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कैंसर की चुनौती से जूझता भारत

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विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया के बाकी देशों के मुकाबले भारत में कैंसर से प्रभावितों की दर कम है.

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प्रतिवर्ष चार फरवरी को विश्व कैंसर दिवस मनाया जाता है. कैंसर के सौ से अधिक प्रकार हैं, लेकिन इनमें स्तन, सर्वाइकल, ब्रेन, हड्डी, ब्लैडर, पैंक्रियाटिक, प्रोस्टेट, गर्भाशय, किडनी, फेफड़ा, त्वचा, पेट, थायरॉयड और मुंह व गले का कैंसर प्रमुख है. वजन बढ़ने, शारीरिक सक्रियता में कमी आने, दोषपूर्ण व असंतुलित खान-पान, व्यायाम नहीं करने, अल्कोहल के अधिक मात्रा में सेवन से इस रोग के होने की संभावना अधिक रहती है.

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चाय-कॉफी जैसे पेय पदार्थों के आदी व्यक्ति को भी कैंसर का ज्यादा खतरा रहता है. मोटापे से ग्रस्त व्यक्ति को कैंसर होने की अधिक संभावना होती है. यह बीमारी अनुवांशिक भी है. विशेषज्ञों का मानना है कि लोगों की बदलती जीवनशैली, तनाव, खान-पान की आदतें, शराब और तंबाकू सेवन इसकी बड़ी वजह बन रही है.

देश में सामान्य, मुंह, सर्वाइकल और स्तन कैंसर के मामलों में तेजी से वृद्धि हुई है. नेशनल हेल्थ प्रोफाइल-2019 की रिपोर्ट के मुताबिक, एनसीडी क्लीनिक ने 2017 से 2018 के बीच कैंसर के मामलों की पहचान की है. इस एक वर्ष में देश में कैंसर के मामले तीन गुना से भी ज्यादा बढ़ गये.

वर्ष 2017 में राजस्थान के सरकारी एनसीडी केंद्रों में पहुंचे करीब 30 लाख (30,91,378) लोगों में से 1,358 लोगों को सामान्य कैंसर निकला. वहीं 2018 के दौरान यह आंकड़ा बढ़कर 3,414 हो गया. यह करीब डेढ़ गुना बढ़ोतरी है. वर्ष 2017 में 3,57,23,660 लोग जांच कराने पहुंचे, जिनमें से 39,635 लोगों में सामान्य कैंसर पाया गया. वर्ष 2018 में 6,51,94,599 लोग जांच कराने पहुंचे, जिनमें से 1,68,122 में सामान्य कैंसर की पुष्टि हुई.

गुजरात में 2017 में 3,939 कैंसर पीड़ितों की पुष्टि हुई थी. वर्ष 2018 में यह संख्या बढ़कर 72,169 हो गयी. गुजरात के बाद सबसे खराब हाल कर्नाटक, महाराष्ट्र, तेलंगाना और पश्चिम बंगाल का रहा. हर दिन औसतन 1300 से अधिक लोग इस बीमारी का शिकार हो रहे हैं. हर वर्ष कैंसर के 10 लाख नये मामलों का निदान किया जा रहा है.

भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के अनुसार, 2020 तक कैंसर के मामलों में 25 प्रतिशत वृद्धि का अनुमान है और 2035 तक हर वर्ष कैंसर के कारण मरनेवालों की संख्या बारह लाख तक बढ़ने की उम्मीद है. विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया के बाकी देशों के मुकाबले भारत में कैंसर से प्रभावितों की दर कम है.

बावजूद यहां 15 प्रतिशत लोग कैंसर के शिकार होकर अपनी जान गंवा देते हैं. डब्ल्यूएचओ की सूची के अनुसार, 172 देशों की सूची में भारत का स्थान 155वां हैं. वर्तमान में कुल 24 लाख लोग इस बीमारी का शिकार हैं. एक अनुमान के मुताबिक, भारत में 42 प्रतिशत पुरुष और 18 प्रतिशत महिलाएं तंबाकू के सेवन से कैंसर का शिकार होकर अपनी जान गंवा चुके हैं.

राष्ट्रीय कैंसर संस्थान के एक प्रतिवेदन के अनुसार, देश में हर वर्ष इस बीमारी से 70 हजार लोगों की मृत्यु हो जाती है, इनमें से 80 प्रतिशत लोगों की मौत का कारण बीमारी के प्रति उदासीन रवैया है. कैंसर संस्थान की इस रिपोर्ट के अनुसार, भारत में हर वर्ष सामने आ रहे साढ़े बारह लाख नये रोगियों में से लगभग सात लाख महिलाएं होती हैं. इनमें से करीब साढ़े तीन लाख महिलाओं की मौत हो जाती है. इनमें से भी 90 प्रतिशत की मृत्यु का कारण रोग के प्रति बरती जाने वाली लापरवाही है. ये महिलाएं डॉक्टर के पास तभी जाती हैं जब बीमारी अनियंत्रित हो जाती है.

नि:संदेह, यदि कोई देश अपने को कैंसर मुक्त बनाने का सपना देखता है, तो उसे अपने देश में बिक रहे मादक व नशीले पदार्थों व शराब की फैक्ट्रियों पर रोक लगाने के कदम उठाने होंगे. जंक फूड पर फैट टैक्स लागू कर इसके सेवन से आमजन को बचाने का प्रयत्न करना होगा. कैंसर से बचाव के लिए हमें इस रोग को लेकर जन-जागृति कार्यक्रमों में तेजी लाने की जरूरत है.

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