16.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

त्याग का पर्व है ईद-उल-अजहा

Advertisement

पिछले वर्ष की तरह इस वर्ष भी कोरोना संक्रमण को देखते हुए लोगों को ईद-उल-अजहा का त्योहार सरकारी दिशा-निर्देशों का पालन करते हुए मनाना होगा. नमाज के दौरान सामाजिक दूरी का ख्याल रखें. अपने घरों में रह कर परिवार के साथ त्योहार मनाएं.

Audio Book

ऑडियो सुनें

इस्लाम धर्म माननेवाले साल में मुख्य रूप से दो ईदें मनाते हैं- ईद-उल-अजहा और ईद-उल-फितर. ईद-उल-फितर को मीठी ईद कहते हैं, जब कि ईद-उल-अजहा को बकरीद या फिर इसे बड़ी ईद भी कहा जाता है. वैसे तो हर पर्व-त्योहार से जीवन की सुखद यादें जुड़ी होती हैं, लेकिन ईद-उल-फितर और ईद-उल-अजहा से इस्लाम धर्म को मानने वालों का खास रिश्ता होता है. दुनिया में हर धर्म के मानने वाले अपनी-अपनी आस्था के अनुरूप कोई न कोई त्योहार जरूर मनाते हैं.

- Advertisement -

इन त्योहारों के जरिये अन्य धर्मों को मानने वालों को समझने और जानने का मौका मिलता है. इस्लाम का मतलब होता है- ईश्वर के समक्ष पूर्ण आत्मसमर्पण और इस आत्मसमर्पण के द्वारा व्यक्ति, समाज तथा मानव जाति के द्वारा ‘शांति और सुरक्षा’ की उपलब्धि. यह अवस्था आरंभ काल से तथा मानवता के इतिहास के हजारों वर्ष लंबे सफर तक हमेशा से मनुष्य की मूलभूत आवश्यकता रही है. ईद-उल-अजहा में पैगंबर हजरत इब्राहिम ने कुर्बानी (बलिदान) का जो उदाहरण दुनिया के सामने रखा, उसे आज भी परंपरागत रूप से मनाया जाता है.

दरअसल, इस्लाम परिवार तथा समाज के दायित्वों को पूरी तरह निभाने और सामाजिक समानता पर जोर देता है. कुर्बानी का अर्थ है रक्षा के लिए सदा तैयार रहना. इस्लाम के आखिरी नबी हजरत मोहम्मद साहब के अनुसार कोई व्यक्ति जिस भी परिवार, समाज, शहर या देश में रहता हो, उस व्यक्ति का कर्तव्य है कि वह उस देश, समाज, परिवार की रक्षा के लिए हर तरह की कुर्बानी देने के लिए तैयार रहे.

भारत में भी ईद-उल-अजहा का त्योहार मनाने की प्रथा बहुत पुरानी है. मुगलों के जमाने में भी बादशाह अपनी प्रजा के साथ मिल कर ईद-उल-अजहा मनाते थे. दूसरे धर्मों को मानने वालों के सम्मान में ईद वाले दिन शाम को दरबार में उनके लिए विशेष शुद्ध शाकाहारी भोजन हिंदू बावर्चियों द्वारा ही बनाये जाते थे. बड़ी चहल-पहल रहती थी. बादशाह दरबारियों और आम प्रजा के बीच उपहार भी खूब बांटते थे. ईद-उल-अजहा का त्योहार तीन दिनों तक चलता है, जिसमें गरीबों और जरूरतमंदों का खास ख्याल रखा जाता है.

इसी मकसद से ईद-दल-जुहा के सामान यानी कि कुर्बानी के सामान के तीन हिस्से किये जाते हैं. एक हिस्सा खुद के लिए रखा जाता है. दूसरा हिस्सा अपने गरीब रिश्तेदार के लिए तथा तीसरा हिस्सा समाज में जरूरतमंदों में बांटने के लिए होता है, जिसे तुरंत बांट दिया जाता है, ताकि वे लोग भी समाज में बराबरी के एहसास के साथ अच्छा खाना खा सकें और अच्छे कपड़े पहन सकें. यह समाज में सहकार की भावना को प्रोत्साहित करने का बड़ा माध्यम है.

ईद-उल-अजहा इस्लाम में विश्वास करने वाले लोगों का एक प्रमुख त्योहार है. जैसा कि हम जानते हैं कि यह त्योहार पैगंबर इब्राहीम द्वारा दिखायी गयी बलिदान की भावना का त्योहार है. ईश्वर की राह में अपनी सबसे प्रिय वस्तु का त्याग करना इस त्योहार का मूल संदेश है. यह इंसान के मन में ईश्वर के प्रति विश्वास की भावना को बढ़ाता है. परस्पर प्रेम, सहयोग और गरीबों की सेवा करने का आनंद इस त्योहार के साथ जुड़ा हुआ है. पूरे विश्व में लोग ईद के दिन मिल-जुल कर खाना-पीना करते हैं, गरीब लोगों की मदद करते हैं तथा हर इंसान अपनी किसी बुरी आदत का त्याग करने का प्रण करता है.

ईद-उल-अजहा में जानवर की कुर्बानी तो सिर्फ एक प्रतीक भर है. दरअसल, इस्लाम धर्म जिंदगी के हर क्षेत्र में कुर्बानी मांगता है. इसमें धन व जीवन की कुर्बानी, नरम बिस्तर छोड़ कर कड़कती ठंड या भीषण गर्मी में बेसहारा लोगों की सेवा के लिए जान की कुर्बानी वगैरह ज्यादा महत्वपूर्ण बलिदान हैं.

इस्लाम धर्म के मानने वालों और इसमें विश्वास रखने वालों के मुताबिक, अल्लाह हजरत इब्राहीम की परीक्षा लेना चाहते थे और इसीलिए उन्होंने उनसे अपने बेटे इस्माइल की कुर्बानी देने के लिए कहा. विश्वास की इस परीक्षा के सम्मान में दुनियाभर के मुसलमान इस अवसर पर अल्लाह में अपनी आस्था दिखाने के लिए जानवरों की कुर्बानी देते हैं. कुर्बानी का असल अर्थ यहां ऐसे बलिदान से है, जो दूसरों के लिए दिया गया हो.

भारत में ईद-उल-अजहा के दिन ऐसा लगता है कि मानो यह मुसलमानों का ही नहीं, हर भारतीय का पर्व है. वैसे बड़ी ईद (ईद-उल-अजहा) और छोटी ईद दोनों भिन्न होते हुए भी सामाजिक रूप से समान होती हैं. ईद की विशेष नमाज पढ़ना, पकवानों का बनना, मिठाई बांटना, नये कपड़े पहनना, सगे-संबंधियों व मित्रों के घर जाना आदि दोनों में समान हैं. भारत की यह परंपरा रही है कि यहां हमेशा से सभी त्योहार प्रेम और भाईचारे के साथ मनाया जाता है.

यहां सभी लोग आपस में शांत भाव से एक-दूसरे का सम्मान करते हुए त्योहार मनाते हैं. पिछले वर्ष की तरह इस वर्ष भी कोरोना संक्रमण को देखते हुए लोगों को ईद-उल-अजहा का त्योहार सरकारी दिशा-निर्देशों का पालन करते हुए मनाना होगा. नमाज के दौरान सामाजिक दूरी का ख्याल रखें. अपने घरों में रह कर अपने परिवार के साथ त्योहार मनाएं. कुर्बानी के स्थान को सैनिटाइज करना न भूलें. मास्क और ग्लव्स का इस्तेमाल करते हुए एक-दूसरे की सुरक्षा और सम्मान के साथ ईद-उल-अजहा के त्योहार को यादगार बनाएं. इसी संदेश के साथ देशवासियों को ईद-उल-अजहा की बधाई.

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें