखाता है कि दक्षिणी राज्यों के लोग हिंदी पट्टी के लोगों से कितने आशंकित रहते हैं. ऐसे में गोविंद बल्लभ पंत अस्पताल जैसी घटनाएं आग में घी का काम करती हैं.

यह सच्चाई है कि देश की राजनीति अधिकांश उत्तर भारत के राज्यों से संचालित होती है. यह भी सच है कि उत्तर भारत के लोगों ने दक्षिण भारतीयों को जानने की बहुत कोशिश नहीं की है. जब से आइटी की पढ़ाई और नौकरी के लिए हिंदी भाषी राज्यों के हजारों बच्चे और कामगार दक्षिण जाने लगे, तब से दक्षिणी राज्यों की उनकी जानकारी बढ़ी है, अन्यथा सभी दक्षिण भारतीय मद्रासी कहे जाते थे. आंध्र, कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल का भेद और उनकी भाषाओं की ज्ञानकारी उन्हें नहीं थी.

मैंने पाया कि अब भी जो हिंदी भाषी लोग दक्षिणी राज्यों में रहते हैं, उनमें उस राज्य की भाषा सीखने की कोई ललक नजर नहीं आती है. हम हर 14 सितंबर को हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए देशभर में हिंदी दिवस मनाते हैं, लेकिन इससे न तो हिंदी का भला हुआ है और न होने वाला है. हिंदी को कैसे जन-जन की भाषा बनाना है, इस पर कोई सार्थक विमर्श नहीं होता है. दुर्भाग्य से हिंदी भाषी राज्यों में भी हिंदी की स्थिति कोई बहुत अच्छी नहीं है.

पिछले साल उत्तर प्रदेश से बेहद चिंताजनक खबर आयी थी कि यूपी बोर्ड की हाइस्कूल और इंटर की परीक्षाओं में लगभग आठ लाख विद्यार्थी हिंदी में फेल हो गये थे. यह खतरे की घंटी है. बिहार और झारखंड में भी हालाता बेहतर नजर नहीं आयेंगे. इसमें छात्रों का दोष नहीं है. हमने उन्हें अपनी भाषा पर गर्व करना नहीं सिखाया है, उनका सही मार्गदर्शन नहीं किया है. इसकी तुलना में बांग्ला या दक्षिण की किसी भी भाषा को बोलने वालों को लें. वे जब भी मिलेंगे, मातृभाषा में ही बात करेंगे.

उन्हें अपनी भाषा के प्रति मोह है. यही वजह है कि वे भाषाएं प्रगति कर रही हैं. इनमें स्तरीय साहित्य रचा जा रहा है. अगर आप बाजार अथवा मनोरंजन उद्योग को देखें, तो उन्हें हिंदी की ताकत का एहसास है. यही वजह है कि अमेजन हो या फिर फिल्पकार्ड उन सबकी साइट हिंदी में उपलब्ध है.

हॉलीवुड की लगभग सभी बड़ी फिल्में हिंदी में डब होती हैं, लेकिन भारतीय भाषाओं के साहित्य अथवा फिल्मों को देखें, तो गिनी-चुनी कृतियां ही हिंदी में उपलब्ध हैं. यह सच्चाई है कि प्रभु वर्ग की भाषा आज भी अंग्रेजी है और जो हिंदी भाषी हैं भी, वे अंग्रेजीदां दिखने की पुरजोर कोशिश करते नजर आते हैं. हमें अंग्रेजी बोलने, पढ़ने-लिखने और अंग्रेजियत दिखाने में बड़प्पन नजर आता है, जबकि भारत के लगभग 40 फीसदी लोगों की मातृभाषा हिंदी है.

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें